गुरुवार, 14 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२५५ : पहले ‘हिंदी’ को दोयम बनाये फिर बोले... ‘हिंदी भाषा’ के चयन के लिये दो दबाये...!!!



लोग अब अपनी भाषा में बात करना भी असभ्यता की निशानी समझते चूँकि  'अंग्रेजी' अंतर्राष्ट्रीय भाषा हैं और विष परिदृश्य पर इसका प्रचलन हैं तो हम क्यों पीछे रहे लेकिन उसे सीखना और अपनाना दो अलग बात हैं किसी भी भाषा का ज्ञान अच्छी बात हैं और उसका सम्मान करना हमारा नैतिक कर्तव्य हैं लेकिन इसके लिये अपनी ही मातृभाषा या राष्ट्रभाषा का अपमान करना या उसे कमतर बताना तो सरासर घृणित कार्य हैं । सिर्फ़ इसलिये कि उसे बोलने पर आपको अधिक तवज्जो दी जायेगी ये मानसिकता भी हमने ही बनाई इसलिये तो अंग्रेजों के जाने के बाद भी हमारे देश में अब भी उनकी भाषा राज कर रही तर्क भले कुछ भी दिये जाये लेकिन कोई अपनी माँ को सिर्फ़ इसलिये तो नहीं त्याग देता क्योंकि उसकी वजह से उसकी साख में कोई कमी आती । ये धारणा भी हमारी ही बनाई गयी हैं कि ‘इंग्लिश मीडियम’ स्कूल ‘हिंदी मीडियम’ से बेहतर हैं और उसमें पढने वाले अधिक तरक्की करते जब तक हम स्वयं अपनी चीजों और जबान का सम्मान नहीं करेंगे तो कोई दूसरा भी क्योंकर उसे इज्जत की दृष्टी से देखेगा । यदि हम सब अपने देश की भाषा को अपनी पहचान बना ले तो क्या दुसरे देश हमसे रिश्ता तोड़ लेंगे बल्कि रश्क करेंगे कि इस देश के बाशिंदों को अपने देश और उसकी हर एक चीज़ पर गर्व हैं और उसे दुनिया के समक्ष उसका सम्मान बनाना आता हैं I

●●●-----------------
मिली कल मोड़ पर
एक अजीब-सी औरत
न भारतीय, न अंग्रेज
वो थी ह्यूमन कॉकटेल
कि होकर भी एकदम पूरी
लगती थी आधी-अधूरी ।

.....
जो पूछा हमने हो कौन ?
तो रह गयी कुछ पल मौन
फिर बोली, मैं हूँ ‘हिंदी’
भारत माँ के माथे की बिंदी
पर, लोगों ने मुझे बदल दिया
और बना दिया बहरूपिया
.....
जाने कैसा ये दौर हैं आया
जो मुझे तो नहीं जरा भाया
कि कहने को तो हैं भारतदेश
पर, देखो इसे तो लगता विदेश
मुझमें कर दी इतनी मिलावट
कि होती हैं बड़ी छटपटाहट ।
....
समझ नहीं आता क्या करूँ?
कैसे मैं अपनों से ही लड़ूं
फिरंगी तो फिर भी दुश्मन थे
जिनके अपने ही रंग-ढंग थे
तो जुदा थी हमारी भी पहचान
सबसे अलग आन-बान-शान ।
.....
खान-पान पहनावा सब न्यारा
देखो तो लगता था बड़ा प्यारा
पर, अब हुआ इसमें घालमेल
मची हिंदी-अंग्रेजी की रेलमपेल
उनकी आत्मा तो हैं वैसी ही शुद्ध
लेकिन हमारी हो गयी अशुद्ध ।
.....
सचमच, हालात हैं वैरी बैड
माता-पिता बन चुके मॉम-डैड
गुम हो रहे अपने पकवान
पिज़्ज़ा-बर्गर का होता गुणगान
देश भी अब कहलाता ‘इंडिया’
हमने खुद को ये क्या बना दिया?
.....
#हिंदी_दिवस का यही संदेश
फिर से बने ‘हिंदी’ अपना देश
सिर्फ 14 सितंबर को ही
हिंदी दिवस मनाना छोड़ो
रोज थोड़ा-थोड़ा अपनी गुम होती
भाषा और संस्कृति को जोड़ो ।।
-------------------------------------●●●

जब हम अपनी निज भाषा का सम्मान करेंगे उसे प्रथम दर्जा देंगे तो फिर दूसरे भी उसका अनुशरण करेंगे तो ऐसे में हम सब मिलकर ये भी प्रयास करे कि उसे पहला स्थान मिले... और हमें अपनी भाषा का ही चयन करने नंबर दो दबाने की आवश्यकता न हो... फिर वो खुद-ब-खुद अव्वल बन जायेगी... :) :) :) !!!

_______________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१४ सितंबर २०१७

कोई टिप्पणी नहीं: