गुरुवार, 3 अगस्त 2017

सुर-२१३ : शोध आलेख : अब हो कम्प्यूटिंग भी... ‘इको फ्रेंडली’ !!!




अनुक्रम
·       प्रस्तावना
·       विषय की आवश्यकता
·       ग्रीन कंप्यूटिंग का प्रारंभ  
·       ग्रीन कंप्यूटिंग के लक्ष्य
·       ग्रीन कंप्यूटिंग हेतु सुझाव  
·       भारत में ग्रीन कंप्यूटिंग
·       संदर्भ सूची

१.    प्रस्तावना :

हम सभी ये अच्छी तरह से जानते हैं कि ‘वि‍ज्ञान’ एक तरफ यदि ‘वरदान’ हैं तो दूसरी तरफ ‘अभिशाप’ भी हैं क्योंकि विज्ञान में होने वाले नवीन अवि‍ष्‍कारों से जितना मानव जीवन सहज-सरल बनता हैं उतना ही हमारा पर्यावरण दूषि‍त होता है। वर्तमान समय के इस अत्याधुनिक तकनीकी युग में तो ये उक्ति और भी तर्कसंगत हो गयी हैं क्योंकि अब हम सब उच्च तकनीकों से युक्त यंत्रों का न केवल धड़ल्ले से प्रयोग कर रहे हैं बल्कि अपन साथ-साथ वातावरण को भी प्रदूषित बना रहे हैं फिर भी हमें ये कहना पड़ेगा कि ये एक ऐसा तकनीकी युग हैं जहाँ पर एक साथ वातावरण पर वि‍परीत प्रभाव डालने वाले उत्‍पाद और सेवाएँ बाजार में उपलब्ध हैं तो उनके प्रभाव से पर्यावरण को बचाने वाली तकनीकें भी मौजूद हैं।

इस तरह की अनेक तकनीकों में से एक नवीनतम तकनीक है ‘ग्रीन कंप्‍यूटिंग’ जो ऐसी तकनीक है जि‍समें कि ‘कंप्‍यूटर’ / ‘मोबाइल’ और उससे संबंधि‍त उपकरणों या साधनों का उपयोग इस तरह से किया जाता हैं कि पर्यावरण का नुकसान नहीं के बराबर हो अतः ‘ग्रीन कंप्‍यूटिंग’ को बढ़ावा देने हेतु इस तरह के कम्प्यूटर्स, मोबाइल्स, गेजेट्स, सर्वर्स और इलेक्ट्रोनिक उपकारणों का वि‍कास कि‍या जाता है जिनसे कि बिजली की खपत कम से कम हो और वायुमंडल में ऊष्मा का स्तर बढ़े नहीं क्योंकि वातावरण में इन सब इलेक्ट्रोनिक उपकरणों से जि‍तनी अधिक मात्रा में बि‍जली उत्‍सर्जि‍त होती है उतनी ही कार्बन डाई ऑक्‍साइड भी वातावरण में फैलती है जि‍ससे कि पर्यावरण प्रदूषि‍त होता है। अतः इस तकनीक में ऐसे उत्‍पादों का निर्माण व उपयोग कि‍या जाता है जि‍न्‍हें खराब होने पर फि‍र से बनाया जा सके या रि‍सायकल कि‍या जा सके तथा इसके साथ ही ‘ग्रीन कंप्यूटिंग’ इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों के कम से कम इस्तेमाल को प्रेरित करती हैं साथ ही ऐसी तकनीक भी विकसित करती हैं कि इन यंत्रों से उत्पन्न होने वाले इलेक्‍ट्रॉनि‍क कचरे का भी उचि‍त तरीके से नि‍पटारा कि‍या जा सके ।

२.    विषय की आवश्यकता :

