बुधवार, 2 अगस्त 2017

सुर-२१३ : लघुकथा : इच्छा-मृत्यु !!!



‘परिधि’ के माता-पिता ने उसकी इच्छा जानने के बाद भी उसकी मर्जी के विपरीत उसकी शादी उस लडके से कर दी जिसे उन्होंने पसंद किया था क्योंकि जिससे वो करना चाहती थी वो उन्हें पसंद नहीं था क्योंकि उसकी जॉब प्राइवेट थी जबकि जिसे उन्होंने चुना वो सरकारी नौकरी में था नौकरी के स्थायित्व को देखते हुए उन्हें ये रिश्ता ठीक लेगा ऐसे में यदि ‘परिधि’ को अपने मन को मारना पड़े तो ये कोई बड़ी बात नहीं वैसे भी लडकियों की मर्जीं उनकी नजर में कोई मायने नहीं रखती आखिर, बच्चों में दूरदर्शिता या समझदारी कहाँ तो उसकी शादी वहां की जहाँ वो चाहते थे

इन सब तनाव व परेशानी के बीच कब चट मंगनी पट ब्याह कर वो पराई हो गयी उसे पता ही न चला वो तो जब घर की जिम्मेदारियां और सारा काम-काज उस पर आन पड़ा तो उसे अहसास हुआ कि इन सबके साथ-साथ उसे नौकरी में सामंजस्य बिठाने में दिक्कतें आ रही हैं क्योंकि जहाँ उसके पति ‘विशेष’ के जीवन में कुछ ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ था वही उसकी पूरी जिंदगी ही बदल गयी थी कहाँ वो देर तक सोकर उठने पर बिस्तर ही चाय पीने वाली अब सुबह-सुबह दूधवाले की घंटी से जागती और फिर घड़ी की सुइयों के साथ रेस करती हुई सारे काम निपटा बमुश्किल ऑफिस पहुँच पाती जबकि ‘विशेष’ को तो सब कुछ हाथों में मिलता तो वो तो समय पर ही निकल जाता ऐसे में उसने उससे बात कर काम में उसका हाथ बंटाने की बात कही तो उसका जवाब सुनकर सन्न रह गयी कि उसकी नौकरी काफी हैं दोनों का खर्च चलाने तो वो अपनी नौकरी छोड़ दे उसने उसे याद दिलाया कि शादी के पहले तो उन्होंने वादा किया था कि उसे नौकरी करने देंगे तो वो बोला, वो शादी के पहले की बात हैं उसे जाने दो और आखिरकार घर और जॉब में चुनाव करने पर उसे नौकरी छोडनी पड़ी

उसके बाद जब उसके माँ बनने की खबर मिली तो सास जबरदस्ती ने सोनोग्राफी करा कर जब कन्या भ्रूण का पता चला तो जबरन उसका गर्भपात करवा दिया तब उसे लगा कि भले ही उसकी देह के अंश को उसकी इच्छा के विरुद्ध मारा गया लेकिन उसकी इच्छाओं का गर्भपात तो उसके जन्म से ही शुरू हो गया था जब उसने एक लड़की के रूप में जन्म लिया ये तय हो गया था कि कभी भी परिवार में उसकी इच्छा किसी के आड़े आयेगी तो बलिदान उसे ही देना होगा और धीरे-धीरे उसने अपनी माँ की तरह ही इच्छाओं को मारना सीख लिया था कि विरोध करने पर अपने ताउजी की बेटी को परिवार की इज्जत के नाम पर मरते देख चुकी थी इसलिये अपनी इच्छाओं को मारते हुये खुद को तिल-तिल मरते देखने भी अभिशप्त थी          

एक दिन उसने महसूस किया कि इन सब हादसों ने उसके मन से मृत्यु का भय निकाल दिया हैं तो अगली बार जब उसे अपनी प्रेग्नेंसी की खबर लगी तो उसने मन में कड़ा निर्णय ले किया कि चाहे जो हो वो उसे यूँ बेमौत न मरने न देगी फिर चाहे ये सब मिलकर उसकी जान ही क्यों न ले ले वो अकेले दम पर ही सबका मुकाबला करेगी और नौकरी कर के अपने बच्चे को पालेगी लेकिन, इच्छा को मरने न देगी तो जब सास ने सोनोग्राफी की बात कही उसने अपना निर्णय सुना दिया तो अपने इंकार के बाद जिस जलजले के आने की उम्मीद थी उसे न पाकर उसे लगा कि सचमुच डर का सामना करने से जीत हासिल होती हैं और इस नये विश्वास ने उसे आगे बढने का हौंसला दिया यूँ लगा उसे मानो उसका नया जन्म हुआ हैं सच, कभी-कभी डर की अति से साहस पैदा होता जब इंसान मौत को जीते-जी स्वीकार कर लेता ऐसे में ‘इच्छा-मृत्यु’ जो कभी उसके लिये अभिशाप थी एकाएक वरदान बन गयी
      
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०२ अगस्त २०१७

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