शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

सुर-२०१७-२१४ : मानसून और ‘किशोर कुमार’ बिन सावन भी लगे बरसात...!!!


( हरफ़नमौला किशोर दाके जन्मदिन पर गीतों भरी श्रद्धांजलि... )

रिमझिम गिरे सावन, सुलग-सुलग जाये मन
भींगे आज इस मौसम में, लगी कैसी ये अगन...

वैसे भी सावन और बारिश को यादों का मौसम कहा जाता हैं उस पर अपनी प्रियतमा से दूर तन्हाई के आलम में खिड़की के पास उदास खड़ा अरमानबाहर आसमान से टपकती बूंदों को देख रहा था तो ऐसे में जैसे ही एफ. एम. पर इस गीत की स्वर लहरियां गूंजी तो गाने के बोलों ने उसे दिशासे हुई पहली मुलाकात की याद दिला दी जब एक रात ऐसी ही झमाझम बरसात में वो उससे अचानक टकरा गया था तो उस बारिश से बचती-बचाती शर्माती सकुचाती वो उसे बड़ी ही प्यारी एकदम चलती का नाम गाड़ीफ़िल्म की मधुबालाजैसी लगी तो होंठो पर अपने आप ये गीत आ गया...

एक लड़की भीगी-भागी सी
सोती रातों में जागी सी
मिली एक अजनबी से
कोई आगे न पीछे
तुम ही कहो ये कोई बात हैं...

उसके बाद उन दोनों का कहीं न कहीं इस तरह से मिलना-जुलना होता रहा कभी मार्किट में तो कभी बस या सड़क पर कहीं भी जिसने उनके मन में दबी प्रेम की चिंगारी को भड़का दिया तो फिर उन दोनों ने एक-दुसरे का परिचय व मोबाइल नंबर ले लिया जिसके मार्फत उनकी बातें शुरू हो गयी जिससे उन दोनों को एक-दुसरे को जानने-समझने का मौका मिल गया और जब इस जान-पहचान से उनकी आपस में अच्छी ट्यूनिंग बन गयी तो एक दिन ऐसी ही बरसात में उन दोनों ने कुछ इस तरह से अपने प्रेम का इज़हार किया...

काटे नहीं कटते ये दिन ये रात
कहनी थी तुमसे जो दिल की बात
लो आज मैं कहती हूँ... आय लव यू

प्यार की इस शुरुआत ने उन दोनों की हिचक तोड़ दी तो दोनों ने मिलकर भावी जीवन के सपने देखना शुरू कर दिया कि किसी प्राकृतिक स्थान पर उनका अपना छोटा-सा घर होगा जहाँ आस-पास हरियाली ही हरियाली और झूमता सावन होगा कि ये बारिश अब उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गयी थी बोले तो उनकी प्रेम कहानी का एक अहम किरदार जिसने उन्हें मिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तो फिर उससे जुड़ाव होना लाज़िमी ही था इसलिये जब भी बारिश होती वे जरुर मिलने का प्रोग्राम बनाते आज भी जोरदार बरसात में दोनों सडक पर मस्ती करते हुये जा रहे थे कि अचानक अरमानका पैर फिसल गया तो दिशाने उसे उठाने हाथ बढ़ाया तो उसने उसे भी अपने पास खींचकर गाना शुरू कर दिया...

आज रपट जाये तो हमें न उठइयो
हमें जो उठइयो तो खुद भी फिसल जइयो...

इस तरह हंसते-गाते उनके जीवन के दिन गुजर रहे थे और दूरियां नजदीकियों में बदल रही थी आखिर बारिश के मौसम में कोई किस तरह से खुद को संभाल सकता हैं जबकि उनके बीच प्यार भी गहरा हो तो बस, एक दिन वो उससे मिलने उसके घर पर गयी जहाँ वो अकेला ही रहता था कि तभी बारिश शुरू हो गयी तो दोनों छत पर जाकर भींगने लगे और मोबाइल पर बारिश के गीत लगा दिये जिसे सुनते-सुनते भींगने का मज़ा कुछ ज्यादा ही बढ़ गया तभी ये गीत बजा...

भींगी-भींगी रातों में ऐसी बरसातों में कैसा लगता हैं ?
ऐसा लगता हैं तुम बन के बादल मेरे बदन को भिंगो के मुझे छेड़ रहे हो...

इसने अरमानको थोड़ा अधिक रोमांटिक बना दिया तो उसने दिशासे उस रात वहीं रुकने की मनुहार की जिसे उसने टाल दिया और घर चली गयी पर, घर नहीं पहुंची कि उसी रात एक्सीडेंट में उसकी मौत हो गयी तब से अरमानअकेला उन दिनों को याद कर कभी रोता तो कभी हंसता हैं कि काश, उस दिन 'दिशा' ने उसकी बात मान ली होती तो आज वो दोनों साथ होते ।

उसके जाने के बाद उसने उसके सपनों का घर उसी तरह से बनाया जैसा कि वो हमेशा से चाहती थी चारों तरफ प्राकृतिक सुरम्य वातावरण हरे-हरे पेड़ पौधे, रंगीन फूल, सुंदर उड़ती तितलियां, चहचहाते पंछी, नदी में अठखेलियाँ करती सुंदर मछलियां और सबसे बढ़कर रिमझिम बरसता सावन सब कुछ उसके मन-मुताबिक था बस, वही नहीं थी तो ये सब और वो तराने जो उनके जीवन से जुड़े उसके होने का अहसास कराते थे तब अक्सर वो सोचा करता...

चिंगारी कोई भड़के तो
सावन उसे बुझाये
सावन जो अगन लगाये
उसे कौन बुझाये ???

अब ये विरह की अग्नि यूं ही अनवरत उसके सीने में जलती हुई उसे भी सुलगाती रहेगी जिसके साथ जलकर एक दिन वो भी अपनी 'दिशा' के पास पहुंच जाएगा इसी उम्मीद पर वो जुदाई के इन लम्हों की चिता बनाकर उस पर जीवित लेटा था कि बस, जल्दी से आखिरी सांस आये जो उसे 'दिशा' से मिलाये तो उसकी ये एकाकी तड़पन सुकूँ पाये ।

मेरे नैना सावन-भादो
फिर भी मेरा मन प्यासा...

उसके घर से निकली ये एक आवाज़ दूर तक गूंज रही थी ।
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०४ अगस्त २०१७

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