एक अध्‍ययन के मुताबि‍क दुनि‍या भर में रोजाना लगभग 50 करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट पर सर्फिंग करते हैं और इस दौरान वे तरह-तरह की जानकारी खोजा करते हैं । इस सर्च के दौरान इंटरनेट विभिन्न सर्वरों पर ढूंढे गये शब्‍द से संबंधि‍त सामग्री वाली वेबसाइटों को ढूंढता है और फिर इन सभी वेब पेजों को उपयोगकर्ता के समक्ष रखता हैं जिसे देखकर हम सब बड़े प्रसन्न होते हैं लेकिन हम सब ये नहीं जानते कि सर्चिंग प्रोसेस से बहुत बड़ी मात्रा में कार्बन डाई ऑक्‍साइड (CO2) गैस का उत्‍सर्जन होता है। सभी सर्वरों पर लगभग भारी मात्रा में सामग्री संचित होती है जि‍सकी वजह से ये सर्वर्स बहुत अधिक लोडेड होते हैं अतः इ‍न्‍हें लगातार चलाने और ठंडा रखने के लि‍ए बहुत अधिक मात्रा में बि‍जली की आवश्‍यकता होती है जो अंतत: पर्यावरण पर हानि‍कारक प्रभाव डालती हैं।

आज के इस तकनीकी और अत्याधुनिक युग में हम हर तरफ पर्यावरण सरंक्षण की बात सुनते हैं और साथ ही लोगों को इसके लिये प्रयत्न करते भी देखते रहते हैं क्योंकि जिस तरह से ‘ग्लोबल वार्मिंग’, ‘प्रदुषण’, ‘ई-वेस्ट’, ‘वन कटाई’ प्रकृति को नुकसान पहुँचा रही हैं यदि जल्द से जल्द सजग होकर उसकी भारपाई न की गयी तो एक दिन उसके साथ-साथ हमारे अस्तित्व पर भी संकट आ जायेगा जिसके संकेत मिलने तो हमें प्रारंभ भी हो चुके हैं । इसके अतिरिक्त अत्याधुनिक तकनीक का लाभ उठाने अपनी सुविधा के लिये अपनाये गये आधुनिक यंत्रों, गेजेट्स और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस ने भी कई तरह की नई समस्याओं को जनम दिया हैं और हमने फिर एक बार विज्ञान को वरदान की जगह अभिशाप बना लिया हैं । आये दिन इन गेजेट्स के कारण होने वाली परेशानियों की कोई न कोई खबर हमें देखने या सुनने मिलती हैं जो इस बात का आगाह करती हैं कि अब भी यदि हम न संभले तो फिर एक दिन खुद को मिटते देखने के सिवा कोई भी उपाय शेष न रहेगा ऐसी परिस्थितियों के चलते लोगों में इसके प्रति जागरूकता दिखाई दे रही हैं ।

इसी का परिणाम हैं कि हम हर चीज़ के साथ अब एक नया शब्द ‘इको-फ्रेंडली’ जुड़ा हुआ देखने लगे हैं जो इस बात का प्रतीक हैं कि जिस भी नये अविष्कार या वस्तु का प्रयोग हम कर रहे हैं वो प्रकृति के लिये हानिकारक नहीं हैं । ऐसे में जबकि सभी उत्पाद ‘इको-फ्रेंडली’ होने लगे हैं तो ये आवश्यक हैं कि आधुनिकतम यंत्र भी इस तरह से निर्मित कर उपयोग में लाये जाये कि वो हमारे पर्यावरण को किसी भी तरह का नुकसान न पहुंचाये । ‘आवश्यकता अविष्कार की जननी हैं’ को सार्थक सिद्ध करते हुये हमने ‘कंप्यूटिंग’ को भी ‘इको फ्रेंडली’ बना लिया हैं और उसके लिये एक नवीनतम शब्द ‘ग्रीन कंप्यूटिंग’ का इजाद भी कर लिया हैं जो स्वतः ही ये सिद्ध करता हैं कि हम अपने पर्यावरण के प्रति अत्यंत सजग हैं । जो भी तकनीक विकसित की गयी हैं वे हमारे लिये बहुउपयोगी ही नहीं बल्कि सहायक की भांति हैं जिनकी उपेक्षा करना या उन्हें अनुपयोगी रखना न केवल उन अविष्कारों बल्कि उसे बनाने वाले अविष्कारकों का भी अपमान हैं अतः ऐसे विकल्पों या उपायों की खोज की जा रही हैं जिनसे हम इन संसाधनों का भी लाभ ले सके और हमारे वातावरण को भी कोई हानि न पहुंचे ।

