बुधवार, 8 नवंबर 2017

सुर-२०१७-३०९ : कैशलेस लेन-देन : डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़ता एक ठोस कदम !!!



अनुक्रम :

१.    प्रस्तावना
२.    विमुद्रीकरण बनाम नोटबंदी
३.    विमुद्रीकरण की आवश्यकता
४.    विमुद्रीकरण का इतिहास
५.    रिज़र्व बैंक की भूमिका
६.    कैशलेस ट्रांसेक्शन के लाभ 
७.    कैशलेस ट्रांसेक्शन के नुकसान
८.    कैशलेस लेन-देन हेतु समाधान 
९.    तकनीकी सावधानियां
१०.   निष्कर्ष
११.   संदर्भ

१.    प्रस्तावना :

8 नवंबर, 2016 को रात आठ बजे एकाएक लोगों की निगाहें टी.वी. स्क्रीन से चिपक गयी और हाथ ताबड़तोड़ मोबाइल पर सन्देश भेजने में जुट गये जब भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम दिये गये संबोधन में एक बड़ा क़दम उठाते हुए अचानक ही 500 और 1000 के नोटों को उसी रात 12 बजे से बंद किए जाने की घोषणा की जिसे कि अर्थशास्त्र में विमुद्रीकरणएवं आम बोलचाल की भाषा में नोटबंदीकहा जाता हैं । इसका उद्देश्य केवल काले धन पर नियंत्रण या जाली नोटों से छुटकारा पाना ही नहीं था बल्कि कैशलेस इकॉनमीया डिजिटल इंडियाकी तरफ सोच-समझकर उठाया गया एक ठोस कदम भी था क्योंकि इसके साथ ही लोगों को ऑनलाइन माध्यमों से लेन-देन करने का सुझाव भी दिया गया जो कि निश्चित तौर पर तकनीक के सार्थक उपयोग को बढ़ावा देने वाले बदलाव के रूप में इतिहास में दर्ज किया जायेगा । नोटबंदीका ये ऐतिहासिक फ़ैसला भारतवासियों को तकनीकी रूप से बदलते जमाने के साथ अपग्रेड होने को प्रेरित करेगा और जब शुरूआती परेशानियों का दौर खत्म हो जायेगा तो उसे ये अहसास होगा कि कंप्यूटर या मोबाइल महज़ मनोरंजन के ही साधन नहीं हैं बल्कि वो इन्हें बैंकया पर्सकि तरह भी इस्तेमाल कर सकता हैं और घर बैठे-बैठे ही अनगिनत ऐसे कार्य कर सकता हैं जिसके लिये पहले उसे मीलों दूर जाना पड़ता था और घंटो लाइन में भी लगना पड़ता था । आज जिनको लंबी-लंबी कतारों में लगना पीड़ादायक लग रहा हैं जब भविष्य में वे इससे मिलने वाली सुविधाओं का इस्तेमाल करेंगे तो खुद ही महसूस करेंगे की पुराने नोटों को चलन से बाहर करना एवं सीमित मात्र में ही हाथों में नकदी प्राप्त होना कोई परेशानी नहीं बल्कि आसानी की शुरुआत हैं । इसमें कोई दो राय नहीं की हर नई परंपरा या हर अनचाही नवीनता अपने साथ प्रारंभ में कुछ दिक्कतें, कुछ विरोध, कुछ नकारात्मकता अवश्य लाती हैं लेकिन जब हम इनके अभ्यस्त हो जाते हैं या इन्हें दिल से अपना लेते हैं तो हमें इनकी सार्थकता व उपयोगिता का पता चलता हैं ।

