गुरुवार, 24 अगस्त 2017

सुर-२०१७-२३४ : प्रेम-त्याग का कठोर तप... ‘हरतालिका तीज व्रत’...!!!


‘सती’ रूप में अपने अर्धांग की मान-मर्यादा ही नहीं बल्कि उनसे अपार प्रेम की खातिर उन्होंने उनका नाम लेकर अपने आपको ही हवन कुंड की अग्नि में होम कर दिया इससे बड़ी चाहत की दूसरी मिसाल और क्या होगी जबकि कोई अपने प्यार के लिये अपनी जान तक कुर्बान कर दे और फिर जब दूसरा जनम लेकर आये तो फिर उसे पाने के अलावा अंतर में कोई और मनोकामना शेष न हो तो अपनी उस अंतिम इच्छा को ही अपने इस नवीन जीवन की एकमात्र साध बना उन्होंने वो कर दिखाया जिसकी कल्पना भी नामुमकिन कि अपनी अर्धांगिनी के अग्निस्नान की खबर जब उनके प्राणप्रिय को मिली तो उनके दुःख और दर्द की सीमा ही न रही और उन्होंने भी अपनी प्रियतमा के प्रति अपने अनंत प्रेम को उसी तरह से अभिव्यक्त किया जैसा कि कोई दीवाना करे उन्होंने खुद की सुध-बुध बिसराकर उनकी उस मृत देह को लेकर सम्पूर्ण संसार का भ्रमण किया और जगह-जगह उनके अंगों के विसर्जन से शक्ति पीठों का उदय हुआ उसके बाद भी जब उनके भीतर की आग शांत न हुई तो फिर उन्होंने अपने आपको पूर्ण रूप से साधना में लीन कर लिया ऐसे में जब ‘पार्वती’ ने उनको ही पति रूप में पाने की इच्छा व्यक्त की तो एकबारगी सबको ये असंभव ही लगा कि ‘शिव’ तो धूनी रमा चुके अब किसी से भी विवाह न करेंगे लेकिन ‘पार्वती’ भी हिमालय की पुत्री तो उनकी ही तरह अडिग व अटल जो थान लिया तो ठान लिया फिर चाहे जो हो उस संकल्प को पूरा करना ही हैं तो इस असाध्य लक्ष्य को जीवन का ध्येय बनाकर उन्होंने पहले तो घर से पलायन किया फिर एकांत में जाकर कठिन व्रत-तप किया जिसके लिये निर्जल-निराहार रहकर अपने आपको भूला केवल शिव का ही ध्यान किया तो उनकी इतनी कठिन तपस्या ने उनकी समाधि को भंग कर दिया और फिर वही हुआ जो वे चाहती थी यानि कि शिव से विवाह तो ये सिद्ध करता कि यदि मन में कुछ भी पाने की चाह हो तो फिर सच्ची लगन से उसको पाने जुट जाना चाहिए चाहे कितनी भी मुश्किलें आये रुकना या झुकना न चाहिए तो वो ईश्वर भी उसे देने मजबूर हो जाता तो इस तरह हरतालिका का ये कठोर व्रत-तप हमें बहुर सारी शिक्षायें देता जिन्हें ग्रहण कर हम अपना जीवन सफल बना सकते हैं इसी आशा के साथ सबको इस पर्व की अनेकानेक शुभकामनायें... :) :) :) !!!
   
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२४ अगस्त २०१७


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