शनिवार, 30 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२७१ : देखते ही देखते चमत्कार हो गया दैत्य ‘महिषासुर’ लोगों का भगवान् हो गया... लगता हैं कलयुग का आगाज़ हो गया... ‘रावण दहन’ दुष्ट आत्माओं को नागवार हो गया...!!!



यूँ तो देश में आये दिन ऐसी घटनायें होती रहती जो मानवीयता को शर्मसार कर देती पर, अब तो आध्यात्मिकता भी इससे बची न रही कि रोज कोई न कोई ढोंगी बाबा अपनी करतूतों की वजह से कानून की गिरफ्त में आ जाता हैं परंतु, कोई भी इनका गहन विशलेषण करने या इसकी जड़ में जाने की बजाय ‘धर्म विशेष’ को निशाना बना उस पर कीचड़ उछालने लगता और फिर मीडिया का स्टुडियो हो या फेसबुक की वाल या ट्विटर का हैंडलर एकाएक ही जंग का मैदान बन जाता कि लोगों को समाधान की जगह इस तरह एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना अच्छा लगता जिसकी वजह यदि गहराई से सोची जाये तो कहीं न कहीं हमारी भारतीय संस्कृति और हमारे नैतिक मूल्यों का पतन ही हैं जो आये दिन इस कदर गिरता जा रहा कि शर्म-लिहाज, सोच-विचार, मान-मर्यादा जैसे शब्दों का भी लोप हो गया जिसकी जगह स्वच्छंदता, बेशर्मी, गाली-गलौच जैसी बुराइयों ने लोगों के मानस में इस तरह अपनी पैठ बना ली हैं कि उन्हें इस तरह का बर्ताव या बोलचाल जरा-भी अमर्यादित या अनैतिक नहीं लगता कि घरों से ईश्वर की तरह संस्कार भी तो गायब होते जा रहे हैं फिर भला उन्हें इस तरह की बातें पुरातन या गैर-जरुरी क्यों न लगे जो उनको सामान्य मानवीय व्यवहार का पाठ पढ़ाती जबकि वे तो मनमर्जी से जीने के आदि हो चले फिर भले उसके कारण उनका दोहन या शोषण ही क्यों न हो जाये लेकिन उन्हें वो गलत परिवर्तन दिखाई ही नहीं देता जिसने उसे संस्कारी सभ्य मानव से दुराचारी असभ्य दानव बना दिया हैं

तभी तो अब इस तरह की खबरें हर तरफ से सुनाई देती फिर चाहे किसी निकृष्ट जेहनियत के मालिक का आदिशक्ति माँ दुर्गा के प्रति अपशब्दों से अपनी गंदी मानसिकता का परिचय देना हो या फिर चंद गुमराह लोगों का ‘महिषासुर’ जैसे पापी दैत्य को अपना पूजनीय बताना हो या फिर कुछ लोगों को अभिमानी ‘रावण’ में अपना चेहरा नजर आना हो जो ये संकेत देता कि वेदों में वर्णित कलयुग का आगाज़ हो चुका तभी तो इस तरह के कलुष विचार मस्तिष्क में उभर रहे तो ऐसे में इनका सर्वनाश भी जरूरी ताकि ये असुर अपने आतंक से पृथ्वी को नष्ट ही न कर दे आज ‘विजयादशमी’ का पावन पर्व हैं को इसी बात का प्रतीक हैं कि जब-जब इस धरती पर अधर्म बढ़ता हैं, पाप चहुँओर बढ़ जाता हैं तब इस आतंक का खात्मा करने भगवान को अवतार लेकर आना पड़ता हैं कि दानवीय शक्तियों पर साधारण मानवीय ताकत विजय प्राप्त नहीं कर सकती उसके लिये अलौकिक अस्त्र-शस्त्र और विजयी भव के वरदान की भी आवश्यकता होती जो तपोबल से ही हासिल होता और जिसके भीतर इतना आत्मबल हो कि वो अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ले तो उस पर इन दुष्प्रवृतियों का कोई भी असर नहीं पड़ता बल्कि वो तो अपनी साधना से इस तरह की अद्भुत शक्तियाँ अर्जित कर लेता कि समाज को नष्ट होने से बचा लेता