हमारे ही देश में जो लोग ये कह रहे हैं कि यहाँ तो बिना पढ़े-लिखों का प्रतिशत ज्यादा हैं, सबके पास मोबाइल नहीं हैं, गाँव में लाइट नहीं हैं और इंटरनेट की सुविधा भी हर जगह उपलब्ध नहीं हैं वे लोग ये भूल रहे हैं कि कभी न कभी तो तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनना ही हैं तो फिर उसमें देरी क्यों ? इंतजार क्यों ? यदि हम अपने देश को डिजिटल इंडियाबनाना चाहते हैं तो उसके लिये नन्हे-नन्हे कदम भी तो चलने होंगे या हम इंतजार करते रहे कि जिस दिन हर एक व्यक्ति के पास मोबाइल, इंटरनेट होगा और जब सब उसको भली-भांति चलना सीख जायेंगे उस दिन हम इस तरह के निर्णय लेंगे तो फिर ये तो कभी होने वाला नहीं लेकिन जब हमारे उपर इस तरह का दबाब होगा तो निसंदेह हम इसे सीखने या जानने को न केवल पहले से अधिक उत्सुक होंगे बल्कि जल्द-से-जल्द पूर्ण रूप से टेक्नोसेवी बनेंगे । वैसे भी आज के समय में निरक्षरकी परिभाषा बदल गयी हैं और अब वो व्यक्ति जिसे अक्षर ज्ञान नहीं हैं सिर्फ वही निरक्षरनहीं हैं बल्कि जिसे कंप्यूटर या मोबाइल चलाना नहीं आता वो भी पढ़ा-लिखा होने के बावजूद अनपढ़कहलाता हैं क्योंकि मोबाइलअब एक ऐसा शक्तिशाली, बहुउपयोगी उपकरण बन चुका हैं जो हमारा मनोरंजन करने के साथ-साथ हमें कई तरह की सेवायें भी प्रदान करता हैं तो वही लोग जो इसके माध्यम से बड़े मजे से गाने सुनते हैं, नई से नई फिल्में डाउनलोड कर देखते हैं, लोगों को सन्देश भेजते हैं, दोस्तों से वीडियो या टेक्स्ट चैट करते हैं, अपनी फोटो अपलोड करते हैं यहाँ तक की कठिन से कठिन गेम या एप्प भी थोड़ी-सी देर में ही अपने आप चलना सीख जाते हैं क्या वे अपनी जरूरतों को पूरा करने कैशलेस लेन-देन किसी प्रशिक्षित मार्गदर्शक के द्वारा नहीं सीख पायेंगे । जरूरत केवल इसे सकारात्मक रूप से लेने की हैं क्योंकि नकारात्मकता के चश्मे को पहनकर हम इसके फायदे या इसके द्वारा देश में होने वाले शुभ-परिवर्तनों को समझ नहीं सकते और जितना ज्यादा इसके प्रति अरुचि दिखायेंगे इससे होने वाले लाभों को पाने में उतना ज्यादा देर लगायेंगे तो अब जबकि 50 दिनों की कष्टमय पीड़ा का अंत होने वाला हैं और इसके साथ ही भारत देश के स्वर्णिम भविष्य का द्वार खुलने वाला हैं तो क्यों न हम खुद को इस बदली हुई अर्थव्यवस्था के काबिल बनाये, तकनीकी रूप से इतने सक्षम बने की कोई हमें नुकसान न पहुंचा पाये तभी हम कुशंकाओं के उन भयावने स्वप्नों से मुक्त हो सकेंगे जिनकी झलक दिखाकर स्वार्थी राजनीतिज्ञ अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं ।

२.    विमुद्रीकरण बनाम नोटबंदी :

अब हम ये जानने का प्रयास करते हैं कि विमुद्रीकरणया नोटबंदीवास्तव हैं क्या ?

यदि हम अर्थशास्त्रया संविधानका अध्ययन करे तो पाते हैं कि प्राचीन काल के आचार्य और अर्थशास्त्र के लेखक चाणक्यसे लेकर आधुनिक काल के संविधान निर्माता भीमराव अम्बेडकरतक ने विमुद्रीकरणको अर्थव्यवस्था की संजीवनीकी तरह दर्शाया है जिससे किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को नवजीवन प्राप्त होता है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विमुद्रीकरण’ (Demonenitization) एक आर्थिक उपचार है और जब पुरानी मुद्रा की वजह से आर्थिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न होती हैं तो सरकार उसे समाप्त नई मुद्रा प्रचलित करती है । इसी तरह जब काला धनअत्याधिक बढ़ जाता है और फिर वो देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन जाता है तो इसे दूर करने के लिये इस विमुद्रीकरणही एकमात्र उपाय रह जाता है क्योंकि जिनके पास काला धन होता है, वह उसके बदले में नई मुद्रा लेने का साहस नहीं जुटा पाते हैं जिससे कि काला धन स्वतः ही नष्ट हो जाता है। चूँकि ये काला धन अर्थव्यवस्था के लिये खतरा बन जाता है तो ऐसी स्थिति में इसे दूर करने के लिये विमुद्रीकरणके अलावा कोई दूसरा रास्ता शेष नहीं होता क्योंकि मुद्रा विमुद्रीकरण के लागु हो जाने से प्रचलित पुरानी मुद्रा वैध नहीं रहती, वह अवैध हो जाती है तो स्वतः ही नकली मुद्रा व काले धन पर नियंत्रण हो जाता हैं अतः आमतौर पर अर्थव्यवस्था में काले धन पर काबू पाने के लिए ही इस तरह का कदम उठाया जाता है ।

जब किसी भी देश में कालेधन की एक सामानांतर अर्थव्यवस्था खड़ी हो जाती है और अर्थव्यवस्था में जाली मुद्रा हद से अधिक बढ़ जाती है तब नोटबंदीयानी विमुद्रीकरणकी तकनीक अपनाई जाती है जिसके अंतर्गत पुरानी मुद्रा को तत्काल प्रभाव से बंद कर, नई मुद्रा जारी कर दी जाती है

३.    विमुद्रीकरण की आवश्यकता :

