शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२४२ : लघुकथा : “अपने को क्या करना” ???



‘रागिनी’ ने अपने पति को फुर्सत में देखा तो बोली, अजी सुनते हो कल मिसेज शर्मा आई थी तो बता रही थी कि वो जो उनके घर के बगल में बॉयज होस्टल हैं न उसमें कुछ गड़बड़ चल रही शायद, लड़के वार्डन को धोखा देकर रात भर बाहर रहते और कभी-कभी तो उसने उन्हें हथियारों के साथ भी देखा आप वो ‘रायचंद जी’ से बात करिये कि वे अपने होस्टल पर भी ध्यान दे ऐसा न हो किसी दिन कोई बड़ी घटना हो जाये तो उसके बाद पछताते ही रह जाये उसकी बात सुनकर पतिदेव बड़ी इत्मिनान से बोले, अरे, अपने को क्या करना उनकी बिल्डिंग हैं वो जाने उन्होंने लड़कों को चेक कर के ही रखा होगा ये कोई अपना सरदर्द थोड़े न, छोड़ो इसे ये कोई सीरियस मेटर नही उनकी बात सुनकर ‘रागिनी’ आश्वस्त नहीं हुई उसने दूसरे दिन मिसेज शर्मा से फिर अपने मन की आशंका व्यक्त की और उन्हें भी सलाह दी कि चलो हम दोनों चलकर ‘रायचंद जी’ से बात करते तो वे बोली, ओह ‘रागिनी’ तुम भी न जाने क्या-क्या सोचती रहती दिमाग से निकाल दो इसे अपने को क्या करना कौन-सा अपना होस्टल जिसकी फ़िक्र करें

उसकी बात सुनकर वो सोचने लगी, ये क्या जवाब जब इनको मतलब ही नहीं कोई तो फिर मुझसे आकर क्यों बताया पर, उसे चैन न पड़ा तो आखिर उसने ‘रायचंद जी’ को फोन लगाकर खुद ही सब बता दिया तो उन्होंने जवाब दिया, बहनजी लड़के वहां क्या करते इससे अपने को क्या करना, अपना पैसा समय से देते अपने को तो बस, इससे मतलब कोई लफड़ा करेंगे तो वही फंसेगे और हंसते हुये फोन रख दिया इस बात से ‘रागिनी’ को अहसास हुआ कि किस तरह से स्वार्थ ने इंसान को संवेदनहीन बना दिया हैं कि किसी भी ऐसे मसले से उसको कोई फर्क नहीं पड़ता जिससे उसका सीधा सरोकार नहीं लेकिन जब यही उसके उपर बीतती तो फिर दूसरों को उसके कर्तव्य और नैतिकता का बोध कराने लगता लेकिन तब तक बहुत देर हो जाती तभी मिसेज शर्मा दौड़ती हुई आई रागिनी, रागिनी... कहाँ हो तुम... मैं सो रही थी तभी अचानक एक धमाके की आवाज़ आई मैं घबराकर जागी तो देखा कि होस्टल में आग लग गयी जिसकी लपट हमारे घर तक आ रही रही मैं तो सब कुछ छोडकर झट तेरे घर भाग आई तू जल्दी से फायर बिग्रेड को फोन करो तो उसने उसी तरह कंधे उचकाते हुये कहा, आग हमारे घर तक नहीं आ रही तो अपने को क्या करना ???
          
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०२ सितंबर २०१७

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