सोमवार, 28 अगस्त 2017

सुर-२०१७-२३८ : ‘ब्लू व्हेल’ से गर, बच्चे को हैं बचाना... तो, अपनी जिम्मेदारी को भी पड़ेगा समझना...!!!


मोबाइल की बेट्री का तो व्यक्ति बहुत ध्यान रखता जरा-भी खर्च हो तो तुरंत उसे रिचार्ज कर लेता परंतु खुद के शरीर की उतनी परवाह नहीं करता जिसे कि इतनी आसानी से रिचार्ज भी नहीं किया जा सकता और न ही देह के किसी पुर्जे के खराब होने पर उसे रिप्लेस किया जा सकता या खरीदा जा सकता कि जन्म से हमें जो प्राकृतिक नेमतें मिलती उन्हें हम ही व्यर्थ की बातों में गंवाकर कृत्रिम साधनों से अपने आपको धन्य समझते जबकि चाहे तो इन्हें ही सहेजकर रख सकते ताकि उनका अधिकाधिक सार्थक उपयोग किया जा सके फिर भी आये दिन ऐसी ही कितनी घटनायें देखने-सुनने या लोगों को गेजेट्स की वजह से मौत को गले लगाते देख भी हम संवेदनहीन बने रहते कि हमारे लिये अपनी लाइफ को एन्जॉय करना अपने तरीके से जीना ही एकमात्र लक्ष्य रह गया इसके इतर कुछ न तो देखना चाहते और न ही सुनना चाहते बल्कि इस तरह की हिदायतें या सीख देने वाले भी हमें अपने दुश्मन प्रतीत होते

इसलिये हम सबसे कटकर एकाकी जीवन के आदि होते जा रहे जहाँ एक परिवार के सदस्यों तक को एक-दुसरे की खबर नहीं यहाँ तक कि न्यूक्लियर फॅमिली में ही माँम-डेड को अपने एकलौते बच्चे तक के बारे में पता नहीं कि वो अकेले अपने कमरे में क्या कर रहा वे तो इस में ही खुश और संतुष्ट कि वे दिन-रात अथक मेहनत कर के अपनी सन्तान को वो लाइफ दे सके जो उनके पेरेंट्स उनको न दे सके उसके पास उसका अपना रूम, अपना मोबाइल, अपनी बाइक और अपना बैंक अकाउंट हैं पर, ये देखने की फुर्सत नहीं कि वो इन्हें किस तरह से यूज कर रहा हैं क्योंकि वे तो उसे शहर के सबसे महंगे और सुविधायुक्त स्कूल में पढ़ा रहे जहाँ सारी जिम्मेदारी उसे पढाने वाले टीचर्स की हैं और जो शेष रहा तो कोचिंग में वो कसर पूरी हो जायेगी आखिर यही तो आज के हर एक स्कूल जाते बच्चे की लाइफ स्टाइल हैं जहाँ वो सुबह से उठकर स्कूल चला जाता बिना ब्रेक-फ़ास्ट या लंच लिये कि उसके स्कूल में उसे सब कुछ प्रदान किया जाता तो माँ को इतनी भी जेहमत उठाने की भी जरूरत नहीं और पापा उनके पास तो टाइम ही नहीं रात देर से सोते तो सुबह भी देर से जागते जब तक बच्चा स्कूल जा चूका होता और जब वापस आते तो वो कोचिंग से आकर अपने रूम में स्टडी करने चला जाता कभी छुट्टी या वीकेंड पर ही उनकी बात हो पाती वो भी अब उसके टीन-ऐज के बाद मुश्किल हो गया कि अब इस वक़्त पर उसके दोस्तों का हक़ हो गया और फिर मम्मी-पापा का भी तो अपना सर्किल जिसे मेंटेन करना उनकी प्रायोरिटी और बच्चे की मोबाइल पर केवल खबर मिलना ही पर्याप्त कि वो अपने फ्रेंड्स के साथ हेप्पी लेकिन यही सब एक बड़ी अनहोनी के रूप में सामने आता तो अहसास होता कि उन्होंने कहाँ पर और क्या गलती कर दी

कुछ ऐसा ही ‘आर्य’ के माता-पिता भी महसूस कर रहे थे जब उन्हें खबर मिली कि उनकी एकमात्र संतान ने किसी कंप्यूटर गेम के चेलेंज को पूरा करने अपनी जान दे दी तो वे हैरत में पड़ गये कि उन्हें इस बात का अहसास क्यों नहीं हुआ कि वो किसी ऐसी गतिविधि में लिप्त हैं परंतु अब इतनी देर हो चुकी थी कि उसकी भरपाई किसी भी तरह संभव नहीं थी और वो सारे सुख के सामान, वो सभी आधुनिक यंत्र, वो सारी सम्पत्ति उन्हें मुंह चिढा रही थी कि जिसके भविष्य को सुरक्षित करने उन्होंने ये सब कमाने अपने आपको दांव पर लगा दिया वो ही अब इस दुनिया में नहीं बचा इन सबमें उनसे कहाँ पर और क्या मिस्टेक हो गयी जो उनका बच्चा एक कंप्यूटर गेम के कारण उन्हें छोडकर चला गया पर, सर को दोनों हाथों से पकड़कर सोचते भी रहे वो दोनों लेकिन तब भी ये नहीं जान पाये कि जिन हाथों से उन्हें अपने इकलौते बेटे को सहेजना था उससे वे कमाने में ही लगे रहे और जो समय बचा तो उसे मोबाइल चलाने में व्यस्त रहे लेकिन उसे बढ़कर गले लगाना या सीने से चिपकाकर सोना ही भूल गये कि वो जगह मोबाइल ने ले ली और हद्द तो तब हो गयी जब उन्होंने ये लत उसे भी लगा दी कि वो भी पढ़ाई से बचे टाइम को एन्जॉय कर सके और बिज़ी भी रहे जिस तरह उनके माता-पिता ने टी.वी. के जमाने में भी उनको कसकर रखा और टाइम टेबल के अनुसार ही देखने दिया तो वो कुछ बन सके और उनकी आँखें भी बची रही जबकि उनके बेटे को तो इसकी वजह से अभी से ही चश्मा लगा गया था लेकिन ये सब समझने में इतनी देर हो गयी कि अब इसका कोई अर्थ नहीं रहा या शायद हो सकता यदि वे किसी और बच्चे को इसका शिकार न होने दे और इस सोच ने उन्हें दिशा दिखाई तो वे चल पड़े उस मार्ग पर अकेले ही... :) :) :) !!!  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२८ अगस्त २०१७

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