31 मार्च 2016 को आई रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट अनुसार, मूल्य के आधार पर सर्कुलेशन में नोटों की कुल कीमत ₹16.42 लाख करोड़ (यूएस$240 बिलियन) है, जिसमें से 86% (अर्थात ₹14.18 लाख करोड़  (यूएस$210 बिलियन)) 500 और 1000 के नोट हैं। वॉल्यूम के आधार पर रिपोर्ट अनुसार, 9,026.6 करोड़ नोटों में से 24% (अर्थात 2,203 करोड़) बैंक नोट सर्कुलेशन में हैं तथा 28 अक्टूबर 2016 तक भारत में 17.77 लाख करोड़ (यूएस$260 बिलियन) मुद्रा सर्कुलेशन में थी। जिससे ये स्पष्ट हो जाता हैं कि रिज़र्व बैंक जितने नोट छाप नहीं रही थी उससे ज्यादा प्रचलन में थे जो निसंदेह जाली नोट थे और जिनका उपयोग विभिन्न आतंकवादी संगठन व अपराधी लोग कर रहे थे जिसको रोकने के लिये किसी सख्त कार्यवाही की आवश्यकता थी जो विमुद्रीकरणके अलावा कोई दूसरी नहीं हो सकती थी । प्रधानमंत्री मोदी की आधिकारिक घोषणा के बाद रिज़र्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल और आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास द्वारा एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि सभी मूल्यवर्ग के नोटों की आपूर्ति में 2011 और 2016 और बीच में 40% की वृद्धि हुई थी, ₹ 500 और 1000 पैसों में इस अवधि में क्रमश: 76% और 109% की वृद्धि हुई। इस जाली नकदी को भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों मे इस्तेमाल किया जा रहा था अतः इसके परिणाम स्वरुप नोटों को खत्म करने का निर्णय लिया गया था।

देश में नकली नोट का सम्बन्ध 1991 से प्रारम्भ आर्थिक सुधार से माना जा रहा है। उदारवाद के बाद चार कम्यूनिस्ट पार्टी एवं काँग्रेस समर्थित संयुक्त मोर्चे की सरकार को सन 1996-97 में 3,35,900 करोड़ रुपये की नयी मुद्रा छपवाने की आवश्यकता पड़ी। संयुक्त मोर्चा सरकार ने काले धन की समाप्ति के लिए स्वैच्छिक आय उजागर योजना (वी.डी.आई.एस.) शुरु की। वी.डी.आई.एस. में लगभग 33,000 करोड़ रुपये का काला धन सामने आया। आरबीआई के टकसाल की क्षमता 2,16,575 करोड़ रुपये की थी, जिससे विदेशों से 1,20,000 करोड़ रुपये के नोट छपवाने माँग हुई। भारतीय मुद्रा छापने वाली विदेशी कम्पनियों को स्पष्ट निर्देश था कि वे भारतीय नोट की प्लेट, स्याही, वाटरमार्क कागज भारत सरकार को सौंपेंगी। वैसे, इंग्लैण्ड की कम्पनी डेलारू देश-विदेशों की सरकारों के नोट छापती है। भारत में विमुद्रीकरण के निर्णय से प्रभावित होकर कुछ अन्य देशों ने भी विमुद्रीकरण का निर्णय लिया है जिसमें बेनेजुएला और आस्ट्रेलिया शामिल हैं।

४.    रिज़र्व बैंक की भूमिका :

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के आधार पर मुद्रा प्रबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका निर्धारित हुई है। भारतीय रिज़र्व बैंक भारत में मुद्रा संबंधी कार्य संभालता है। भारत सरकार, रिज़र्व बैंक की सलाह पर जारी किये जाने वाले विभिन्न मूल्यवर्ग के बैंक नोटों के संबंध में निर्णय लेती है। भारतीय रिज़र्व बैंक सुरक्षा विशेषताओं सहित बैंकनोटों की रूपरेखा (डिजाइनिंग) तैयार करने में भी भारत सरकार के साथ समन्वय करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकनोटों की मूल्यवर्ग-वार संभावित आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, उनकी मात्रा का आकलन करता है और तदनुसार, विभिन्न मुद्रण प्रेसों को अपना मांगपत्र प्रस्तुत करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक का उद्देश्य आम जनता को अच्छी गुणवत्ता के नोट प्रदान करना है। इसके लिए, संचलन से वापिस प्राप्त होने वाले बैंकनोटों की जाँच की जाती हैं और पुन:जारी करने योग्य बैंकनोट फिर से संचलन में डाल दिये जाते हैं तथा गंदे और कटे-फटे बैंकनोटों को नष्ट कर दिया जाता है जिससे संचलन में बैंकनोटों की गुणवत्ता बनी रहे।

५.    विमुद्रीकरण का इतिहास :

इससे पहले, इसी तरह के उपायों को भारत की स्वतंत्रता के बाद लागू किया गया था। मुख्यतः अघोषित धन पर नियंत्रण रखने के प्रयोजन से, जनवरी 1946 में उस समय संचलन में मौजूद 1000 और 10000 के बैंकनोटों का विमुद्रीकरण किया गया था तथा वर्ष 1954 में 1000, 5000 और 10000 के उच्च मूल्यवर्ग के बैंकनोटों को फिर से जारी किया गया था । भारत के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री काल में जनवरी 1978 में 1000, 5000 और 10,000 रुपए के बैंकनोटों को एक बार फिर विमुद्रीकृत किया गया ताकि जालसाजी और काले धन पर अंकुश लगाया जा सके। 8 नवंबर, 2016 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा क़दम उठाते हुए 500 और 1000 के नोटों को उसी रात 12 बजे से बंद किए जाने की घोषणा की।

६.    कैशलेस ट्रांसेक्शन के लाभ :