ऐसी स्थिति ने ही हमें ‘ग्रीन कंप्यूटिंग’ या ‘इको-फ्रेंडली कंप्यूटिंग’ का रास्ता दिखाया जिसकी वजह से अब हम जीव-जंतु, पेड़-पौधों और मानवों के लिये हानिकारक गेजेट्स को इस तरह से प्रयोग में लायेंगे कि वो उनके दुष्प्रभावों से बच सके और उनकी हानिकारक तरंगे या अपविष्ट वायुमंडल को कम से कम बल्कि एकदम न के बराबर नुकसान पहुंचाये । ‘ग्रीन कंप्यूटिंग’ या ‘इको फ्रेंडली कंप्यूटिंग’ को निम्न तरह से परिभाषित किया गया हैं-

कम्प्यूटरों, सर्वरों, मोबाइल और संबंधित उपकरणों-जैसे कि मॉनिटर, प्रिंटर, स्टोरेज़ उपकरण और नेटवर्क तथा संचार संबंधी प्रणालियों की डिज़ाइनिंग, निर्माण, प्रयोग तथा निपटान का अध्ययन तथा अभ्यास-जो कुशल व प्रभावशाली है तथा जिसका वातावरण पर पड़ने वाला प्रभाव न के बराबर या नगण्य है – ‘ग्रीन कंप्यूटिंग’ या ‘इको फ्रेंडली कंप्यूटिंग’ या ‘ग्रीन आई.टी.’ कहलाता हैं”।

३.     ग्रीन कंप्यूटिंग का प्रारंभ :

‘ग्रीन कंप्‍यूटिंग’ की शुरुआत आज से लगभग 25 साल पहले 1992 में अमेरि‍का में की गई थी जब वहाँ एन्‍वायरमेंटल प्रोटेक्‍शन एजेंसी द्वारा एक स्‍वैच्‍छि‍क लेबलिंग कार्यक्रम चलाया गया और उसे नाम दिया गया 'एनर्जी स्‍टार' । इस तरह के प्रोग्राम को शुरू करने के पीछे उद्देश्य यही था कि जो भी हार्डवेयर हम अपने प्रयोग में लाते हैं उनसे ऊर्जा की अधिकतम बचत हो अतः इसे बढ़ावा देने तरह-तरह के प्रयोग किये गये । इस ‘एनर्जी स्टार प्रोग्राम’ के बाद ही शायद "ग्रीन कंप्यूटिंग" शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया गया और 1992 के बाद से ही ऐसे कई ‘यूज़नेट’ (USENET) उपलब्ध हैं जो कि इस शब्द का प्रयोग इस सन्दर्भ में करते हैं। इसके परिणामस्वरूप इलेक्ट्रॉनिक्स उपभोक्ताओं ने व्यापक रूप से ‘स्लीप मोड’ (ऊर्जा की खपत को कम करने वाली प्रणाली) को अपनाया और अब ‘एनर्जी स्‍टार लेबल’ लगभग सभी तरह के इलेक्ट्रोनिक उपकरणों के साथ-साथ कंप्‍यूटर्स और अन्य गेजेट्स में बहुत आम हो चुका है।

इस तरह के कार्यक्रमों ने अन्य कम्पनियों को भी प्रेरित किया कि और फिर स्वीडिश संगठन टी.सी.ओ. डेवलेपमेंट (TCO Development) ने कंप्यूटर में डिस्प्ले हेतु सी.आर.टी. (CRT) के स्थान पर कम चुम्बकीय तथा विद्युत् उत्सर्जन करने वाले डिस्प्ले को बढ़ावा देने के लिए टीसीओ सर्टिफिकेशन (TCO Certification) प्रोग्राम शुरू किया और फिर बाद में इस प्रोग्राम का दायरा बढ़ा कर इसमें ऊर्जा की खपत, एर्गोनॉमिक्स तथा निर्माण सामग्री में खतरनाक पदार्थों के प्रयोग को भी शामिल किया गया।

४.    ग्रीन कंप्यूटिंग के लक्ष्य :

‘ग्रीन आई.टी.’ या ‘ग्रीन कंप्यूटिंग’ का उद्देश्य केवल कंप्यूटर के द्वारा होने वाले पर्यावरण नुकसान को ही कम करना नहीं था बल्कि इसके साथ कई अन्य छोटे-छोटे लक्ष्यों को भी जोड़ा गया जिनके माध्यम से कंप्यूटिंग को इको फ्रेंडली बनाने के साथ-साथ संपूर्ण वायुमंडल की सुरक्षा की जा सके

