गुरुवार, 28 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२६९ : शहीद-ए-आज़म ‘भगत सिंह’... नवजवानों को सिखाते देशभक्ति...!!!


आज भारत की पवित्र भूमि पर जन्मी एक ऐसी प्रेरक शख्सियत की जयंती हैं जिसकी जीवन गाथा सिर्फ युवाओं ही नहीं बल्कि हर एक देशवासी को अपनी मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्यों का भान कराती हैं जिस तरह उन्होंने अल्पायु में ही अपने जीवन के लक्ष्य तय कर अपने भावी मार्ग का निर्धारण किया उसी तरह से यदि सभी युवक भी करें तो फिर इस देश को पुनः विश्वगुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता कि इस वक़्त इस देश में युवाशक्ति का प्रतिशत सर्वाधिक लेकिन वो अपनी ऊर्जा व ताकत का उपयोग महज़ सोशल मीडिया पर गपबाजी करने या फालतू की बातों में टाइमपास करने या इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने या फिर भिन्न जातियों के मध्य नफ़रत का ज़हर फ़ैलाने में कर रहा हैं

यदि इसी तरह से उस वक़्त उस दौर के युवाओं ने भी अपने कर्तव्यों को न समझकर केवल अपनी जिंदगी को मूल्यवान माना होता तो आज हम आज़ाद नहीं बल्कि गुलाम ही बन होते कि ये तो अनगिनत क्रांतिकारियों के सतत प्रयासों का परिणाम हैं कि हम अंग्रेजों को इस भारत भूमि से बाहर निकाल सके पर, उनकी ‘फूट डालो राज करो नीति’ को अपने जेहन से न निकाल सके तो आज भी देश के शीर्ष नेता उसी नीति का पालन कर अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे जिसका नतीजा कि ‘यथा राजा तथा प्रजा’ के अनुरूप जनता का चरित्र भी निर्मित हो रहा जिसे अपने सिवाय किसी से कोई मतलब नहीं सिर्फ अपने फायदे को देखना फिर चाहे जो हो तभी तो आज शहीद-ए-आजम ‘भगत सिंह’ की जयंती पर ‘फेसबुक’ पर इन्हीं जवान युवक-युवतियों को जिस तरह से उनके खिलाफ लिखते देखा मन में संशय उत्पन्न हुआ कि जो लोग २७ सितंबर १९०७ को जन्मे ‘भगत सिंह’ के बलिदान की दास्तान को जो कि ज्यादा पुरानी नहीं औ र्जिसके साक्ष्य भी मिलते हैं को अपनी तरह से तोड़-मरोड़कर पेश कर रहा वो अतीत को जिसके बारे में प्रमाण उपलब्ध नहीं या जिसे नष्ट कर दिया गया उसे फिर किस तरह से प्रस्तुत करेंगे या उसे भी अपने हिसाब से जिस तरह चाहेंगे लोगों के सामने पेश कर देंगे

इसकी वजह यही कि वे जानते इस तकनीक युग में लोगों को जितनी सुविधा मिली वो उतने ही आलसी हो गये और ‘गूगल’ जैसे सर्च इंजन के होने के बावजूद भी किसी भी जानकारी या संदेश की प्रमाणिकता को जांचने के जहमत उठाने के बजाय सीधे-सीधे आगे फारवर्ड कर देते और ये सिलसिला चलता ही रहता जिसकी वजह से नकल भी असल बन जाता बिलकुल उसी तरह जिस तरह हजारों बार दोहराया गया झूठ बन जाता वास्तव में यही तो इस सोशल मीडिया के जमाने में हो रहा और आज तो हद हो गयी जब ‘भगत सिंह’ को शहीद मानने से इंकार करती कई पोस्ट्स नजर आई साथ ही ये भी कि वे ऐसे कोई महान व्यक्तित्व नहीं जिनका स्मरण या गुणगान किया जाये साथ ही इतिहास को बदलते हुए ये भी लिखा गया कि ‘साइमन कमीशन’ तो अछूतों के फायदे हेतु आ रहा था जिसका विरोध करना उन्हें अछूतों का नायक नहीं बना सकता और चूँकि केवल ‘डॉ भीमराव आंबेडकर’ ही उसके सदस्य रूप में शामिल थे अतः एक वर्ग विशेष को उन दोनों में से किसी एक को चुनना होगा जो स्वतः ही ये साबित करता कि आज का युवा किस तरह दिग्भ्रमित व् पढ़ा-लिखा होने के बावजूद भी कितना अनपढ़ जो जात-पात जैसी कु-प्रथाओं को न केवल जीवित रखना चाहता बल्कि उसके आधार पर फिर से देश का बंटवारा भी करना चाहता