देश में नोटबंदी लागू हुए दो महीने से ज्यादा समय बीच चुका है पर, इस दौरान भी लोग अपनी  परेशानी बयान कर ही रहे हैं लेकिन इन सबके बावजूद इसका एक दूसरा पक्ष भी है जिसे देश और दुनिया के तमाम अर्थशास्त्री मान रहे हैं ब्रिक्स बैंकप्रमुख और पूर्व भारतीय बैंकर केवी कामथने दावा किया है कि लंबी अवधि में देश की सरकार, अर्थव्यवस्था और आम आदमी को बड़ा फायदा भी पहुंचना तय हैं जो निश्चित ही इसका दूरगामी लाभ सिद्ध होगा ।

इसके अतिरिक्त नोटबंदी से आमजन को होने वाले 10 फायदे इस प्रकार हैं-

1.    भ्रष्टाचार रुकेगा - देश में अब तक 500 और 1000 रुपये की प्रतिबंधित करेंसी कुल करेंसी की 85 फीसदी थी यह दोनों करेंसी देश में भ्रष्टाचार की पोषक भी थी परन्तु नोटबंदी के फैसले के बाद से ही भ्रष्टाचार के लिए इस करेंसी का इस्तेमाल रुक गया है। वहीं जारी हुई नई करेंसी को सरकार धीरे-धीरे संचालित कर रही है जिससे कि फिर से कालेधन के रूप में इसे एकत्र न किया जा सके।

2.    कैशलेस इकोनॉमी कैशलेस इकोनॉमी बनाने के लिए जरूरी है कि देश में ज्यादा से ज्यादा ट्रांजैक्शन डिजिटल माध्यमों से किया जाये । इससे करेंसी पर देश की निर्भरता कम होगी और रिजर्व बैंक और अन्य बैकों के साथ-साथ केन्द्र सरकार को करेंसी संचालन में कम खर्च करना पड़ेगा। कैशलेस इकोनॉमी का फायदा सरकार के रेवेन्यू में इजाफे के साथ-साथ आम आदमी को भी होगा क्योंकि उसका पैसा डिजिटल आदान-प्रदान में ज्यादा सुरक्षित रहेगा।

3.    नकली करेंसी नहीं बनेगी –  देश में सीमापार से नकली करेंसी के प्रवाह की समस्या बेहद गंभीर थी और नकली करेंसी जिसके हाथ पहुंचती थी उसे उतने मूल्य का तुरंत नुकसान उठाना पड़ता था। वहीं सरकार को भी इसके रोकथाम के लिए बड़े नेटवर्क का सहारा लेना पड़ता था अतः  करेंसी का कम इस्तेमाल (डिजिटल पेमेंट) से अब ऐसा नहीं होगा और बड़े डिनॉमिनेशन की करेंसी से एक झटके में देश से नकली करेंसी साफ हो ही चुकी है। वहीं नई करेंसी के सुरक्षा मानक ज्यादा पुख्ता होने के कारण अगले कई वर्षों तक अर्थव्यवस्था नकली करेंसी से सुरक्षित रहेगी।

4.    रियल एस्टेट सेक्टर पारदर्शी बनेगा - नोटबंदी के बाद सबसे बड़ा फायदा रियल एस्टेट सेक्टर में होगा क्योंकि बीते कई दशकों से रियल एस्टेट सेक्टर कालेधन के निवेश का सबसे बड़ा जरिया था। इसके चलते कागजों पर प्रॉपर्टी की खरीद और वास्तविक खरीद में बड़ा अंतर होना आम बात थी इससे जहां सरकार को स्टैंप ड्यूटी में बड़ा नुकसान होता था वहीं आम आदमी को ब्लैकमनी न होने के चलते मकान खरीदने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता था जो अब नोटबंदी के कारण संभव नहीं होगा ।

5.    कालाधन मिटेगा  - नोटबंदी के बाद देश में कालेधन के खिलाफ सामाजिक बदलाव लाने के काम को आसानी से किया जा सकता है। यह हकीकत है कि किसी भी अर्थव्यवस्था से कालाधन तब तक नहीं खत्म किया जा सकता जब तक सामाजिक स्तर पर इसका बहिष्कार न होने लगे। अभी तक कालेधन का निवेश प्रॉपर्टी और सोना-चांदी में किया जाता था जिससे इनकी कीमत वास्तविक कीमत से हमेशा अधिक बनी रहती थी। अब नोटबंदी के बाद इन क्षेत्रों में कालेधन के इस्तेमाल पर अंकुश लगेगा।

6.    बंद होगी समानांतर इकोनॉमी - कालेधन और भ्रष्टाचार का सहारा लेकर देश में हमेशा से एक समानांतर इकोनॉमी चलती थी। देश में कोयला की खादान से लेकर सड़क किनारे चाय और सब्जी बेचने वाले इस समानांतर अर्थव्यवस्था में शामिल रहते थे। यहां ज्यादातर लोग देश की सकल घरेलू आय को नुकसान पहुंचाते हुए अपनी आर्थिक गतिविधियों को चलाते थे। अब डिजिटल पेमेंट की ओर रुझान और नोटबंदी से खत्म हुए कालेधन कालेधन के साथ-साथ इस समानांतर इकोनॉमी को मुख्यधारा में जोड़ने में आसानी होगी।

