सोमवार, 11 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२५२ : ‘शिकागो धर्म सम्मेलन’ जिसने सिद्ध किया विश्व मेले में ‘भारत’ को ‘जगद्गुरु’...!!!


मुझे गर्व हैं कि मैं भारतीय हूँ और मैंने एक ऐसे देश में जनम लिया जहाँ पर भिन्न धर्म संप्रदाय को मानने वाले लोग एक साथ मिलकर रहते हैं पर, उतनी ही शर्मिंदगी का भी अहसास होता हैं जब उसकी इसी विशेषता ‘अनेकता में एकता’ पर आज के लोगों को चोट करते हुये देखती हूँ कि किस तरह से राजनीतिज्ञ अपने फायदे के लिये किसी भी स्तर तक जाने से नहीं चूकते और किस तरह से चंद तथाकथित ढोंगी बाबा आमजनों की धार्मिक आस्थाओं को अपने लाभ हेतु छलते इस तरह आज ‘धर्म’ शब्द जिसके दम पर ‘भारत’ कभी विश्वपटल पर ‘गुरु’ बनाकर उभरा था आज अपनी समस्याओं के समाधान के लिये दूसरों को तक रहा आखिर इतनी गिरावट किस तरह आ गयी वो भी इतने कम समय में सोचो तो लगता कि न जाने किस जमाने की बात हैं जब इस देश की मिट्टी के कण-कण में ईश्वर और डाल-डाल पर सोने की चिड़िया का निवास माना जाता था जबकि हक़ीकत में ये महज़ दो-सौ, ढाई-सौ साल पुरानी ही बात जब इस देश की कमान मुगलों की अधीनता से फिरंगियों ने अपने हाथों में लेकर इसे पूरी तरह से कंगाल कर दिया केवल ‘धन’ ही नहीं धर्म, संस्कृति, परंपरा, भाषा, पहनावा, बोलचाल, खान-पान जैसी हमारी पहचान समझी जाने वाली हर छोटी-से-छोटी और बड़ी-से-बड़ी खासियतों को मटियामेट कर दिया बोले तो उसके पूर्व जो कसर बाकी रह गयी थी उसे इन अंग्रेजों ने अच्छी तरह से पूरा कर दिया लेकिन ऐसे समय में भी भारतमाता के सर को ऊंचा रखने उसके सपूतों ने कोई कमी न रखी और जिस तरह भी संभव हुआ अपनी जान पर खेलकर या फांसी के फंदे पर झूलकर भी देश का मान-सम्मान बनाये रखा जबकि आज तो सबको अपनी ही परवाह वतन या भारत माँ के बारे माँ कौन सोचता सबकी सोच का केंद्र व्यक्ति स्वयं ही हैं

ऐसी विपरीत परिस्थितियों में आज से सिर्फ १२५ वर्ष पूर्व इस देश के एक लाल ने वो कर दिखाया जिसने गुलाम भारत के आहत स्वाभिमान में इतना जोश भर दिया कि वो पुनः आत्मविश्वास के साथ खड़ा हो गया वो ऐतिहासिक आयोजन था ‘शिकागो’ में होने वाला ‘विश्व धर्म सम्मेलन’ जिसमें भारत की तरफ से प्रतिनिधित्व किया ‘नरेंद्रनाथ’ उर्फ़ ‘स्वामी विवेकानंद’ ने और इस तरह से अपनी जन्मभूमि और उसकी रगों में बसने वाले ‘धर्म’ की व्याख्या की कि समस्त विश्व उनके सम्मुख नतमस्तक हो गया । उनका वो भाषण जो उन्होंने आज ही के दिन ११ सितंबर १८६९ को दिया था आज भी उतना ही प्रासंगिक हैं क्योंकि इसमें उन्होंने हिंदुस्तान’ व ‘हिंदू’ धर्म दोनों को विश्वपटल पर यूँ स्थापित किया कि सारी दुनिया ने उसे सिरमौर माना आखिर क्यों न ऐसा होता यही तो वो एकमात्र देश जहाँ अनेक मजहब के लोग बगिया में खिले अलग-अलग फूलों की तरह एक साथ अपनी खुशबू बिखेरते और पृथक होकर भी एक नजर आते और यही वो देश जो हर मत के लोगों का गर्मजोशी से स्वागत करता उसे अपनी शरण में लेकर उसे पल्लवित होने का पूर्ण अवसर भी प्रदान करता हैं फिर किस तरह कोई इस बात से इंकार करता जब उन्होंने कहा कि ‘मुझे गर्व हैं कि मैं एक ऐसे देश से हूँ, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान व सताये गये लोगों को शरण दी हैं’ । उनके भाषण की शुरुआत ही इतनी शानदार थी कि वहां बैठे लोग जिन्होंने बड़े अनमने ढंग से उनको मंच तक जाने की इजाजत दी उनके शांत, गंभीर, स्थिर स्वर के तेज से इतने प्रभावित हुये कि मंत्रमुग्ध से उन्हें लगातार सुनते ही रहे कि उन्होंने पहली बार ये जाना कि इस जगत में कोई ऐसा भी देश हैं जहाँ के लोग अपनी प्रार्थना में समूचे संसार की शांति की कामना करते हैं और जहाँ किसी भी मजहब को ऊंचा या नीचा नहीं समझा जाता न इसके आधार पर भेद किया जाता और न ही किसी अन्य धर्म के मानने वालों के वहां आने पर रोक लगाई जाती हैं ।

‘स्वामी विवेकानंद’ की अपने विषय पर पकड़ इतनी गहरी केवल इसलिये नहीं थी कि उन्होंने समस्त धर्मग्रंथों का अध्ययन कर उन्हें रटकर वहां अपने आपको प्रस्तुत किया बल्कि उन्होंने उनको आत्मसात भी किया बल्कि सही मायनों में कहे तो जिया कि वे ऐसी धरती में जन्मे, पले-बढे जहाँ की मिट्टी को भी पूजा जाता हैं तभी तो उन्होंने उस धर्म सम्मेलन में पधारे अलग-अलग देशों के प्रतिनिधियों के समक्ष बड़े गर्व के साथ कहा कि ‘दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ, मैं आपको सभी धर्मो की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूँ और सभी सम्प्रदायों के कोटि-कोटि हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूँ और मुझे गर्व हैं कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ जिसने संसार को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया हैं’ ऐसी उक्ति से ही लोगों को समझ में आ गया कि सब धर्मों की जननी माना जाने वाला देश दूसरों का सम्मान करना भी जानता हैं । उन्होंने धर्मांधता पर भी कटाक्ष किया कि ‘साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उसकी वीभत्स वंशधर धर्मान्धता इस सुदर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज कर चुकी हैं और पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं उसे बार-बार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं सभ्यताओं का विध्वंश करती रही हैं और पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं अगर, ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका हैं ।            
            
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

११ सितंबर २०१७

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