इस तरह की अनेक पोस्ट्स ने सर शर्म से झुका दिया कि किस तरह से आज के युवा सोशल मीडिया को जंग का मैदान समझकर हवा में अपने शब्दों के खोखले तीर चला रहे जबकि इनको उमर में खुदीराम बोस, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु अपने वतन की खातिर फांसी के फंदे पर झूल गये पर, इनको लगता इसी कारण तो उन्हें शहीद का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिये कि वो कोई स्वेच्छा से थोड़े अपनी जान दिये ऐसे में इन भटके हुये जवानों से यही कहना चाहूंगी कि जिस कृत्य की वजह से उनको अपनी जान गंवानी पड़ी उस अंजाम देने से पहले ही उन्हें अपना अंजाम भी ज्ञात हो गया था लेकिन उसके बाद भी उन्होंने बगैर ये सोचे-विचारे ही आगे कदम बढ़ा दिये जबकि आज न जाने कितनी समस्याएं जिनका विरोध जमीन पर हो तो शायद कोई बात बने लेकिन ये सब की सब फेसबुक की वाल को रणक्षेत्र समझकर रात-दिन कोरी बातों में लगे रहते और सोचते कि इस तरह से ये देश की तस्वीर बदल देंगे जबकि कर्मयोगी तो सीधे जमीन पर उतरकर अपने लक्ष्यों को पाने कर्म करते आजकल तो यूँ प्रतीत होता कि कंप्यूटर युग की ये उपज तो की-बोर्ड या टच स्क्रीन से ही सब लड़ाई लड़ लेगी इन्हें तो अपने गौरवशाली इतिहास, अपनी संस्कृति, सभ्यता, परम्पराओं और सनातन धर्म से ही परहेज जिसका मखौल उड़ाने का कोई अवसर हाथ से न जाने देते फिर चाहे देवी-देवता हो या महान हस्तियाँ सब पर कीचड़ उछालते ये भूलकर कि वे तो इस धरती पर नहीं न उनको कोई फर्क पड़ेगा फिर चाहे तुम गालियाँ दो या जूते ही मारो लेकिन इस तरह वो अंग्रेज जो ये सब देखते या सुनते होंगे वो जरुर गर्व से हंसते होंगे कि हमने जो चिंगारी भारत भूमि पर छोड़ी थी वो आज ज्वाला बनकर भभक रही और उसे सर्वनाश करने तुली लेकिन जिस देश में भगत सिंह जैसे क्रन्तिकारी हुये वो अभी ऐसे देशभक्तों से खाली नहीं जो अपनी जान की बाज़ी लगाकर भी देश का सर झुकने न देंगे...        

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मौज-मस्ती
और ऐश उड़ाना ही
जिनका कर्म हैं
जो खोये हुये
तकनीकी जाल में
रहते लिव-इन में
न बची जिनकी आँखों में शर्म हैं
देखते खामोश
लुटती अस्मत बाज़ार में
खून भी न होता जिनका गर्म हैं
छोड़ते मात-पिता को
वृद्धाश्राम में नहीं जानते कि
मानवता भी कोई धर्म हैं
देश का संविधान
गौरवशाली इतिहास
अमर शहीद बलिदानी
और हमारी संस्कृति सहित
भूल चुके जो युवा लोग
वेद-पुराण उपनिषद का मर्म हैं
समझते नहीं
राजनीति के दावपेंच
बनते राजनेताओं की मोहरें
जबकि इस नादां उम्र में
गौतम बुद्ध, विवेकानंद
भगतसिंह, खुदीराम बोस
और... अनगिनत जवान देश के
कर चुके थे प्राप्त अपना ध्येय
जिन पर हम आज भी करते गर्व हैं ।।
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आज इस तरह की पोस्ट्स पढ़कर वाकई ‘भगत सिंह’ की आत्मा यही कह रही होगी कि विश्वास नहीं होता ये वही देश हैं जहाँ उन्होंने जन्म लिया और इन खुदगर्जों के लिये अपने प्राण त्याग दिए जिनको अभी से ही उनका नाम लेने में भी शर्म का अहसास हो रहा तो आने वाले समय में तो ये उनको या किसी भी शहीद को याद करेंगे शंका हैं या फिर जिसे राजनेता महान बतायेंगे उनका ही नाम लेंगे कि आजकल ये राजनेता भी अपने लाभ के अनुसार ही किसी की पूजा करते उफ़, ये भारत देश मेरा प्यारा वतन जहाँ नव-जवानों की भरमार पर, फिर भी नहीं रहा देश का विकास कि सब फोन में व्यस्त वही से एक-दूसरे को गरिया रहे पर, जो करना चाहिये वो नहीं कर रहे इससे अधिक शर्मनाक कुछ न होगा ऐसे में यहाँ दुबारा जन्म लेने का ख्याल भी अपने दिल से निकाल देता हूँ  
         
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२८ सितंबर २०१७

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