सोमवार, 4 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२४५ : ‘अनंत चतुर्दशी’ आई... गणेश विसर्जन की घड़ी लाई...!!!



‘गणेश चतुर्थी’ से ‘अनंत चतुर्दशी’ तक दस दिन श्री गणेश भगवान के पावन उत्सव का उल्लास-पूर्वक आयोजन जगह-जगह किया जाता हैं जिसमें छोटे-बड़े सभी समान रूप से भागीदार होते है तथा केवल बाहर पंडालों में ही नहीं बल्कि घरों में भी उनकी प्रतिमा की विधिवत स्थापना की जाती हैं और दस दिनों तक बड़ी श्रद्धा-भक्ति के साथ विविध कार्यक्रम किये जाते हैं जिससे भक्तों में नूतन ऊर्जा का संचार भी होता हैं तथा इन अलग-अलग प्रतियोगिताओं के माध्यम से बच्चों की प्रतिभाओं को न केवल मंच मिलता हैं बल्कि छोटे-छोटे पुरस्कारों से उनमें जोश भी बढ़ता हैं जिससे कि वे अधिक उत्साह से अपनी कला को निखारने में मनोयोग से जुट जाते हैं कि अगले बरस इससे भी बेहतर प्रदर्शन कर फिर एक बार सबकी वाह-वाही पा सके ताकि जो मेहनत उन्होंने की वो इस तरह से सफल हो इस तरह ये दस-दिवसीय गणेशोत्सव कॉलोनी वालों के लिये स्पोर्ट्स के किसी कुंभ से कम नहीं होते जिसका वे पूरे साल भर इंतजार करते हैं और इन दस दिनों में अपना वो सब कुछ वे दिखा देना चाहते हैं जिसकी उन्होंने इन दिनों तैयारी की तो इसे हम धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि सामाजिक सरोकार के नजरिये से भी देखें तो पाते कि इसमें इन दोनों का बेहद संतुलित समन्वय होता हैं

दस दिनों के उत्साहित वातावरण का जब अंतिम चरण आता तो उन्हीं भक्तों का मन भर आता कि उनके प्रिय गणेश अब चले जायेंगे और फिर अगले बरस ही वापस आयेंगे तो जितनी आस्था के साथ वे उनकी स्थापना करते हैं उतनी ही शास्त्रीय विधिपूर्वक उनके विसर्जन की भी हर एक विधि को संपन्न करते हैं जिसमें पवित्रता, शुचिता, विधि-विधान, नियम-कायदे का उसी प्रकार पालन किया जाता जैसा कि धर्मग्रंथों में वर्णित होता तो इस तरह से नौनिहाल अपनी परम्पराओं से भी परिचित होते जो उन्हें उनकी जड़ों से जोड़ता और उनके भीतर संस्कारिता का नन्हा बीज बोता जो आगे चलकर उनके नैतिकता के वृक्ष को दृढ़ करता हैं जिससे कि वो पथभ्रष्ट नहीं होता आजकल आधुनिकता के नशे में जरुर चंद लोग इस तरह की परम्पराओं का मजाक उड़ाते कि ये उनके कुत्सित इरादों के सामने किसी ढाल-सी प्रतीत होती तो खुद पर ही नियंत्रण न होने पर वे इससे ही बचने का प्रयास करते ऐसे में जो लोग भी भारतीय संस्कृति या उसके पुरातन रीति-रिवाजों का विरोध करते ताकि दूसरे भी इससे दूर हो तो वे खुद को उस अपराध बोध से बचा सके जो उन्हें मनमानी करने से महसूस होता याने कि खुद तो सर तक बुराइयों में डूबे होते साथ अपने दूसरों को डुबाना चाहते पर, इसे वे ही समझ सकते जो इसके पीछे की सच्चाई जानते हैं

आज अनंत-चतुर्दशी पर जगह-जगह हवन की सुगंधि से वातावरण पवित्र लग रहा हैं और इसी के साथ भक्तों के नयनों में उनके प्रिय गणेश से जुदा होने का गम भी दिखाई दे रहा भले वे जानते कि वे सदा उनके साथ लेकिन जिस रूप में उन्होंने उनको बिठाया वो स्वरुप तो कल उनसे विदा हो जायेगा तो इस पीड़ा से कहीं न कहीं मन द्रवित हो जाता पर, अगले साल पुनः उनके आगमन का भरोसा टूटे दिल को दिलासा देता तो हम भी विसर्जन की इस बेला में सबके साथ हो जाते हैं और भगवान का आशीष पाते हैं तो बोलो गणपति बप्पा की जय... :) :) :) !!!
 
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०४ सितंबर २०१७

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