शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२७० : दुर्गा नवमी संग पूर्णाहुति... सुख-दुःख की मिश्रित अनुभूति...!!!



ऋतू परिवर्तन अपने साथ माँ आदिशक्ति के पावन पर्वों का नव-दिवसीय त्यौहार लेकर आती हैं जिसके आगमन से साधकगण नियम-कायदों के साथ यदि इन दिनों प्रकृति की उपासना करें तो वे आगे वातावरण में आने वाले बदलाओं का सामना करने हेतु खुद को तैयार कर सकते हैं हिंदू संस्कृति में हर एक रीति-रिवाज़ या परंपरा इतनी वैज्ञानिक हैं कि उसको यदि विधि-विधान से अपनाया जाए और शास्त्रोक्त तरीके से उनका पालन किया जाये तो न केवल व्यक्ति सात्विक विचारों से अपने तन-मन को परिष्कृत कर सकता हैं बल्कि अपनी आत्मा का भी उद्धार कर अपने अनेक जन्मों को सुधार सकता हैं हर तीन महीने बाद नौ दिन के इन विशेष आयोजनों की रवायत बहुत सोच-समझकर शामिल की गयी जिसमें से दो तो वैसे ही गुप्त कर दी गयी तो अब सिर्फ हर छे मास के अंतराल में चैत्र व शारदीय नवरात्री आती जिनके साथ ग्रीष्म व शीत ऋतू भी चली आती तो इनके अनुरूप अपने आपको ढालने में ये दिवस सबदे सहायक सिद्ध होते हैं

जिन्होंने भी इन दिनों व्रत या उपवास के माध्यम से अपने शरीर के साथ अपने मानस को भी साध लिया होगा उसके लिये तो फिर ये वरदान साबित होगी कि केवल धार्मिक या आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही इनको नहीं मनाया जाता बल्कि इनका सामाजिक सरोकार भी होता हैं इस तरह के आयोजनों को यदि हम किसी संप्रदाय वर्ग से जोडकर न देखे और केवल अपने संपूर्ण शुद्धिकरण के उद्देश्य से ही इसे अपने जीवन में लागू करे तो देखेंगे कि थोड़ा-सा संयम, थोड़ा-सा परहेज, थोड़ा-सा ध्यान, थोड़ा-सा जप-पूजन, थोड़ी-सी सावधानी, थोड़ी-सी एकाग्रता हमें अपने लक्ष्यों तक पहुंचने के लिये इतनी ऊर्जा दे देती कि अगले छे महीने तक अपने सभी कर्मों को बिना थके बखूबी अंजाम दे सकते हैं । हम सब अपने जीवन में किसी न किसी ध्येय को पाना चाहते पर उस तक पहुँचने के लिये मार्ग या पथ का निर्धारण ही न कर पाते यदि किसी तरह कर भी ले तो धैर्य के साथ उस पर चल नहीं पाते और जो चल भी पाये तो कभी ऐसा होता कि मंजिल आने से पहले ही थक जाते लेकिन यदि साधना-उपासना करते तो इन बाधाओं को आसानी से पार कर लेते हैं ।

‘दुर्गा नवमी’ के पावन अवसर पर आज सभी भक्तगण शक्ति पूजन का पूर्णाहुति के साथ उद्यापन कर अपनी नौ दिवसीय पूजन का विसर्जन करेंगे और पिछले नौ दिनों से जगदंबा के सानिध्य और उनकी स्थापना से जो हर्षोल्लास छाया था कहीं उसमें दुःख की एक छटा भी शामिल हो जायेगी कि अब माँ की विदाई के बेला आ गयी उनके मायके से अपने ससुराल जाने का समय आ गया तो जो दुःख बेटी के जाने से सभी सगे-संबंधियों को होता वही उनके उपासकों को भी महसूस होता हैं माँ दुर्गा के आगमन से सारी प्रकृति में ही ख़ुशी की लहर दौड़ जाती और जगह-जगह उनके पांडाल व मूर्ति स्थापना से चहुँओर जिस तरह से चहल-पहल और रौशनी की जगमगाहट बिखर जाती उन सबके ही चले जाने का ख्याल मन में कहीं न कहीं पीड़ा का अहसास देता लेकिन, उनके फिर वापस आने का विचार एक आत्मिक सुकून देता कहीं ये भी एक सुखद अहसास होता कि माँ तो हमेशा हमारे साथ हमारे दिलों में विराजमान रहेंगी तो फिर कमजोर होते अपने ही तन को आंतरिक संबल मिलता और इस विश्वास के साथ वो क्षमा प्रार्थना कर माँ का विसर्जन करता कि माँ इसी तरह अपनी कृपा बनाये रखना, हमारी गलतियों को माफ़ करना... साथ कभी न छोड़ना और हमारे बीच यूँ ही आती रहना... जय माँ अम्बे, जय जगदंबे नमोस्तुते... :) :) :) !!!
             
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२९ सितंबर २०१७

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