7.    टैक्स बेस बढेगा - देश में डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने का सबसे बड़ा फायदा होगा कि बड़े से बड़े और छोटे से छोटे सभी ट्रांजैक्शन बैंकों के पास दर्ज होंगे जिन पर इनकम टैक्स विभाग की भी लगातार नजर रहेगी। जब देश में ब्लैक इकोनॉमी का आधार नहीं रहेगा तो जाहिर है ज्यादा से ज्यादा लोग टैक्स का भुगतान करने के बाद ही अपनी खरीद-फरोख्त को पूरा कर पाएंगे और इस तरह केन्द्र सरकार की रेवेन्यू में तेजी से उछाल देखने को मिलेगा, उसका वित्तीय घाटा कम होगा और देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारने के लिए उसके पास पर्याप्त संसाधन रहेंगे।

8.    फाइनेनशियल सेविंग में बढ़ोतरी - नोटबंदी के पहले तक देश में लोग अपनी सेविंग को प्रॉपर्टी, सोना और ज्वैलरी में निवेश करते थे तथा जरूरत पड़ने पर लोग इसे ब्लैकमार्केट में बेचकर एक बार फिर करेंसी में बदल लेते थे। मौजूदा समय में देश के 50 फीसदी से अधिक परिवार अपनी सेविंग्स को इन्हीं तरीकों से रखते है और यहां निवेश हुआ अधिकांश पैसा ब्लैकमनी है। अब नोटबंदी के बाद रियल एस्टेट और सोना अपेक्षा के मुताबिक रिटर्न नहीं दें पाएंगे, जिससे लोगों को अपनी सेविंग्स को रखने के लिए एक बार फिर बैंकों का रुख कर सेविंग बैंक, डिमांड ड्राफ्ट और म्यूचुअल फंड जैसे विकल्पों का सहारा लेना होगा जहां उन्हें निवेश पर सबसे अधिक और सबसे सुरक्षित रिटर्न मिलेगा।

9.    बढ़ेंगी बैंकों की कमाई - नोटबंदी से कालेधन पर लगाम के साथ-साथ तेजी से बढ़ते डिजिटल पेमेंट से अब बैंकों की कमाई में बड़ा इजाफा देखने को मिलेगा। इस इजाफे का इस्तेमाल बैंक अपना विस्तार करने के साथ-साथ ग्राहकों को लुभाने के लिए करेंगी। वहीं नोटबंदी से बैंकों के पास एकत्रित हुई दौलत से उन्हें अपना पुराना घाटा पाटने में भी मदद मिलेगी।

10.   कर्ज सस्ता होगा - नोटबंदी के बाद से बैंको को रहे फायदे का सीधा असर देश में ब्याज दरों पर पड़ना तय है। वित्तीय जगत में पारदर्शिता के साथ-साथ बैंक अपना कारोबार फैलाने के लिए ज्यादा से ज्यादा कर्ज देने की कोशिश करेंगे। वहीं ग्राहकों को लुभाने के लिए वह कर्ज पर लगने वाले ब्याज दरों में बड़ी कटौती का ऐलान कर सकते हैं। इससे देश में घर खरीदने, कार या स्कूटर खरीदने अथवा कारोबार के लिए कर्ज सस्ते दरों में मिलना शुरू हो जाएंगे।

७.    कैशलेस ट्रांसेक्शन की हानियाँ :

यूं तो अर्थशास्त्र बेहद गूढ़ विषय माना जाता रहा है, किन्तु हालिया नोटबंदी से उपजे हालातों ने तमाम नागरिकों को अर्थशास्त्र की कई शब्दावलियों से परिचित कराया है. 'कैशलेश इकॉनमी' इन दिनों खूब सुना जा रहा है, जिसका सीधा मतलब यही है कि 'टेक्नोलॉजी' की सहायता से आप प्रत्येक लेन देन करें, जिसमें कैश के आदान-प्रदान की कोई आवश्यकता नहीं । क्रेडिट/ डेबिट कार्ड के साथ-साथ इन्टरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, डिजिटल वॉलेट जैसी सुविधाओं को इसमें गिनाया जा सकता है। हालाँकि, तमाम प्रचार के बावजूद देश की आबादी का बड़ा हिस्सा आज भी कैश पर ही डिपेंडेंट है लोगों के पास क्रेडिट/ डेबिट कार्ड जरूर हैं, किन्तु उसका प्रयोग वह लोग एटीएम से पैसा निकालने के लिए ही ज्यादे करते हैं, सीधी खरीददारी के लिए कम । इसके पीछे जो मुख्य कारण हैं, उनमें हर एक जगह प्लास्टिक मनी लेने की सुविधा नहीं होना और डेबिट/ क्रेडिट कार्ड से जुड़ी असुरक्षा की भावना है । आखिर, डेबिट/ क्रेडिट कार्ड फ्रॉड की तमाम खबरें यूं ही तो नहीं आती हैं न, चूंकि, भारत अब इस दिशा में कदम बढ़ा चुका है तो समझना लाजमी होगा कि आखिर इस दिशा में मुख्य चुनौतियां क्या हैं और उनसे किस प्रकार पार पाया जा सकता है।

हालाँकि इससे लाभ ही अधिक हैं परंतु कुछ हानियाँ भी हैं जिन्हें इस तरह समझा जा सकता हैं---
ऑनलाइन सिक्योरिटी का मसला:

