सोमवार, 25 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२६६ : आंचल को परचम बना लिया... वज़ूद आज अपना आज़मा लिया...!!!


तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन, तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था इन पंक्तियों को जिसने अपने जीवन का सिद्धांत माना हो वो भला किसी के तंज कसने या किसी के छेड़े जाने पर ख़ामोश रह सकती हैं तो कुछ ऐसा ही हुआ जब ‘दुर्गा’ को सरेराह कुछ मनचलों ने छेड़ दिया...

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राह चलते
कुछ मनचले
देखकर तेज हवा में
उड़ती चुनरिया
फब्ती कसने लगे
तो उसी दुपट्टे को बना
हथियार उसने
उन सबको बाँध डाला
सरे राह लोगों को जमा कर
उनका मजमा बना दिया
और तुरंत उनकी फ़ोटो खींच
सोशल मीडिया पर भी चेप दिया
निर्भया सुरक्षा सुविधा का नंबर
अपने मोबाइल से घुमाकर
उनको पकड़वा दिया
जाते-जाते ये भी सबक दिया
कि ये वही आँचल
जिसके साये तले कभी तुमने
जीवन पाया था
और आज उसी को लजा रहे
समझकर कमजोर हमें
तुमने अब तक चाहे जो भी किया
पर, याद रहे नारी जाग चुकी
अपनी रक्षा करना भी सीख लिया
अब न छेड़ना किसी को
वरना, ये चूनर जो अब तक
हमारे गले का हार हैं
कहीं तम्हारी ही गर्दन के लिये
फांसी का फंदा न बन जाये ।।
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देख लिया आजमाकर सबको क्या कानून, क्या संविधान और क्या सरकार कोई भी लडकियों को न सुरक्षा देता और न ही उनके हक में खड़ा होता ऐसे में उसने ये जान लिया कि अब उसे अपनी रक्षक स्वयं ही बनना होगा तो इस संकल्प ने उसे इतना साहस दिया कि उसे पता न चला किस तरह उसने ये कारनामा कर दिखाया पर, जो कर ही दिया तो अब बाकियों को भी ये दांव-पेंच सीखाना हैं... जागरूक बनाना हैं ये ठान उसने अपने जीवन का लक्ष्य पा लिया... :) :) :) !!!
  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२५ सितंबर २०१७

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