खेल रहे थे
मिलकर हम दोनों
आँख-मिचौली
मगर, खेल-खेल में
तुम तो ऐसे छिपे कि फिर
मिले ही नहीं कभी
पर, दिल को हैं उम्मीद कि
मिलोगे जरूर कहीं
पीछे से आकर करोगे धप्प
इस आस पर
बीत गये
बरस दर बरस
और हम पट्टी बांधे ही
घूम रहे इधर-उधर
डरते गर, खोल दिया इसे तो
बंद आँखों में बसी हैं
जो छवि तुम्हारी
खो न जाये ये भी कहीं ।।
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०३ सितंबर २०१७
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