कैशलेस इकॉनमी में जिस मोर्चे पर सर्वाधिक कार्य किये जाने की जरूरत है, वह निश्चित रूप से ऑनलाइन सिक्योरिटी ही है । कार्ड का क्लोन बना लेना, पिन चुराकर पैसे निकाल लेना या क्रेडिट कार्ड से आपकी जानकारी के वगैर ट्रांसक्शन कर लेने जैसे फ्रॉड अब पुराने पड़ चुके हैं और कई जगह उसके साथ-साथ फिशिंग / हैकिंग के सहारे बल्क डाटा चोरी, रैन्जमवेयर जैसे खतरे, कॉल सेंटर से डाटा लीक होने जैसी वारदातें सामने आ रही हैं। 2009 में एक खबर आई थी कि भारत के कॉल सेंटरों में अपराधियों के गिरोह पैसे लेकर ब्रिटेन के क्रेडिट कार्ड होल्डर्स की जानकारियां धड़ल्ले से बेच रहे हैं। ऐसे ही 2008 में भी क्रेडिट कार्ड घोटाला हुआ था जिसमें कुल मिलाकर 609 लाख पाउंड के घपले की बात कही गई थी, फिर 2012 में मार्च के महीने में एक करोड़ क्रेडिट कार्ड खातों में सेंध की बात सामने आयी थी, जिसे लेकर क्रेडिट कार्ड कंपनी मास्टर कार्ड और वीजा ने विस्तृत जांच की थी । इसके अतिरिक्त, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया से सम्बंधित, अभी पिछले ही अक्टूबर में 32 लाख डेबिट कार्ड की सुरक्षा में सेंध लगने की जो बात सामने आयी थी, उसने हर एक को हिलाकर रख दिया था। वित्त मंत्रालय से लेकर, आरबीआई तक इस फ्रॉड से चिंतित नज़र आये थे, किन्तु जैसा कि हर बार होता है, इस बार भी लोगबाग इसे महीने भर से कम समय में ही भूल गए। क्या उस फ्रॉड का कारण था, भविष्य में क्यों यह नहीं होगा, इस पर कोई खास गाइडलाइन सामने नहीं आयी और न ही इस घोटाले के प्रति जिम्मेदार लोगों की जवाबदेही तय की गयी। ऐसे में यह क्यों न माना जाए कि कैशलेश इकॉनमी की बारीकियों को समझने और इस हेतु पुख्ता व्यवस्था करने में हम अभी काफी पीछे हैं वैश्विक स्टैंडर्ड्स की बात करें तो, कैशलेस इकॉनोमी के मामले में स्वीडन पहले नंबर पर है । हालाँकि, वहां बैंकों में लूट कम हुई लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि यहां साइबर क्राइम्स में बढ़ोतरी आ गई।

स्वीडन में इतने सिक्योरिटी मेजर्स के बाद भी जब साइबर लूट बढ़ सकती है तो भारत जैसे देश जो जहां अभी भी एटीएम में 15 साल पुराना ऑपरेटिंग सिस्टम (विंडोज XP) यूज किया जा रहा है, इसके प्रति खतरा निश्चित रूप से बढ़ जायेगा। ऐसे में, जाहिर तौर पर साइबर क्रिमिनल्स की तादाद बढ़ेगी और लोग इसके शिकार भी होंगे यहाँ पुनः प्रश्न उठता है कि टेक्नोलॉजी के साथ-साथ क्या कानूनी तौर पर हमारी तैयारियां उतनी पुख्ता हैं कि न्याय-अन्याय करने के प्रति सजग हो सकें।
गौरतलब है कि रैन्जामवेयर के तहत लोगों के कंप्यूटर्स को एन्क्रिप्ट करके उसे खोलने के लिए उनसे पैसे मांगे जाते हैं जानकारी के मुताबिक, भारत में ये खतरा दूसरे देशों के मुकाबले तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि यहां इसके रोकथाम के लिए कुछ पुख्ता नहीं है. ऐसे मामलों में दोषी को आसानी से बेल मिल जाती है। कानूनी जानकार कहते हैं कि आईटी ऐक्ट की धारा 66, 66A, 66C और 66D फिशिंग, फर्जी ईमेल लिंक और फ्रॉड से निपटने के लिए है तो, लेकिन इसके तहत पुलिस दोषी को हिरासत में नहीं ले सकती है और इन सारे मामलों में दोषी को बेल मिल जाती है। ऐसे ही हमारे देश में डेटा सुरक्षा के लिए भी कोई ठोस कानून नहीं है, तो प्राइवेसी कानून का भी हमारे यहाँ अभाव है, जिससे कम से कम ई-ट्रांजैक्शन के दौरान कस्टमर्स इस बात को लेकर श्योर हो सकें कि वो सुरक्षित हैं समझा जा सकता है कि इस मामले में काफी कुछ किये जाने की आवश्यकता है।

इंटरनेट स्पीड एवं अन्य तकनीकी दिक्कतें:

