गुरुवार, 31 अगस्त 2017

सुर-२०१७-२४१ : प्रेम की अनंत खोज... साहिर-अमृता और इमरोज...!!!



‘प्यार’ शब्द को जहाँ बोल पाना भी गुनाह समझा जाता उस समाज में वो भी उस जमाने में जबकि किसी स्त्री का इतनी मुखरता से अपने मनोभावों को उजागर कर पाना आसान नहीं था तब भी ‘अमृता’ ने अपनी कलम से अपने ही नहीं अपने जैसी समस्त स्त्रियों के जज्बातों को खुलकर बयान किया और उनके तन-मन में वो जोश भरा कि उनकी प्रेरणा पाकर वे भी अपनी संवेदनाओं को उसी तरह से अभिव्यक्त कर सके जैसा वे महसूसती कि हर तरह के एहसासों से भी भी तो उसी तरह से गुजरती जिस तरह से आदम जात गुजरता तो फिर क्यों एक को तो अपनी भावनाओं को हर तरह से ज़ाहिर करने का पूर्ण अधिकार होता लेकिन जिसके भीतर जज्बातों का समंदर हिलोरें मारता हो उसे ही अपनी जुबान सिलकर रखने को कहा जाता था तो इस तरह की बंदिशों को तोड़ने में ‘अमृता प्रीतम’ का नाम शीर्ष में रखा जा सकता हैं जिन्होंने एक निश्चित परिपाटी को तोड़कर अपनी एक अलग ही राह बनाई जिसकी वजह से उनकी अपनी एक अलग पहचान बनी और इसके पूर्व किसी भी स्त्री लेखिका को जो मान-सम्मान या स्थान नहीं मिला था वो उनको मिला कि उन्होंने अपने आपको एक खुली किताब की तरह सबके सामने प्रस्तुत किया जिसमें कोई दुराव-छिपाव नहीं था जबकि उस वक्त पुरुष भी इतने बिंदास तरीके से अपनी बात को कह पाने में कहीं न कहीं कुछ संकोच महसूस करते थे लेकिन उन्होंने अपने जीवन की हर एक कहानी अपने हर एक अनुभव को जिस तरह से सबके साथ सांझा किया वो काबिले तारीफ हैं कि वो कालखंड जब औरत ‘प्रेम’ को खुद जीती नहीं थी सिर्फ़ अपने प्रेमी की नजरों में ही उसकी झलक पाकर उस की अनुभूति करती थी तब ‘अमृता’ ने न केवल ‘इश्क़’ चखा बल्कि सारे ज़माने के सामने उसे स्वीकार भी किया कि ‘अम्बर की एक पाक सुराही बादल का एक जाम उठाकर घूंट चांदनी पी है हमने बात कुफ़्र की की है हमने’ पर, कोई बात नहीं जब जाम पी ही लिया तो पी लिया फिर क्यों मुंह छिपाना, शर्म से घर के किसी कोने में चुपचाप बैठ जाना क्यों न उस स्वाद का जिक्र करना लोगों को बताना कि ये कोई गुनाह तो नहीं रब की नेमत हैं जो सबको तो नहीं मिलती फिर जिसे मिलती उसे क्यों ये समाज ये अहसास करता कि उसने कोई अपराध किया हैं? क्यों उसे सज़ा देता ? क्यों वो खुद ये तय करता कि उसे अपने मज़हब में ही इसे करने की इज़ाजत और जो गैर-जात में ऐसा किया तो फिर सूली पर चढने तैयार रहे याने कि अपने जीवन ही नहीं दिल पर भी उसका कोई अख्तियार नहीं उसे तो बस, समाज के हिसाब से ही जीना चाहिए जो उसके विपरीत कोई काम किया तो उसका भुगतमान भी करना चाहिये ऐसी विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने दिल की सुनी अपने जीवन को अपने ही ढंग से जिया तभी तो आज उनके जन्मदिन पर हमने उनको याद किया... :) :) :) !!!
          
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

३१ अगस्त २०१७

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