सोमवार, 25 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२६५ : हे नर, भले न पूजो नारी को... मगर, न छेड़ो उसकी अस्मिता को...!!!



बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ... सुनकर बहुत अच्छा लगता और लडकियों ने इसे अपना रक्षा कवच समझ लिया ये बहुत बड़ी भूल हो गयी जिसकी सज़ा उन्हें हर पल उन पर किये जाने वाले अत्याचारों के जरिये याद दिलाई जाती और मर्दों का हर जुल्म ये कहता कि लड़कियों को तो हम इसलिये बचाना चाहते कि उनका अनुपात कम होने से हमें अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा और पढाना इसलिये चाहते कि नौकरी कर वो हमें दोहरा लाभ दिलायेगी लेकिन यदि वो इस नारे का अर्थ अपनी तरह ग्रहण कर उसे हथियार बनायेगी या उसको सच समझ अपने आने वाले जीवन के स्वप्न देखेगी या उस शिक्षा से हम पुरुषों के ही खिलाफ़ खड़ी होकर हमें ही ललकारेगी या हमारे द्वारा छेड़े जाने या दुष्कर्म करने पर हमारी शिकायतें करेगी हमें जेल भेजकर सज़ा दिलवाना चाहेगी या अपने हिसाब से समाज के उसूल और रवायतों को बदलना चाहेगी तो फिर अंजाम वही होगा जो हम चाहेंगे क्योंकि ये दुनिया हमने अपने नियमों के अधीन अपनी सुविधा के अनुसार रची हैं जिसमें स्त्रियों को केवल उतनी ही छूट दी जितने में हमारी स्वतंत्रता या अधिकारों का हनन न हो परंतु, जब से ये पढ़ना-लिखना सीखी हैं तो अपनी बुद्धिमता व विवेक का उपयोग कर इसने हमारी चालाकियों को समझ लिया अब ये इस समाज को अपनी तरह से बदलना चाहती हैं उसमें अपने कायदे चलाना चाहती हैं और हमारी बनाई रवायतों पर अपने तर्क की कैंची चलाकर उसे काट अपने रुल खुद बनाना चाहती हैं अपनी ज़िन्दगी की डोर अपने हाथों में रखना चाहती हैं तो ऐसे में उसके बढ़े कदमों उसकी तार्किकता को यदि अपनी बुद्धि से काट नहीं पाये तो फिर उनको झुकाना हमें आता हैं कि जब सामने बदला लेने के लिये कोई लडकी हो तो तब ये कार्य किस प्रकार किया जाये ये सोचने दिमाग नहीं लड़ाना पड़ता कि ये उसकी कमजोर इज्जत के आगे बेहद सहज हो जाता परंतु, अब तो उन पर ये ब्रम्हास्त्र भी कोई काम नहीं करता कि वे जान गयी उनकी इज्जत उनकी दो जांघों के बीच नहीं उनके भीतर रहती जिसे कोई कितनी भी ताकत लगाये या कितने भी कुचक्र रचे किसी भी तरह से उसे छीन नहीं सकता तो ऐसी स्थिति में यही एकमात्र उपाय कि बोलती हुई जुबानों को खामोश कर दिया जाये घर की दहलीज लांघते पैरों को तोड़ दिया जाये और जो खिलाफ़त करे उन हाथों को मोड़ दिया जाये कि हम ही समाज के ठेकेदार, हम ही धर्म के रक्षक और हम ही स्त्रियों के स्वामी भी जिसे भूलकर वो अपने जीवन को अपनी तरह से जीने की गुस्ताखी कर रही तो फिर देख लो हमने किस तरह से उनकी आज़ादी पर अंकुश लगाया जब वे मर्दों की तरह पढ़ने-लिखने और कमाने लगी तो फिर उनकी ही तरह डंडे खाने में क्या हर्ज हैं इससे कुछ के ही सही हौंसले पस्त होंगे और हम जीत का जश्न मनायेंगे कि हर हाल में हमने उनको उनकी औकात बता दी पर, ये न समझ पाये वे कि ये कोई पुराने जमाने का मॉडल नहीं जो किसी भी कुतर्क या दलील से डर जायेंगी, पीछे हट जायेंगी बल्कि ये तोकंप्यूटर के जमाने की स्मार्ट गर्ल्स हैं जो अपने दम पर अपने हक़ हासिल करेंगी और जितना इन्हें रोका जायेगा उतना ही मुखर होकर सामने आयेंगी कि ये डर को जीत चुकी हैं तो अब किसी भी तरह की धौंस या कोई भी तर्क या धर्म की दीवार भी उनका रास्ता न रोक पायेंगी आखिर, बड़ी मुश्किल से वे कोख़ से बचकर खुली हवा में सांस ले पाई हैं, विद्यालयों से विश्व-विद्यालयों में आ पाई हैं और अपनी सामर्थ्य को पहचान पाई हैं...

कोई लाठी, कोई बंदूक, कोई तोप
अब लडकियों को नहीं मार पायेगी
निकल पड़ी हैं हौंसलों के पंख लगा
कोई जंजीर न उनको बाँध पायेंगी

ये याद रखना, लडकियाँ जब अपने आत्मबल से अपने घर की चारदीवारी को लाँघ लेती हैं तो फिर वो किसी भी बाधा को पार करने से डरती नहीं हैं... :) :) :) !!!  
                  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२४ सितंबर २०१७

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