इसके महत्वपूर्ण लक्ष्य इस प्रकार हैं-

·       किसी भी यंत्र या उपकरण में इस्तेमाल होने खतरनाक पदार्थों की मात्रा को सीमित या कम करना
·       किसी भी तरह के उत्पाद की जीवन अवधि को बढ़ाना ताकि उसे अधिकतम उपयोग में लाया जा सके तथा इस अवधि में के ऊर्जा की बचत को भी बढ़ाना
·       कारखानों से निकलने वाले कचरे और मृत पदार्थों की रीसाइक्लिंग प्रक्रिया या जैविक अपघटन की गति को तेज करना  

सामग्री उत्पादन के कई प्रमुख क्षेत्रों में इस तरह के अनुसंधान अभी भी चल रहे हैं और इस तरह के एल्गोरिथ्म तथा प्रणालियां डिज़ाइन करने के प्रयास किये जा रहे जो इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक हो सके    

५.    ग्रीन कंप्यूटिंग हेतु सुझाव :

प्रमुख साइंटिस्ट ‘गार्टनर’ का कहना हैं कि किसी भी पी.सी. (PC) के जीवन चक्र में प्रयुक्त होने वाले 70% प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग पी.सी. (PC) की निर्माण प्रक्रिया में होता है इसलियेग्रीन कंप्यूटिंग’ के लिए सबसे बड़ा योगदान उपकरणों के जीवनकाल को लम्बा करके किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, किसी भी पुराने PC को एक नये PC से अपग्रेड करने के बजाय केवल रैम (RAM) मॉड्यूल को बदलना पर्यावरण पर कम प्रभाव डालता है तथा इस तरह से कंप्यूटर को अपग्रेड करने पर उपयोगकर्ता को नया कंप्यूटर भी नहीं खरीदना पड़ता जिससे मनी की भी बचत होती हैं

कंप्यूटर में कुछ ऐसे भी प्रोग्राम होते हैं जो उपयोगकर्ता को सी.पी.यू. (CPU) द्वारा होने वाली विद्युत आपूर्ति को मैन्युअल तरीके से समायोजित करने की अनुमति देते हैं, जिससे कि उत्पन्न होने वाली ऊष्मा की मात्रा तथा बिजली की खपत, दोनों में ही काफी कमी आती है इस प्रक्रिया को अंडरवोल्टिंग (undervolting) कहा जाता है। कुछ सी.पी.यू. (CPU), प्रोसेसर को काम के बोझ के अनुसार स्वचालित रूप से ‘अंडरवोल्ट’ कर सकते हैं  इस तकनीक को इंटेल (Intel) के प्रोसेसरों पर "स्पीडस्टेप" (SpeedStep), ए.एम.डी. (AMD) के चिप्स पर "पॉवरनाउ" (PowerNow!) / "कूल'एन'क्वाइट" (Cool'n'Quiet), वी.आई.ए. (VIA) के सी.पी.यू. (CPU) पर लाँगहॉल (LongHaul) और ट्रांसमेटा (Transmeta) के प्रोसेसरों के साथ लाँगरन (LongRun) कहा जाता है।

कंप्यूटर में इस्तेमाल होने वाले मुख्य डेस्कटॉप ऑपरेटिंग सिस्टम, माइक्रोसॉफ्ट विन्डोज़ (Microsoft Windows) ने विन्डोज़ 95 (Windows 95) के बाद से सीमित पी.सी. (PC) ऊर्जा प्रबंधन वाली सुविधाएं शामिल की हैं। इसके बाद के संस्करणों में विन्डोज़ (Windows) में हाइबरनेट (hibernate) तथा ए.सी.पी.आई. (ACPI) मानकों के लिए सुविधा दी गयी। ऊर्जा प्रबंधन का प्रयोग करने वाली विन्डोज़ 2000 (Windows 2000) पहली एनटी (NT) आधारित ऑपरेशन प्रणाली थी। थर्ड पार्टी पी.सी. बिजली प्रबंधन सॉफ्टवेयर का भी एक महत्वपूर्ण बाजार है जो विन्डोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम से कुछ अलग सुविधाएं प्रदान करता है।

कंप्यूटर यूजर्स और व्यवसायियों को कंप्यूटर पर काम करने की अपनी पुरानी शैली में परिवर्तन करना चाहिये जि‍ससे कि वातावरण पर होने वाले इलेक्ट्रॉनि‍क दुष्प्रकभावों से बचा जा सके। इनमें से कुछ सुधार नीचे दि‍ए गए हैं---

