बुधवार, 30 अगस्त 2017

सुर-२०१७-२४० : चाही थी बस, एक इज़ाजत... लेकिन, खुशियों पर भारी पड़ी इज्ज़त...!!!


‘अमीषा’ कभी फूलों पर तितलियों के पीछे भागना चाहती थी तो कभी गुब्बारे की डोर थाम उड़ना चाहती थी तो कभी उसका मन करता कि जोर-जोर से हंसे या किसी ठेले पर खड़ी होकर गोलगप्पे खाये लेकिन इनमें से वो कोई भी काम नहीं कर सकती थी कि उसके नाम के साथ उसके माता-पिता की इज्जत जुडी थी जो पतंग के मांजे से भी ज्यादा कच्ची थी तो उसके कटने का डर हमेशा बना रहता था आखिर उसके पिता उस नगर की नामी-गिरामी शख्सियत ही नहीं बल्कि खानदानी व्यक्ति थे जिनकी सात पुश्तों में किसी लड़की ने अकेले घर के बाहर कदम निकाला नहीं और न ही सामान्य लडकियों की तरह की ही कोई हरकत की क्योंकि उनको देखकर ही तो दूसरे परिवारों के भी नियम-कायदे तय होते थे तो ऐसे में उसकी किसी भी ऐसी छोटी-मोटी ख्वाहिश को पूरा करने देना या उसे किसी भी तरह की स्वतंत्रता देना उनकी मान-मर्यादा पर बट्टा लगा सकता था तो इन हालातों में अपनी छोटी-से-छोटी इच्छा को उसे मन में ही रखना पड़ता था क्योंकि अपनी मनमर्जी करने की सज़ा उसे बचपन से ही मिलना शुरू हो गयी थी

जब उसने भाई की तरह बाहर जाकर पढ़ने की जिद की तो उसको किसी बड़े शहर न भेजकर उस छोटे शहर की सामान्य गर्ल्स कॉलेज में ही दाखिल किया गया जहाँ उसे रोज जाने की भी जरूरत नहीं थी कि वो घर पर ही पढ़ सकती थी इस तरह खुद को मारते-मारते उसे अपनी जिंदगी नीरस-सी लगने लगी थी जिसमें कोई उत्साह ही नहीं था क्योंकि परिवार के बाकी सदस्य तो इसे स्वीकार कर चुके थे पर, उसके भीतर शुरू से ही विद्रोह की भावना थी तो हर बात में तर्क-वितर्क करती जिससे अक्सर उसे मार भी पडती और बाकी लोगों की तुलना में उसको अधिक पाबंदियों में रखा जाता था । इतनी सारी सख्तियों के बाद भी उसने वो किया जो उसके इज्जतदार खानदान में आज तक किसी ने नहीं किया था याने कि प्रेम जो कहने को तो घर के रिश्तेदार से ही हुआ था लेकिन फिर भी जब ये भेद सब पर खुला कि वो अपनी मामी के भाई को चाहती हैं तो ये बात किसी को हजम न हुई कि उनके अनुसार वो भी उसका मामा ही हुआ जबकि उसका कहना था कि जब मामी को वो लोग अलग खानदान का समझते तो फिर उसका रिश्ता किस तरह हो सकता लेकिन किसी ने उसकी न सुनी । उस जबरदस्ती एक कमरे में बंद कर दिया जहाँ उसे खबर मिली कि जिसे वो चाहती थी वो अब इस दुनिया में नहीं हैं तो उसके पास सिवाय रोने के कोई विकल्पं न बचा उसने मरने की सोची पर, वो कायर नहीं थी तो उस दुःख को सहकर जिंदा तो थी लेकिन झूठी इज्जत के खिलाफ अपनी जंग जारी रखी ।            
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

३० अगस्त २०१७

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