मंगलवार, 12 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२५३ : मुझे चाहिये... ‘Right To Reject’…!!!


‘शिवान्या’ को देखने लड़के वाले आने वाले थे तो उस दिन उसके मम्मी-पापा ने उसे ऑफिस नहीं जाने दिया कि अपने काम के सिलसिले में वैसे ही उसकी शादी हद से ज्यादा लेट हो चुकी थी ऐसे में उसने तरक्की तो खूब हासिल की और अपनी कंपनी को सफ़लता के ऊंचे सोपानों पर पहुंचा दिया लेकिन फिर भी माँ-बाप को कहीं न कहीं ये महसूस होता कि बिना विवाह के सब कुछ होते हुये भी उसका जीवन अधुरा हैं तो इस बार उन्होंने उसे राजी कर ही लिया और सही समय पर लड़के वाले आ गये और देखने-दिखाने की रस्म भी हो गयी तो उसके पापा बोले, इस बार तेरी एक न चलेगी वे लोग राजी हैं तो बस, अगले ही मुहूर्त पर हम तेरा लगन कर देंगे तो उनके बात सुनकर वो बोली...

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सब कुछ बदल गया
बहुत ज्यादा तरक्की कर ली हमने
यहाँ तक कि आधुनिकता का लिबास भी
अपने उपर लाद लिया
कई दकियानूसी
सड़ी-गली परम्पराओं और
रीति-रिवाजों को भी
बेकार मानकर तोड़ दिया
अपनी संस्कृति, पुरातन विरासत
हर दम तोडती रस्म को
बहुत पीछे छोड़ दिया
लडकियों ने आप अपने दम पर
खुद को सिद्ध कर दिया
मौका मिलने पर
सिर्फ घर-बाहर ही नहीं बल्कि   
आसमान-अंतरिक्ष भी
अपने कदमों से नाप लिया
कोई भी ऐसा काम नहीं
जो उसने नहीं किया
मगर, फिर भी
कुछ तो हैं...
जो इस २२ वीं सदी में भी
नहीं बदला और आज भी
बदस्तूर उसका निबाह किया जा रहा हैं
‘लड़की’ नहीं बल्कि
‘लड़के’ की मर्जी पर ही
विवाह तय किया जा रहा हैं
पर, अब बस और नहीं...
क्योंकि अब मुझे चाहिये
‘Right To Reject’ !!!
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और इसके साथ ही उसने कहा कि, पापा मुझे शादी से इंकार नहीं था लेकिन, जाते-जाते उसकी ये बात कि इतने लंबे समय तक शादी नहीं की तो जरुर तुम्हारा किसी से कोई न कोई रिश्ता जरुर रहा होगा लेकिन मुझसे जुड़ने के बाद मैं नहीं चाहूँगा कि तुम इस तरह का कोई संबंध रखो जिसने उसकी मानसिकता ज़ाहिर कर दी कि वो महज़ पुरुष हैं और ऐसे किसी आदमी से मैं कभी अपने जीवन की डोर नहीं जोड़ना चाहूंगी      

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१२ सितंबर २०१७

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