१.    छोटे आकार (उदाहरण 2.5 इंच) की हार्ड डिस्क ड्राइव अक्सर आकार में बड़ी ड्राइवों से प्रति गीगाबाइट बिजली की कम खपत करती हैं तो उन्हें ही प्राथमिकता देना चाहिये ।
२.    जब भी आप कंप्यू‍टर पर काम नहीं कर रहे हैं तो उसके सी.पी.यू. और अन्य उपकरणों को बंद कर देना चाहिये ताकि बिजली बचे ।
३.    कंप्यूटर में किये जाने वाले अपने सारे काम एक साथ नि‍पटाने का प्रयास करना चाहिये जिससे कि बाकी समय सभी हार्डवेयर बंद रखे जा सके ।
४.    लेजर प्रिंटर जैसे उपकरणों जि‍नमें कि ज्यादा बि‍जली की खपत होती है, को काम होने के बाद तुरंत बंद कर देना चाहिये।
५.    ‘कैथोड रे ट्यूब’ (सी.आर.टी.) मॉनि‍टर की अपेक्षा ‘लि‍क्विड क्रि‍स्टल डि‍स्प्ले’ (एल.सी.डी.) मॉनि‍टर का उपयोग करना अधिक उपयुक्त होता हैं।
६.    जब भी संभव हो तो डेस्कपटॉप कंप्यूंटर की जगह नोटबुक कंप्यूटर का इस्ते माल करें जिसमें विद्युत की कम खपत होती हैं।
७.    जब भी कंप्यूटर ऑन हो पर, उस पर काम न हो रहा हो तो ऐसे में हार्डड्राइव व डिस्प्ले को बंद करने में पावर मैनेजमेंट की सुवि‍धाओं का उपयोग करन चाहिये।
८.    कंप्यूटिंग वर्क स्टेशन, सर्वर्स, नेटवर्क्स और डेटा सेंटर्स के लि‍ए वैकल्पि क ऊर्जा संसाधन लगाये।
९.    सर्फिंग करते समय जि‍स विंडो या वेबसाइट पर आप काम कर रहे हैं उसके अलावा खुली हुई दूसरी सभी विंडोज या वेबसाइट्स बंद कर देना चाहिये।
१०. हार्ड डिस्क ड्राइव के विपरीत, सॉलिड स्टेट ड्राइव ‘डाटा’ को फ्लैश मेमोरी या डी.रैम. (DRAM) में स्टोर करती हैं। हिलने डुलने वाले पुर्ज़ों के न होने के कारण, कम क्षमता वाले फ्लैश आधारित उपकरणों की मदद से बिजली की खपत को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

६.     भारत में ग्रीन कंप्यूटिंग :

‘ग्रीन कंप्‍यूटिंग’ के प्रति‍ कई कंपनि‍यों और बी.पी.ओ. में जागरुकता की लहर आई है जिससे कि  भारत में भी अब ग्रीन कंप्‍यूटिंग के प्रति‍ लोग बेहद सतर्क व सजग हो चुके और कई आई.टी. कंपनि‍याँ इसे अपने यहाँ बड़े पैमाने पर लागू भी कर रही हैं। अब तो भारत सरकार ने भी ‘एनर्जी एफि‍शि‍एंसी’ मानक तय कर दिये हैं तथा मानक तय करने के लि‍ए ‘ब्‍यूरो ऑफ एनर्जी एफि‍शि‍एंसी’ (बी.ई.ई.) ने आँकड़े जुटाना शुरू कर दि‍या है। बीईई ऐसा संगठन है जो उपभोग के आधार पर बि‍जली उपकरणों को रेट करता है और बि‍जली की कम खपत वाले उपकरणों के प्रयोग के लि‍ए कंपनि‍यों को प्रोत्‍साहि‍त करता है और ग्रीन कंप्‍यूटिंग के लि‍ए योजनाओं की रूपरेखा तैयार करता है।

७.    संदर्भ सूची :

§  https://hi.wikipedia.org
§  http://hi.w3eacademy.com/
§  http://hindihow.com/2013/12/13/green-computing-in-hindi/
§  http://hindi.webdunia.com/
§  http://hindimedia.in/In-the-future-well-being-of-the-path-of-greenery/
§  http://onlinehindiblog.blogspot.in/

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०३ अगस्त २०१७

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