रविवार, 6 अगस्त 2017

सुर-२०१७-२१६ : ‘दोस्त’ हो जैसे आत्मा... ‘दोस्ती’ ऐसा आत्मिक नाता...!!!


 इक रिश्ता
जो छूट गया अधूरा
किसी जनम में
.....
बनकर दोस्त
वो जुड़ जाता आकर
बीच सफ़र में
.....
साथ छोड़ जाये
भले, हर संबंध कभी
साथ रहती मगर
दोस्तीहर रहगुज़र में
.....
कि ये नाता
नहीं जुड़ा रक्त से
जो टूट जाये
कहीं किसी पल में
.....
कि ये नहीं देहका
ये तो आत्माका बंधन हैं ॥
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किसी जनम का कोई अधूरा रिश्ता जो पूरा न हो पाया किसी वजह से वो अगले जनम में मित्रबनकर फिर किसी मोड़ पर मिल जाता कि बाकी रिश्तों में तो अपेक्षाओं व औपचारिकताओं का निर्वहन होता लेकिन दोस्तीएक ऐसा अनौपचारिक निःस्वार्थ बंधन होता जो हर तरह की परिस्थिति और हर तरह की कठिनाइयों के बावजूद भी साथ नहीं छोड़ता जबकि बाकी रिश्ते तो कभी-भी थोड़ी-सी मुश्किल सामने आने पर हाथ छोड़ सकते या कहीं न कहीं मजबूरीवश न चाहते हुये भी साथ-साथ तो चलते लेकिन दो लोगों को जोड़ने वाला रसायन कमजोर पड़ जाता जिससे उनके मध्य संबंधों की गर्माहट कम हो जाती पर, दोस्त तो अंतर से जुड़े होते तो बिना कहे, बिना सुने भी दिल का हाल जान जाते चाहे फिर उनके बीच कितनी भी दूरियां हो बस, आवाज़ सुनने की देर हैं और अगला बोल पड़ता कि क्या बात हैं यार, बता न...

बाकी रिश्तों में तो आमने-सामने उतरे चेहरों को देखकर भी बमुश्किल कोई समझ पाता कि ही उसके साथी के भीतर क्या हलचल चल रही केवल, चंद प्रगाढ़ संबंधों में ही ऐसा होता जहाँ दो लोग दो जिस्म एक जान की तरह होते तो महज़ एक-दूजे के अहसास से ही मायूसी के पीछे की वजह जान जाते और जब किसी रिश्ते में इतनी गहराई होती तो फिर वो एक जन्म नहीं जन्मों-जन्मों संग चलता और मित्रतामें तो ये भी कि सिर्फ एक नहीं बल्कि अनेक लोगों से ये नाता बनाया जा सकता जो आज के तकनीकी युग में तो वैश्विक स्तर पर भी बन रहा तो सभी आभासी और वास्तविक दोस्तों को 'मित्रता दिवस' की आत्मिक शुभकामनायें... :) :) :) !!!            

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०६ अगस्त २०१७

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