जिसका सबसे बेहतरीन उदाहरण ‘राम’ हैं जो एक साधारण मानव के रुप में अयोध्या में जन्मे पर, अपने चरित्र को पारस समान बना लिया जिसके स्पर्श से न जाने कितने पत्थर जैसे निकृष्ट इंसान भी कुंदन बन गये और आतंकी राक्षस भी जिनके आयुधों से अमरत्व को प्राप्त कर गये कि आज भी ‘राम’ के साथ उन सभी का स्मरण किया जाता फिर चाहे वो लंकाधिपति प्रकांड पंडित महाज्ञानी बलशाली ‘रावण’ हो फिर उनके भाई ‘कुंभकर्ण’, ‘विभीषण’ या उनका पुत्र ‘मेघनाद’ ये सब भगवान् श्रीराम के चमत्कारी सानिध्य से उनकी ही तरह विराट व्यक्तित्व बन गये । आज लोग मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के उज्ज्वल चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं और उनकी कथा में कमियां ढूंढकर उन्हें अपने समकक्ष खड़ा करना चाहते हैं लेकिन उनके जैसा बनने का कोई प्रयास नहीं करते कि वो बेहद कठिन तो जो सहज-सरल लगता उसमें ही जुटे हुये जी-जान से ये भूलकर कि ‘रावण’ को उनसे श्रेष्ठ बताना या उसे अपना आदर्श साबित करना उन्हें राक्षस जैसा जरुर सिद्ध करता क्योंकि आप जिसको पूजते उसकी तरह ही बन जाते हो ये भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा हैं तो निसंदेह ये सब जो खुद को ‘महिषासुर’ का वंशज या ‘रावण’ का अनुयायी बता रहे वे भी एक दिन उन्हीं की तरह असुर बन जायेंगे और शायद, बन भी रहे तभी देश में अनाचार, अत्याचार बढ़ता जा रहा कि ‘लकेंश’ को अपना नायक घोषित करने वाले उसी की तरह अहंकारी भी हो गये पर, ख़ुशी की बात कि ये उनके अंत का सूचक हैं ।

सनातन हिंदू धर्म की अवधारणा में पाप-पुण्य और सुर-असुर की अवधारणा इसलिये नहीं कि लोग नकारात्मकता की तरफ आकृष्ट हो बल्कि इसलिये कि उसके परिणाम को देख उसकी तरह आचरण न करे पर, क्या करे उनका जो सोचते कि महिषासुर’ या ‘रावण’ को मारा जा सकता हैं लेकिन उसकी विचारधारा को नहीं तो ये उसे आगे ले जाकर उनको जिंदा रखने का काम कर रहे पर, देखा जाये तो ये केवल प्रकृति के दोनों पलड़ों को सम रखने का प्रयत्न मात्र कर रहे और जब इनका पलड़ा भारी होगा तो वही होगा जिसकी भविष्यवाणी ‘गीता’ में श्रीकृष्ण अपने श्रीमुख से कर गये हैं कि, “हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ और साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए तथा धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ” । हर युग में उन्होंने अपने इस वचन का पालन भी किया चाहे ‘सतयुग’ हो या ‘त्रेतायुग’ या ‘द्वापर युग’ या फिर ये ‘कलयुग’ कि हर युग में वही असुर रूप और नाम बदलकर आये कभी ‘हिरण्यकश्यप’ और ‘हिरण्याक्ष’ तो कभी ‘रावण’ और कुंभकर्ण’ तो कभी ‘कंस’ और ‘दुर्योधन’ और अब तकनीकी युग में तो अनगिनत रूप व् नामों से हम उनको देख रहे तो ऐसे में भगवान के वचन पर विश्वास रखे कि वही ‘कल्कि अवतार’ लेकर आयेंगे और इन दुष्टों का संहार करेंगे... और हम उनके प्रतीकात्मक पुतलों का दहन कर इन दुष्ट आत्माओं को ये याद दिलाने का प्रयास करेंगे कि बुराई का परिणाम हर युग में यही होगा... जय श्रीराम... जय-जय श्रीराम... :) :) :) !!!
                       
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

३० सितंबर २०१७

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