शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२४९ : साक्षरता दर से नहीं... सार्थकता से बदलेगी तस्वीर...!!!



जिस तरह से तकनीक ने सारी दुनिया को एक कर दिया उसी तरह से इस तरह के आयोजनों ने भी उसे एक सूत्र में बांधने का कार्य किया कि देश चाहे कोई हो लेकिन उसमें रहने वालों की मौलिक आवश्यकतायें और अधिकार लगभग एक समान होते ये और बात कि कहीं इनको प्राथमिकता देकर पूर्ण करने पर अधिक ध्यान दिया जाता तो कहीं पर, इन्हें गौण समझा जाता फिर भी इनमें से जीवन की कुछ जरूरतें तो ऐसी जो कि सभ्यता के विकास और देश की उन्नति के लिये एकदम अनिवार्य और जिनके बिना कोई भी देश सिरमौर नहीं बन सकता जिनमें से एक ‘शिक्षा’ भी हैं इसके अभाव में तो कोई भी देश तरक्की के सोपान नहीं चढ़ सकता फिर भी हमारे देश में ये देखने में आता कि 'भूख’ और ‘रोटी’ के आगे कहीं ‘कलम’ और ‘ज्ञान’ हार जाते या दूसरे शब्दों में कहे तो कुछ कदम पीछे रह जाते कि जब तक पेट न भरा हो दिमाग के दरवाजे नहीं खुलते अतः ऐसी स्थिति में जरूरी कि पहले ‘पेट’ के इतिज़ाम किये जाये और उसके बाद ‘पाठ’ की फिकर की जाये

भारत देश यूँ तो दूसरे देशों के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहा फिर भी कहीं न कहीं हम खुद को दुनिया के नक्शे में बाकी राष्ट्रों की तुलना में कुछ कमतर पाते जिसकी मुख्य वजह जानने की कोशिश करें तो निसंदेह वो ‘शिक्षा’ ही होगी कि ‘ज्ञान’ के उजाले से हर अँधेरे को उजाले में तब्दील किया जा सकता और हर बुराई को खत्म कर के अच्छाइयों में बदला जा सकता । इसलिये हर देश अपने नागरिकों की पढ़ाई-लिखाई पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करता और अपने यहाँ भी अब इस तरह के अनेक प्रयास अनेक योजनाओं के माध्यम से सतत किये जा रहे कि किसी भी तरह से साक्षरता दर बढ़े परंतु ये नहीं देखा जाता कि इनमें से कितने अभियान वास्तविक धरातल पर सार्थक हो रहे या महज़ कागज़ी आंकड़ों को ही सत्य मानकर अगला कदम उठा लिया जाता । हमारे यहाँ झूठे आंकड़ों से जितना नुकसान हमारी कौम को उठाना पड़ता उतना और कहीं न होता और जो दर्शाया जाता यदि ये सही होता तो अब तक हमें विश्व पटल पर शीर्ष पर विराजमान होना चाहिये था लेकिन सिर्फ जनसंख्या में ही हम बराबरी कर पा रहे और बाकी जगहों पर पिछड़ रहे जो सोचने पर मजबूर करता कि इतनी आबादी उसमें भी युवाओं और वो भी पढ़े-लिखे का प्रतिशत अधिक फिर ऐसा क्यूँ ???    

ऐसे में जवाब यही मिलता कि सरकार अपनी योजनाओं को येन-केन-प्रकरण सफल तो बना लेती लेकिन यदि हम सब ये सब कुछ जानते हुये भी मूक दर्शक न बनकर उसके साथ सक्रिय रूप से सहभागिता करे तो निश्चित ही न केवल हम बल्कि हमारा देश भी अव्वल नंबर पर स्थापित हो सकता हैं तो फिर हम ऐसा करते क्यूँ नहीं क्यों उसके सर पर ठीकरा फोड़कर खुद को निर्दोष साबित कर वापस अपने काम में लग जाते हमारा साक्षर होना तभी सार्थक जबकि हम अक्षर ज्ञान से शिक्षित होकर उसका सदुपयोग केवल अपने जीवन को सफल बनाने में न कर अपने वतन की भलाई और उसकी उन्नति के लिये समर्पित करे तो इसे सपनों से भी अधिक खुबसूरत और जगत के मानचित्र पर सबसे विकासशील राष्ट्र के रूप में दर्ज कर सकते हैं इस ‘विश्व साक्षरता दिवस’ पर हमारा यही संकल्प इसे सार्थक बना सकता तो आओ ये शपथ ले कि हम अपनी शिक्षा और अपनी जेहनी काबिलियत का उपयोग सिर्फ अपने आप को आगे बढाने में नहीं करेंगे बल्कि उससे दूसरों के जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन लाकर उन्हें भी जागरूक बनायेंगे ताकि सब एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर साक्षरता दर से सार्थकता की ऐसी पहल करें कि हमारे स्वप्न की ताबीर हक़ीकत की तस्वीर बनकर उभर जाये... एवमस्तु... :) :) :) !!!
       
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०८ सितंबर २०१७

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