कल्पना का बीज
पड़ा हुआ था
दिमाग की तलहटी में कहीं
सोया हुआ था
किसी गहरे गर्त में यूँ ही
पर, जैसे ही मिला
उसको अनुकूल मौसम
विचारों की खाद
विस्तार की ज़मीन
और एहसास से पूरित
एक भावुक क्षण
एक सुकून भरा माहौल
झट से वो उतर आया सफे पर
पल्लवित हुआ बनकर
एक ‘कविता’ ॥
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०३ नवंबर २०१७
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