बुधवार, 16 अगस्त 2017

सुर-२०१७-२२६ : ‘आचार्य रामकृष्ण परमहंस’ बिखेर गये आध्यात्मिकता के अनेक रंग...!!!



हममें से अनगिनत हैं जो अक्सर ही ईश्वर की सत्ता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं और ये मानने से इंकार करते हैं कि ऐसी कोई शक्ति इस जहान में कहीं हैं भी इसकी वजह यही कि हमें ‘नास्तिकता’ सहज-सरल लगती जहाँ अपने अस्तित्व और इस सम्पूर्ण जगत के निर्माता को खारिज़ कर हम खुद को तनाव मुक्त महसूस करते तो हम आसानी से उसे अपना लेते क्योंकि आस्तिक बनने में तो परमपिता को तलाशना पड़ता... कभी अपने ही भीतर तो कभी किसी दिव्यात्मा के अंदर जो बेहद कठिन तो ऐसे में उससे नकारना ज्यादा सही समझते परंतु हमारे ही देश में उस अदृश्य परमेश्वर के ऐसे कई अनन्य उपासक और भक्त हुये जिन्होंने न केवल उन पर अटूट श्रद्धा व विश्वास किया वरन उनको साक्षात् महसूस भी किया और बिलकुल उसी तरह से उनके दर्शन किये जैसे कि हम एक-दूसरे को देखते हैं इनमें एक नाम ‘आचार्य रामकृष्ण परमहंस’ का भी हैं जिन्होंने माँ काली की इस तरह से पूजा-अर्चना या साधना ही नहीं बल्कि उनकी मौजूदगी पर इस तरह से आस्था रखी कि फिर वे भी उनके बुलावे पर किसी मित्र की तरह उनके सम्मुख प्रकट होने लगी और उनके द्वारा प्रदान किये गये भोग को उनके हाथों से ही स्वीकार करने लगी जब ‘नरेन्द्र दत्त’ जिन्हें ‘स्वामी विवेकानंद’ बनाने का श्रेय भी इन्ही गुरुदेव को जाता हैं की इनसे मुलाकात हुई और उन्होंने उनसे यही सवाल किया कि क्या अपने ईश्वर को देखा हैं तो उन्होंने क्या हाँ बिलकुल उसी तरह जैसे कि तुम मेरे सामने बैठे हो और मैं तुम्हें देख रहा हूँ तब उन्होंने बोला क्या आप मुझे भी उनसे मिलवा सकते हो तो उन्होंने कहा क्यों नहीं और फिर एक दिन उन्होंने अपना दिया ये वचन पूर्ण भी किया

आज के स्मार्ट युग में जबकि लोग सारा दिन अदृश्य तरंगों से चलने वाले विभिन्न यंत्रो या गेजेट्स के साथ अपना अमूल्य समय बिताते वे भी जब भगवान की उपस्थिति पर सवाल करते या उनके होने पर विरोध जताते तो हंसी आती कि मोबाइल में न दिखाई देने वाले नेटवर्क पर तो इनको पूर्ण विश्वास लेकिन इस संपूर्ण संसार को अपने सिग्नल्स से चलाने वाले गॉड पर अविश्वास याने कि केवल न दिखने के कारण वे ईश्वर को मानने से इंकार कर देते लेकिन इसी वजह से वाई-फाई या सिग्नल्स या नेटवर्क या तरंगों के अस्तित्व पर तो सवालिया चिन्ह नहीं लगाते याने कि प्रतिदान में कुछ मिल रहा तो विश्वास बरकरार यदि न मिले तो फिर अविश्वास यही लोग हवा या सुगंध के न दिखने पर तो ये नहीं कहते कि ये दुनिया में नहीं होती क्यों ? क्योंकि वो महसूस होती तो उसी तरह ईश्वर को भी जब अनुभूत किया जाता उनसे मिलने की उनके दर्शन की मन में तीव्र लालसा होती तो फिर उनको देख पाना कठिन नहीं होता इस बात को ‘परमहंस’ ने दक्षिणेश्वर काली मन्दिर, कलकत्ता में अपनी भक्ति की शक्ति द्वारा प्रमाणित भी किया जहाँ उन्होंने माँ काली को अपने सामने देखकर एक तरह से अपने उस विश्वास को ही सिद्ध किया जो उनके मन में बचपन से ही जड़ें जमाया हुआ था कि ईश्वर न केवल होता हैं बल्कि उसे साकार रूप में देखा भी जा सकता हैं केवल मन में उनको देखने की उतनी ही कामना हो जितनी कि उनको सामने आने के लिये मजबूर कर दे तो उन्होंने अपनी अटूट भक्ति से ये कारनामा आजीवन कर दिखाया              

उनका ये भी मानना था कि सब धर्म वास्तव में एक ही हैं और सबका मूल मंत्र यही हैं कि हम सब एक हैं और हमारे सबके भीतर उन्हीं का अंश समय हुआ हैं जिससे हम अनभिज्ञ होकर संसार की मोह-माया में खोये रहते और कुतर्कों से उनके अस्तित्व को नकारते जबकि हमारे न मानने से भी ये शाश्वत सत्य बदलने वाला नहीं हैं कि इस अखिल ब्रम्हांड को जिस तेजपुंज के द्वारा संचालित किया जा रहा वो इस जगत के रचयिता परमपिता ही हैं । उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन मानवता की सेवा में ही अर्पित कर दिया और अपने आध्यात्मिक अनुभवों को निचोड़ अपने पास आने वाले शिष्यों को निःस्वार्थ वितरित किया जिससे कि वे भी दूसरों को ये ज्ञान देकर अपना जीवन सार्थक बना सके तो ‘स्वामी विवेकानंद’ ने इस तरह से उनकी शिक्षाओं का विश्व में प्रचार किया कि अपने देश को ‘विश्वगुरु’ का दर्जा दिलवा दिया वो भी धर्म के माध्यम से ही अपने धर्म को सबके सामने यूँ साबित किया कि शिकागो सर्वधर्म सम्मेलन में दिया गया उनका वो व्याख्यान ऐतिहासिक बन गया । ऐसे राम जैसे मर्यादा के पालक, कृष्ण जैसे परम योगी और हंस की तरह नीर-क्षीर विवेक युक्त दिव्यात्मा ‘आचार्य रामकृष्ण परमहंस’ ने आज ही के दिन नश्वर देह को त्याग इहलोक से अपना नाता तोड़ उस सूक्ष्म जगत से जोड़ लिया तो आज उनकी पुण्यतिथि पर उनको यही शब्दांजलि... :) :) :) !!!
     
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१६ अगस्त २०१७

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