हालाँकि, रिलायंस जिओ के मार्किट में एंट्री के बाद आने वाले दिनों में फ़ास्ट इन्टरनेट मिलने की संभावनाएं बढ़ गयी हैं, किन्तु अभी भी इस मामले में काफी कुछ किये जाने की आवश्यकता है। रिलायंस जिओ के ढाई लाख करोड़ की भारी भरकम इन्वेस्टमेंट के बाद फेसबुक ने भारत के दूरदराज इलाकों में इंटरनेट पहुंचाने के लिए एक्सप्रेस वाईफाई सेवा शुरू कर दी है । गौरतलब है कि एक्सप्रेस वाई-फाई सॉफ्टवेयर की मदद से स्थानीय उद्यमी अब लोगों को एक निश्चित फीस के बदले इंटरनेट सेवा देंगे। कई ऑपरेटर्स द्वारा दी जानी वाली सुविधाओं की निगरानी की कोई व्यवस्था न होना, ऊँची डाटा दरें, बिजली की अनुपलब्धता इत्यादि दिक्कतें गिनाई जा सकती हैं ऐसे में यह बात कल्पना से बाहर है कि भारत आनन-फानन में कैशलेश बन जाएगा। ज्यादातर कैशलेस ट्रांजैक्शन के लिए यूजर्स को अच्छी स्पीड वाले इंटरनेट की जरुरत होती है, लेकिन भारत में इंटरनेट की स्थिति संतोषजनक होने में लंबा समय लगने वाला है । ऐसे में सेशन टाइम आउट, पेमेंट फेल्ड, इंटरनेट डिसकनेक्ट, नेटवर्क एरर और ओटीपी का समय पर न मिलना लोगों की दिनचर्या में शामिल है। ऐसे ही, वक्त बे-वक्त पीओएस (POS) मशीन काम करना बंद कर देती हैं और ऐसे में आपके पास कैश न हो तो आप जरूरी सामान तक नहीं खरीद सकते। वैसे भी दिल्ली जैसे मेट्रो शहर में भी संभवतः आधी दुकान पर यह मशीन आपको नहीं मिलेगी, जबकि छोटे शहरों और कस्बों में इसकी संख्या घटते हुए गाँव में शून्य तक पहुँच जाएगी। जाहिर तौर पर इनसे निपटने में समय लगने वाला है. हालाँकि, अगर रिलायंस जिओ की तरह कुछ कंपनियां भारत की आधारभूत संरचनाओं में दीर्घकालीन उद्देश्यों की पूर्ती हेतु भारी निवेश करें तो अवश्य ही तस्वीर में बदलाव आ सकता है। इसमें सर्वाधिक इन्वेस्टमेंट बिजली की उपलब्धता पर किये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि तमाम दावों के बावजूद बिजली की अनुपलब्धता बड़े क्षेत्रों को विकास से दूर रखे हुए है। निश्चित रूप से अगर 24 घंटे बिजली और हाई-स्पीड इन्टरनेट भारत के प्रत्येक क्षेत्र में उपलब्ध हो जाए तो स्थिति में सकारात्मक बदलाव आने में अधिक समय नहीं लगने वाला, किन्तु यह कब तक होगा, इस कथन में बड़ा क्वेश्चन मार्क लगा हुआ है।


८.    कैशलेस लेन-देन हेतु समाधान :

चूंकि अब हम कदम बढ़ा चुके हैं, तो रास्ता हर हाल में ढूंढना ही होगा क्योंकि भारत की 60 फीसदी से अधिक जनता जनधन योजना के बाद बैंकिंग से जुड़ चुकी है । अब लगभग हर एक हाथ में मोबाइल आ चुका है तो डिजिटल वॉलेट का कांसेप्ट लोकप्रिय होता जा रहा है। यूएसएसडी (अनस्ट्रक्चर्ड सप्लीमेंट्री सर्विस डाटा - *99# सर्विस) को लोकप्रिय बनाने का प्रयत्न सरकार खूब कर रही है और संयोग की बात यह भी है कि यह तमाम सर्विसेज लोकप्रिय भी हो रही हैं । नोटबंदी के बाद लोगों के गैर-नकदी लेन-देन की ओर रूख करने के चलते डिजिटल मोबाइल भुगतान सेवा मुहैया कराने वाली कंपनी पेटीएम से रोजाना 70 लाख सौदे होने लगे हैं जिनका मूल्य करीब 120 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। कंपनी के साथ कम दिनों में ही 50 लाख से अधिक उपयोगकर्ता जुड़े हैं कई दूसरी कंपनियों को पेटीएम से जलन हुई तो उन्होंने इसके चाइनीज होने की बात उठा दी खैर, किसी को पेटीएम पसंद न हो तो न सही, उनके लिए एसबीआई का बडी (SBI BUDDY) एप्स है तो पे यू मनी, आईसीआईसीआई पॉकेट्स जैसे दूसरे एप्स भी मौजूद हैं। हालाँकि, सर्विसेज के मामले में पेटीएम दूसरों पर भारी है अभी और दूसरे खिलाड़ियों से आगे चल रही है क्रेडिट/ डेबिट कार्ड का प्रयोग बिल पे करने, खरीददारी करने के लिए हम पहले ही करते रहे हैं और अधिकतर शॉपकीपर्स पीओएस मशीन खरीद रहे होंगे, जिनके पास पहले से मौजूद नहीं होगी।

९.    तकनीकी सावधानियां :

