शुक्रवार, 10 नवंबर 2017

सुर-२०१७-३११ : शब्दांजलि : 'क्या हैं जिंदगी... ???'



आज फिर एक बार ये प्रश्न सामने आ खड़ा हुआ जब एकाएक ही खबर मिली कि व्हाट्स एप्प के हमारे साहित्यिक समूह ‘छंदमुक्त पाठशाला’ की सबसे अधिक सजग, सक्रिय और पुरानी सदस्य ‘रूपा गुप्ता जी’ जो ‘इंडोनेशिया में रहते हुये भी अपने देश और उसकी मिटटी से जुदा न हुई थी तो सरहद ही नहीं समय की सीमाओं से परे जाकर भी वे न केवल नित कविता सृजन करती बल्कि सदैव उनका ये प्रयास रहता कि पटल खुलते ही सबसे पहली रचना उनकी ही हो इस नियम को उन्होंने यथसंभव निभाया और अपनी जिंदादिली से सबके मध्य अपनी जगह भी बनाई...

पर, आज वे जिंदगी की लड़ाई हार गयी और असमय ही हम सबको बीच सफर में छोड़कर बिना अलविदा कहे ही चली गयी कि उन्हें भी ये आभास न हुआ कि ‘टायफोइड’ उनके लिये इस कदर जानलेवा सिद्ध होगा कि उनको यूँ अपने स्वप्नों को अधूरा छोड़कर जाना पड़ेगा...
  
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जनम से लेकर
मरण तक
सभी यही समझते कि
जो वो जी रहे
बस, वही हैं 'जिंदगी'
.....
जब आता
अंत समय तो जानते कि
कितने गलत थे वो
जो बेकार ही गंवा दी
बेकार के कामों में
'अनमोल जिंदगी'
.....
फिर जब
छोड़कर देह का चोला
पहुंचते मृत्यु के पार
तो अहसास करते कि
असल में यही हैं 'जिंदगी ।
.....
सच... मानों तो
कोई भी नहीं जो बता सके
क्या हैं जिंदगी ???
.....
क्योंकि सबकी ही
अपनी-अपनी कहानी
अलग-अलग परिभाषा जिंदगी ।।
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हम नहीं जानते कि उनके जीवन की क्या परिभाषा रही होगी कि उनसे जितना राब्ता हुआ उसमें यही जाना कि वे जीवन को दिल से जीने वाली एक संवेदनशील कवयित्री थी जिन्होंने अपने सहज-सरल व्यवहार से सबको प्रभावित किया कि देश से बाहर रहकर भी उन्होंने अपनी सभ्यता, संस्कृति को भूलाया नहीं था हमेशा जय श्री कृष्ण (JSK) लिखकर ही अपनी बात शुरू करती थी और उनकी रचनाओं में भी अपनी जन्मभूमि की महक होती थी...

आज उनकी विदाई की इस दुखद बेला में समस्त पाठशाला की तरफ से यही भावभीनी शब्दांजलि... ईश्वर उनके परिजनों को ये दुःख सहने करने की शक्ति और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें... यही प्रार्थना हैं... ॐ शांति ॐ...  

जिंदगी सिर्फ़ आशाएं भी तो नहीं
मौत का भी कुछ हक है आख़िर
       
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१० नवंबर २०१७

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