‘अप्प दीपो भवः’ महज़ एक मन्त्र नहीं जीवन जीने
की अचूक सीख हैं जिसे यदि साध लिया तो फिर अंतर में सोई पड़ी सभी शक्तियाँ एकदम से
जागृत हो जाती जिनका हमें आभास नहीं होता
कि ये हमारे ही भीतर मौजूद थी बिल्कुल उसी तरह जिस तरह हनुमान को अपने अंदर छिपी
हुई ताकत का पता नहीं था ।
लेकिन, ये संभव तो नहीं कि सबको 'जामवंत’ की तरह ऐसा कोई प्रेरक या मार्गदर्शक मिल
जाये जो उसे उसकी अंदरूनी क्षमताओं से परिचित करवाये कि सच्चा गुरु भी ईश्वर की
कृपा से ही मिलता ।
ऐसे में जबकि हम सब ही ये जानते कि हमारे अंदर इतनी काबिलियत सुप्तावस्था में पड़ी
हुइ जिसका आज तक कोई भी व्यक्ति पूर्ण रूप से दोहन नहीं कर पाया कि मस्तिष्क की इन
सारी परतों और देह के सभी चक्रों को भेद पाना सबके लिये आसान नहीं होता क्योंकि इन
सबमें ताला जो पड़ा हुआ ।
इन तालों को खोलने की ‘चाबी’ बाज़ार में नहीं
मिलती हमारे ही अंदर छिपी होती जो कहने को तो अदृश्य लेकिन अथक साधना व आराधना से
इन्हें प्राप्त किया जा सकता जिसके लिये कोई भी ‘मंत्र’ या ‘तंत्र’ अपनाया जा सकता
लेकिन साधन तो ‘देह’ ही होती ।
इसी के माध्यम से हम अपने ही भीतर छिपी उस कुंजी को तलाश सकते जिससे अपने शरीर के
समस्त द्वारों में पड़े तालों को खोल सकते और उस गहन चेतना केंद्र में पहुँच सकते
जहाँ जाने के बाद फिर दुबारा इस जगत में आने की जरूरत नहीं पड़ती कि मोह-माया का ये
संसार तो महज़ एक भ्रम ।
वो सूक्ष्म जगत जिसका वर्णन हम पढ़ते वही वास्तविक जिसे यदि पा लिया तो फिर ये झूठा
आकर्षण नहीं लुभाता अभी तो इसकी चमक-धमक हमें भरमाये रखती तो हम उसे खोजने को
प्रवृत नहीं होते ।
लेकिन, जो एक बार ये जान लिया कि असलियत ये नहीं जिसे हम सच समझकर जी रहे बल्कि ये
तो हमें बहलाने का जरिया मात्र ताकि हम जन्म-जन्मान्तर तक यूँ ही भटकते रहे ।
जब एक बार ये बोध हो गया तो फिर उस पार जाने की
इच्छा भी जागृत होती जिसके लिये मार्ग हमारे भीतर ही उपलब्ध होता जिसे हम अपनी
अज्ञानता में देख नहीं पाते पर, जिन्हें इस गहन सत्य का भान वो इन खिलौनों से अपना
जी नहीं बहलाते ।
वे तो इस मिथ्या जग से दूर अपने आप से ही मुलाकात करते जिसके लिये ये ‘नवरात्र’
सर्वोत्तम काल कि इन दिनों हम तप से खुद को जलाकर अपने निकट पहुँच सकते अपने आत्मा
का दीप जला सकते और जो वो जल गया तो सारा अंधकार
बार में ही मिट जायेगा शेष रहेगा तो केवल ‘ज्ञान’ का प्रकाश जिसके द्वारा
हम दूसरों के जीवन में भी रौशनी बिखेर सकते हैं । जितने भी ज्ञानी-महात्मा या संत-योगी हुये उन सबने इस तन को समाधि
की साधना में इस तरह से खपा दिया कि फिर केवल मन ही बाकी रहा जो प्रकट ज्ञान से एक
दीपक बन गया जिसके प्रकाश में न केवल उन्हें आगे जाने का रास्ता चुना बल्कि भटकों
को भी राह दिखाई ।
_______________________________________________________
© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२२ सितंबर २०१७
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें