गुरुवार, 17 अगस्त 2017

सुर-२०१७-२२७ : ‘अखंड भारत’ न हमने कभी देखा... कि बाँट गयी उसे खंडो में ‘रेडक्लिफ रेखा’...!!!



कभी ये देश अपने विस्तृत भूमिक्षेत्र, विभिन्न धर्मो के आपसी भाईचारे से मिलकर रहने व अपनी विशाल आबादी के कारण खुद पर गर्व करता था उसकी वो गौरवशाली परम्पराएँ, उसकी वो भिन्न धार्मिक मान्यतायें, वो अलग-अलग जातियां जो सभी मतभेदों के बाद भी एकजुट होकर प्रेम से रहती थी उसकी शान थी और उसे ये देखकर गर्व होता था कि उसके आंगन की फुलवारी में तरह-तरह के फूलों ने खिलकर उसकी शोभा बाधा रखी थी लेकिन जब अंग्रेजों की इस प्राकृतिक संपदा से भरे ‘सोने की चिड़िया’ कहलाने वाले देश पर नजर पड़ी तो यहाँ के लोगों की नासमझी, भोलापन और लापरवाही का फायदा उठाकर उसने उन्हें अपना गुलाम बना लिया और लगभग २०० से अधिक वर्षों तक उनको अपने कब्जे में रखा और अनगिनत शहादतों के बाद उसे आज़ाद का तोह्फा भी किया तो साथ में टुकड़े-टुकड़े कर असहनीय दर्द भी साथ में दिया जिसे भारत माता ने बड़ी पीड़ा के साथ सहन किया कि उसके पास सिवाय मूक होकर देखने के कोई विकल्प ही नहीं बचा था

पराये लोगों ने केवल उस पर शासन ही नहीं किया बल्कि उसकी ताकत अनेकता में एकता को कमजोर करते हुये उसे धर्म के नाम पर दो हिस्सों में विभाजित किया एक का नाम ‘हिंदुस्तान’ तो दूसरे का ‘पाकिस्तान’ रखा और १४ अगस्त १९४७ को जहाँ ‘पाकिस्तान’ का जन्म हुआ तो १५ अगस्त १९४७ को ‘हिंदुस्तान’ को आज़ादी का फ़रमान मिला उसके साथ ही ‘सिरिल रेडक्लिफ’ को ये जिम्मेदारी सौंपी गयी कि वो इस देश को इस तरह से दो हिस्सों में बांटे कि दोनों को बिल्कुल एक समान ही हर चीज़ प्राप्त हो तो उस व्यक्ति ने जिसे कि इस देश की सांस्कृतिक विरासत या इनकी जातिगत विभिन्नता की कोई विशेष जानकारी नहीं थी सिवाय इसके भौगोलिक क्षेत्रफल के ज्ञान के उसे कुछ भी न ज्ञात था तो उस देश को एक रेखा के द्वारा खंडित करने का कार्यभार इनके कंधों पर था तो उन्होंने अपनी सूझ-बूझ दिखाते हुये १७ अगस्त १९४७ को उसे ‘रेडक्लिफ रेखा’ के माध्यम से कुछ ऐसा बांटा कि सिर्फ एक देश ही नहीं भारतमाता की देह से उसके अंगों की भी पृथक कर दिया था
         
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१७ अगस्त २०१७

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