शनिवार, 16 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२५७ : सबको हैं कोई न कोई तलाश... ढूँढती जिसे हर आती जाती सांस...!!!



‘रुहिना’ नाम का असर था या क्या कि उसे अंतर से ही ये महसूस होता कि वो जिसके साथ हैं और जिससे उसका सात जन्मों का बंधन जोड़ा गया हैं वो पिछले सात सालों से उसके साथ रहकर उसके दो प्यारे-प्यारे बच्चों की माँ बनकर भी उसकी नहीं हैं कोई तो खलल हैं उसके जेहन में हो उसे बैचेन किये रहती जहाँ हर कोई उसे खुशनसीब समझता कि उसे ढूंढे बिना ही इतना अच्छा पति, घर मिला जिसके पास किसी चीज़ की कमी नहीं और वो उसे चाहता भी बहुत हैं इसी वजह से कितने लोग तो उससे इर्ष्या भी करते कि देखो ये लड़की न तो ज्यादा पढ़ी-लिखी, न ही नौकरी करती और न ही इसके माता-पिता को इसके लिये परेशां ही होना पड़ा क्योंकि रिश्ता तो खुद चलकर आया इसे इतना अच्छा घर-वर किस तरह मिल गया जबकि हमारी लडकियाँ तो बाहर जाकर पढ़ी अब विदेश में नौकरी कर रही फिर भी हमें ऐसा लड़का नहीं मिला

उधर उसके जी में वही पति काँटा बनकर खटकता कि उसे उसकी किसी भी बात की परवाह नहीं, न ही उसे उसकी पसंद-नापसंद की खबर, न ही उसके कोमल जज्बातों से कोई मतलब कि उसकी बातें उसके पल्ले ही नहीं पड़ती दूसरे लोगों की तरह उसका भी यही मानना हैं कि घर में किसी तरह की सुख-सुविधा की कमी नहीं फिर वो उदास क्यों रहती हैं ऐसे में गर, वो कहे कि वो उसे पर्याप्त समय नहीं देता, कहीं घुमाने नहीं ले जाता और न ही कोई उपहार ही देता तो उसका टका-सा जवाब आता कि सब तो तुम्हारा हैं, जो चाहे ले लो चली जाया करो मार्किट ले आया करो अपने मन की गिफ्ट और जहाँ तक प्रश्न समय या घुमाने का हैं तो उसका बिजनेस उसे इस बात की इज़ाजत नहीं देता वैसे भी घूमने या बतियाने में रखा क्या हैं ?

उसे लगता कि वो कुछ अजीब जिसे लाखों के जेवर, महंगी साड़ियाँ या सुख-सुविधा के सामान न लुभाते बस, एक ही चाह कि काश, उसका पति उसे भले ये सब न देता पर, प्यार करता यही बात उसने एक बार अपनी एक सहेली से कह दी तो वो बोली, प्यार, नहीं करता तो ये बच्चे क्या हवा में ही हो गये यार, काश ये सब मुझे मिलता तो मैं तेरी तरह मुंह लटका न बैठी रहती एन्जॉय करती तब से उनसे अपने मन की बात भी दूसरों से कहनी बंद कर दी कि जब सखी ही न समझी तो फिर किससे उम्मीद करे कि वो उसके मन की दशा समझेगी ये जान पायेगी कि रूह की प्यास अलहदा होती जो सिर्फ प्रेमरस से ही बुझती न कि शोपिंग करने या जेवर बनवाने से, एन्जॉय भी कोई तभी करता जब मन संतुष्ट हो न कि कागज़ी पैसों से और ‘बच्चे’ कोई प्रेम की गारंटी नहीं वो तो बलात्कार से भी हो जाते हैं
         
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१६ सितंबर २०१७

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