बुधवार, 13 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२५४ : शुरू ‘हिंदी’ पखवाड़ा... सरकारी दफ्तर बने अखाड़ा...!!!


सितंबर माह की शुरुआत के साथ ही देश के सभी सरकारी महकमों में औपचारिक ‘हिंदी पखवाड़ा’ मनाया जाने लगता हैं जिसके माध्यम से अपने ही देश में अपनी ही राष्ट्रभाषा को १५ दिन के लिये सब पर थोप दिया जाता हैं बोले तो सरकार अपने अधीन काम करने वालों को कम से कम पंद्रह दिनों के लिये तो सभी काम ‘हिंदी’ भाषा में करने को मजबूर कर देती हैं जिसमें में दिखावा और शोर-शराबा अधिक होता बाकि तो सिर्फ रस्मी अदायगी कर लोग इससे मुक्त होकर वापस अंग्रेजी के सुविधाजनक खोल में घुस जाते जबकि पूरी दुनिया में देखे तो एक भी ऐसा देश नहीं जो विदेशी भाषा को इतनी तवज्जो देता हो कि वहां के विद्यालयों और संस्थानों में उसका ही बोलबाला हो लेकिन हमारा देश तो प्रारंभ से ही ‘अतिथि देवो भवः’ की मानसिकता का पालन करने वाला हैं तो उसने अंग्रेजों ही नहीं बल्कि उनकी हर एक चीज़ यहाँ तक कि अटपटी बोली को भी इस तरह अपनाया कि उन्हें तो देश से बाहर खदेड़ दिया लेकिन उनकी इन चीजों को सदा-सदा के लिये यहाँ रख लिया और उसी का परिणाम हैं कि आज हमारे नौनिहाल अपने भाषा के शब्दों तो छोड़े ककहरा से भले परिचित न हो लेकिन अंग्रेजी भाषा के अल्फाबेट्स और वर्ड्स मुंहजुबानी याद होते यहाँ तक कि कभी अपनी तोतली जुबान से मटक-मटक कर हिंदी कवितायें गाने वाले नन्हे-मुन्ने भी अब न सिर्फ गिटपिट अंग्रेजी बोलते बल्कि पोयम्स भी बखूबी सुनाते और अपने घर के बच्चों को बाल्यकाल से ही इस तरह की बातें सिखाकर उन्हें ये अहसास करा दिया जाता कि यदि उन्होंने इस भाषा को आत्मविश्वास से बोलना न सीखा तो उनका भविष्य सुरक्षित नहीं हैं इसी का नतीजा कि इस देश में हिंदी माध्यम की जगह अंग्रेजी मीडियम से पढ़ाने वाले स्कूलों की बाढ़ आई हुई हैं जिसमें पढ़ने-लिखने वाले बच्चे अपनी ही भाषा के साधारण बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले शब्दों से ही परिचित नहीं उन्हें तो हिंदी वर्णमाला के सभी अक्षरों तक की पहचान नहीं और गिनती भी नहीं आती तो फिर किस तरह से वे इसके अंकों को बोले या समझे तो इस तरह हमने उनकी जड़ें ही खराब कर उसमें अंग्रेजी के अल्फाबेट्स बो दिये फिर किस तरह उनसे उम्मीद करें कई वे हिंदी की फसल काटे तो आज के परिदृश्य में जहाँ भी देखो अंग्रेजी का ही राज हैं इसे पढ़ाने वाले फलफूल रहे हैं जबकि हिंदी वालों का बुरा हाल हैं यहाँ तक कि अपने यहाँ तो हिंदी चलचित्र, हिंदी अख़बारों और चैनल्स में काम करने वाले भी अंग्रेजी का ही राग अलापते हैं हमारे फ़िल्मी कलाकार बेशक हिंदी में कमाई करते लेकिन खर्च अंग्रेजी पर करते अब तो स्मार्ट फोन या कंप्यूटर में भले हिंदी लिखने की सविधा उपलब्ध हो लेकिन ज्यादातर लोग अब भी इसे रोमन में लिखना पसंद करते हैं तो इस तरह हिंदी की बची-खुची गत इस शोर्टकट भाषा या शोर्ट मेसेंजिंग ने बना दी और आज के नौजवान व नई पीढ़ी तो शब्दों को पूरा लिखने में भी कतराते जिसकी वजह से भाषा की दशा बद से बदतर होती जा रही ऐसी परिस्थितियों में ये निहायत जरूरी कि हम सब जो फेसबुक पर हिंदी में लिखते और उसे उसके ही घर में वही मान-सम्मान दिलाना चाहते जो उसका हक़ हैं तो फिर इस विदेशी भाषा को उसके वास्तविक स्थान पर पहुंचा दे याने कि जहाँ से ये आई वही और जब हमारे देश के लोग वहां जाये या जिसे इससे ज्यादा ही लगाव हैं वही इसे सीखे जैसे आजकल भी बहुत से युवा अलग-अलग देशों में जाने से पूर्व वहां की भाषा का ज्ञान प्राप्त करते न कि सबको जबरन इसे पढ़ाये जाये जैसे कि फ़िलहाल किया जाता और संभव हो तो हम सब इसके लिये मिलकर सामूहिक प्रयास करे कि हमारी भाषा को किसी गैर भाषा के सामने सर झुकाना न पड़े और न ही इसे बोलने वाले को ही शर्मिंदगी का सामना करना पड़े क्या किसी भी देश में ऐसा होता कि वहां की राष्ट्रभाषा बोले जाने पर वहां के नागरिकों को शर्म महसूस हो लेकिन हमारा एकमात्र देश जहाँ हम विदेशी भाषा तो बड़े गर्व से सर उठाकर बोलते लेकिन अपनी भाषा बोलते समय हमारी गर्दन और आँखें ही नहीं पूरा वजूद ही शर्म से झुक जाता जैसे कि इसे बोलकर हम कोई घृणित कार्य कर रहे हो तो इस तरह की मानसिकता में परिवर्तन करने के लिये हम सतत प्रयास करे तब निश्चित ही एक दिन अन्य देशों की तरह हमारे देश में भी अपनी भाषा का राज होगा फिर हमें न तो हिंदी दिवस’ और न ही ‘हिंदी पखवाड़ा; मनाने की जरूरत होगी कि हर दिन, हर पल ‘हिंदी’ का होगा... जय हिंद... जय हिंदी... हिंदी हैं हम वतन हैं... हिंदुस्तान हमारा... :) :) :) !!!                     

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१३ सितंबर २०१७

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