जन्मे 'कृष्ण'
जन्मी 'आज़ादी'
आधी रात को
खुल गये किवाड़ सभी
कारागार के
कैद जिनमें था
भविष्य आने वाले
स्वतंत्र स्वावलंबी भारत का
'कृष्ण' बने
कर्मयोगी
सारथी और उपदेशक भी
दे गये 'गीता' का
ज्ञान
फिर भी न समझे हम उसको
बनते गये गुलाम
जबकि साथ उनके भी तो
कंस, जरासंध
शिशुपाल और दुर्योधन भी
समकालीन बन जन्मे
तो धर्मयुद्ध कर बने विजयी
अपने सगे-संबंधियों से
'आज़ादी' मगर,
मूक बनकर देखती रही
अधर्म, अत्याचार, पाप
अनेक
लड़ न पाई अपनों से
बूढ़ा गयी सत्तर सालों में ही
देख युवाओं को ग़ाफ़िल
भर सकते थे जोश जो
खो बैठे होश वो
अब भी न संभले तो
फिर बनेंगे कैदी...
शायद, कराने ये अहसास
आज ये दोनों आये साथ-साथ ॥
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आज
बहुत सालों बाद फिर से एक अद्भुत संयोग बना जबकि योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव
और आज़ादी की सालगिरह एक साथ आई हैं तो मन में कहीं ये एक विचार चला आया कि सोचकर
देखें दोनों के जन्म में क्या समानतायें हैं ???
तब
एक के बाद एक कई बातें जेहन में लगातार आने लगी जिसमें सबसे पहले तो यही कि दोनों
का ही जन्म अनंत अत्याचार व घोर पाप के एक लम्बे संघर्ष और प्रार्थना के बाद मध्य
रात्रि को हुआ जिससे कि कैदखाने के दरवाजे अपने आप खुल गये तो सामने चुनौतियों को
अंबार इंतजार कर रहा था जिसका उन्होंने अपने अदम्य साहस, हिम्मत के दम पर सामना कर
उन पर विजय प्राप्त की लेकिन ये सिलसिला कभी रुका नहीं कि रुकना तो मौत का नाम
होता और जीवन में तो अनवरत गति होती तो यहाँ भी ये देखने में आया लेकिन दोनों की
तुलना करे तो पाते कि जहाँ ‘कृष्ण’ ने अपने गलत बात के लिये अपने विरोधियो ही नहीं
अपनों का भी डटकर मुकाबला किया वही ‘आज़ादी’ के साथ तो शुरू से ही परायापन का
व्यवहार देखने में आया कि उसे तो जन्मते ही विभाजन का उपहार मिला जिसने कहीं न
कहीं उसको कमजोर बना दिया उसके बाद भी ये क्रम अब तक जारी हैं कि देश में कई राज्य
हैं जो खुद को पृथक कर स्वत्नत्रता चाहते तो इस तरह यह अखंड भारत खंड-खंड होकर
विकास की जगह विनाश की राह पर चलता दिखाई दे रहा हैं ।
‘श्रीकृष्ण’
ने आजीवन ‘धर्म’ का मार्ग अपनाया लेकिन ‘आज़ादी’ को तो संगत ही गलत लोगों की मिली
तो सत्तर सालों में ही उसका स्वरुप बिगड़ गया जो हमको ये बताता कि यदि हमने कृष्ण
के पथ और सन्देश को आत्मसात किया होता तो न तो हम कभी किसी के गुलाम होते और न ही
हमें किसी की सहायता की आवश्यकता होती कि हम तो अपने विशाल ज्ञान और विविधता की
वजह से सम्पूर्ण जगत के आकर्षण के केंद्र और ‘विश्वगुरु’ के पद पर आसीन थे पर,
अपनी गलतियों से इस मुकाम पर आ गये कि जिसने हमसे शिक्षा ग्रहण की जीना सीखा उसका
ही मुंह ताक रहे उसकी नकल कर रहे तो ऐसे में इन दोनों जन्मदिवसों का आज एक साथ आना
शायद, यही इंगित कर रहा कि हम वापस अपनी जड़ों की और लौटे वही से हमें आगे की राह
मिलेगी नहीं तो अँधेरी खाई में गिरने का इंतजार करे... इसी संदेश के साथ सभी को
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी युक्त स्वत्नत्रता दिवस की अनंत शुभकामनायें :) :) !!!
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१५ अगस्त २०१७
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