सायबर सिक्योरिटी की ओर आम जनता को सावधान रहने की आवश्यकता है।

•         सामान्य तौर पर, हर महीने या फिर ज्यादा से ज्यादा 3 महीने के भीतर एटीएम पिन बदल लेना चाहिए।
•         ऐसे ही फोन या मोबाइल पर किसी को भी एटीएम पिन की जानकारी न दें।
•         कोशिश करें कि आपका मोबाइल किसी जानकार या अनजान के हाथ न लगे, चूंकि ओटीपी मोबाइल पर आने के कारण यह बेहद संवेदनशील हो चुका है।
•         इसके साथ-साथ जहां तक मुमकिन हो, आप अपने ही बैंक एटीएम का इस्तेमाल करें, तो डेबिट कार्ड के इस्तेमाल को लेकर बैंक से आने वाले सन्देश, ईमेल अलर्ट पर पूरा ध्यान रखें और कहीं भी कुछ संदिग्ध लगे तो अपने बैंक से तुरंत संपर्क करें।
•         इन्टरनेट बैंकिंग में किसी लिंक से बैंक की वेबसाइट पर न जाएँ, बल्कि खुद टाइप करें और उसमें सिक्योर सर्वर होने की पुष्टि करें।
•         ऐसे ही, मोबाइल एप्स का ऑफिशियल सोर्स देखकर ही इस्तेमाल करें, अन्यथा आप फिशिंग के शिकार हो सकते हैं।
•         इसी तरह, होटल-रेस्तरां, पेट्रोल पंप या किसी भी दुकान पर अगर आप कार्ड का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो आप अपने सामने उसकी सामने ही उसे स्वाइप करें ताकि उसे क्लोनिंग से बचाया जा सके।
•         अकाउंट स्टेटमेंट पर नियमित नजर रखना, नेट बैंकिंग का पासवर्ड नियमित बदलते रहना भी आपके कार्ड को सुरक्षित रखने में आपकी मदद कर सकता है।
•         सरकार, एंटी वायरस और कार्ड कंपनियां समय-समय पर एडवाइजरी जारी करती रहती हैं, उन पर नज़र बनाये रखना भी लाभदायक कदम हो सकता है।

१०.   निष्कर्ष :

इसे किसी राजनितिक दल की कार्यवाही न समझकर अपने देश के हित में लिया गया उचित निर्णय समझकर अपनाये तो जो भी प्रारंभिक अडचनें आ रही हैं उनके खत्म हो जाने के बाद मार्ग कंटकरहित, सहज-सरल व अपना-सा लगेगा नहीं तो दूसरों की बातें सुनकर बनी धारणाओं से सरलता भी कठिनाई बन जायेगी और हमारा देश जो अन्य देशों के साथ कदमताल करते हुये उन्नति के पथ पर चल रहा हैं उसकी गति भी मंथर हो जायेगी जिससे कि कुछ दिनों में होने वाला कार्य पुनः बरसों में तब्दील हो जायेगा अतः इस क्रांतिकारी परिवर्तन के साथी बने, इसके साथ चले न कि इसके विरोधियों की बातों में आकर अपने तकनीकी विकास के स्वयं बाधक बने । यदि आप भी ये समझते हैं कि इस फ़ैसले से कोई बड़ा बदलाव या विकास नहीं होने वाला या इससे केवल आम जनता को ही तकलीफें झेलनी पड़ी तब भी किसी की बातों में न आकर सिर्फ और सिर्फ अपने व्यक्तिगत हित को देखते हुए ही अपनी राय बनाये कि क्या इसकी वजह से भले ही मजबूरी में ही सही आप मोबाइल को अधिक बेहतर तरीके से संचालित करते हुये अपने बहुत से भुगतान, लेन-देन बिना नकदी का इस्तेमाल करते हुये कम परेशानी के साथ नहीं कर पाये या आपने सावधानी के साथ मोबाइल बैंकिंग, ई-वॉलेट को प्रयोग में लाने के बारे में सीखने का कोई प्रयास नहीं किया या आपने बिजली बिल, फोन बिल, मोबाइल/दिश टी.वी. रिचार्ज, रेलवे टिकिट बनाने जैसे काम खुद किये यदि हाँतो यही तो डिजिटल इंडियाया कैशलेस इकॉनमीका उद्देश्य हैं जिसे पाने में ये कदम उत्प्रेरकसाबित हुआ हैं ।  

११.   संदर्भ

१.    http://bharatdiscovery.org/
२.    http://rajasthanpatrika.patrika.com/story/sikar/indelible-ink-to-stop-repeated-exchange-of-notes-2372902.html
३.    https://hi.wikipedia.org/
४.    http://hindi.webduniya.com/national-hindi-news/demonetization-116120300035_1.html
५.    http://www.gyanpanti.com/notebandi-vimudrikaran-ke-fayde-demonetization-benefits-in-hindi
६.    http://abpnews.abplive.in/business/economists-point-of-view-on-benefits-and-side-effects-of-demonetisation-501104
७.    http://editorial.mithilesh2020.com/2016/12/cashless-economy-reality-vs-concept
८.    http://aajtak.intoday.in/story/these-ten-benefits-of-demonetisation-are-must-1-901432.html
९.    https://knowledgeable-world.blogspot.in/2014/12/e-wallet.html
१०.   http://navbharattimes.indiatimes.com/business/business-dictionary
११.   http://aajtak.intoday.in/story/post-demonetisation-is-bitcoin-future-of-cashless-india-1-902360.html
१२.   http://www.bbc.com/hindi/india-38039162

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०८ नवंबर २०१७

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