शनिवार, 19 अगस्त 2017

सुर-२०१७-२२९ : ‘अछूत’... देह नहीं, जाति होती...!!!



लगी अछूत
जो देह सुबह-सुबह
दाखिल होती मंदिर में
तो झटककर कर दिया बाहर
मारकर चार ताने

रात हुई तो
हो गयी पावन वही
अछूत देह
खड़ी थी जो झोपड़ी के पास
करते हुये इंतज़ार
खींचकर कर लिया अंदर
कर के चार बहाने

बदलते ही
दिन ने रात में
बदल दिये देह के मायने ।।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१९ अगस्त २०१७

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