गुरुवार, 21 सितंबर 2017

सुर-२०१७-२६२ : ‘कन्या’ ही ‘देवी’ उसको न मारे... दिलाने ये याद प्रतिवर्ष नवरात्र आते...!!!



सृष्टि की निर्माता, पालनकर्ता और संहारक आदिशक्ति जगतजननी माँ जगदंबा ही हैं जो इस जगत को चलायमान करने के लिये मानवों का सृजन करती हैं और उनमें ज्ञान-विवेक का समावेश करती जिससे कि वो उसका इस्तेमाल कर अपना स्वयं का ही नहीं अपने साथ-साथ दूसरों का जीवन भी संवार सके केवल भाग्य के भरोसे न बैठा रहे परंतु आदमी ने तो खुद को ही समाज का भाग्यविधाता मान लिया और बना दिये अपने अलग-अलग नियम कायदे जिसमें पुरुष को तो अव्वल दर्जे पर रखा लेकिन औरत को बना दिया दोयम ये भूलकर कि प्रकृति ने दोनों को बराबर बोले तो एक तराजू का दो पलड़ा माना जो तभी सम में रह सकता जबकि दोनों के मध्य संतुलन बना रहे यदि कोई भी भारी या हल्का हुआ तो दूसरा अपने आप ही असंतुलित हो जायेगा लेकिन, फिर भी आदमी को अपनी बुद्धिमता और ताकत पर इस कदर अहंकार हुआ कि उसने सभी सुख-सुविधायें अपने नाम कर औरत को दे दिये जिम्मेदारी व तनाव भरे सभी काम साथ इतने रीति-रिवाजों व परंपराओं से भी बाँध दिया कि उसकी घर-गृहस्थी चलती रहे जिससे कि वो आराम से चारदीवारी के बाहर अपनी मनमर्जी करते रहे

इतने पर भी उसका मन न माना तो उसने जन्म-जन्मान्तर तक अपने आपको सुरक्षित रखने के लिये वंशावली का दारोमदार भी अपने सर पर रखा जिससे कि पुरुष जाती का वर्चस्व हमेशा कायम रहे तो इस तरह बड़ी ही चालाकी से उसने खुद को सभी निर्णय लेने का हकदार बनाया इस तरह वो स्त्री जो जननी थी जिसे प्रकृति ने संतति उत्पन्न करने का वरदान दिया था उसकी कोख पर भी उसने बड़ी ही चतुराई से अपना अधिकार जमा लिया तो भ्रूण के लिंग का निर्धारण उसके ही द्वारा तय किया जाता जो यदि कन्या हो तो फिर उसका अंजाम उसके जन्म से पहले ही निश्चित होता जिसमें मशीनों के इजाद के बाद इतनी तरक्की हो गयी कि अब उसे जन्म लेने ही नहीं दिया बल्कि गर्भ में ही उसकी कब्र बना दी जाती जहाँ उसको इस तरह दफन किया जाता कि अगली बार वो कोख़ भी कन्या को अपनाने से घबराने लगती और नारी की माँ बनने की ख़ुशी मातम में बदल जाती याने कि जिस बच्चे के जनम पर स्त्री का हक़ होना चाहिये उस पर मर्द ने अपना सिक्का जमा लिया वो भी इस लिये कि उसकी सत्ता कायम रहे उसके मालिकाना हक़ में कोई परिवर्तन न आये

इसके बावजूद भी यदि कहीं लड़की जन्म ले ले तो उसके जीवन के सभी निर्णय उसके सरंक्षक पिता या भाई के द्वारा ही लिये जाते उसमें भी कहीं वो विरोध कर अपनी मनमानी कर ले तो परिणाम वही कि ऑनर किलिंग के नाम पर फिर उसे मार दिया जाए और जो यहाँ से भी बच जाये तो फिर पति उसकी जिंदगी का रखवाला बन जाये याने कि उसकी सांसों पर उसका अपना नहीं दूसरे का अख्तियार होता और फिर वही सिलसिला चालू हो जाता जिस पर अंकुश लगाने बार-बार लगातार देवी उपासना के पर्व नवरात्र का आगमन होता जो ये संदेश देता कि हर एक नारी ही साक्षात् ‘देवी’ हैं जिसका अपमान देवी का ही अपमान होगा तो ऐसे में जरूरी कि वो प्रतिमाओं की पूजा तो करे लेकिन जीती-जागती कन्याओं को न मारे जिसकी शक्ति से ही नर को भी सहारा मिलता यही सच्ची साधना होगी जब घर की स्त्रियाँ मुस्कुरायेगी तो उसका रिफ्लेक्शन पुरुषों के चेहरे पर झलकेगा और ये देखकर माँ दुर्गा तो प्रसन्न होंगी ही कि उनके बच्चे अनके अंश में उनके स्वरुप को देख पा रहे और उन्हें जीवंत देवी का सम्मान करना आता हैं तभी तो इसे नारी शक्ति का उत्सव माना जाता     
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२१ सितंबर २०१७

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