शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

सुर-२०१७-३३५ : हिंदू धर्म रखहिं जग मांही, तुमरे करे विनस हैं नाही…!!!


'हिन्दू धर्म' एकमात्र ऐसा धर्म या धारण करने योग्य मत जिसमें किसी तरह की कोई कट्टरता या पाबंदी नहीं सबको अपनी तरह से अपने सिद्धांतों के अनुसार इसे मानने की छूट हैं । ये धर्म अपने भक्तों से नहीं कहता कि, जो न माने उसे मजबूर कर दो या उसका गला काट दो बल्कि जिसकी जैसी श्रद्धा, जितनी आस्था और जितना भी विश्वास हो वे इसे उस तरह से और उतना ही पालन कर सकता ऐसी कोई मजबूरी या बंधन नहीं कि कड़ाई से उसके अनुसार चलना ही हैं । इतना लचीला कि हर कोई अपनी सुविधा और अपने हिसाब से उसमें परिवर्तन कर उसे अपने अनुसार बनाकर उसमें समा जाता यही वजह कि समय के साथ उसमें परिवर्तन हुये और उसके अनुयायी कभी इतने सख्त न हुये कि थोड़ी-सी गलती पर किसी को दंडित कर या धर्म से पृथक कर दे यदि इस तरह के कोई किस्से सुनाये भी जाते तो वो मनगढ़ंत बना लिए जाते क्योंकि इस धर्म की सहजता-सरलता सबको खटकती हैं । जितनी इस धर्म ने अपने मानने वालों को छूट दी उतनी अन्यत्र दिखाई न देती इसी का नतीजा कि लोग अबफिर एक बार इसी को दबाने में लगे और इसकी बुराइयां या झूठी बातें ढूंढ-ढूंढकर माहौल में नफ़रत का ज़हर घोल रहे जबकि इसमें इतने अवतार व देवी-देवता कि जिसको जो स्वरूप भाये वो उसमें अपना चित्त लगा सकता ऐसा कोई दबाब नहीं कि विशेष विग्रह को ही पूजना या विशेष मंदिर में ही जाना सबको अपने इष्ट देव चुनने और उन्हें अपने तरीके से पूजने का अधिकार यहां तक कि नियमों में कोई ऐसी कठोरता नहीं कि थोड़ी-सी शिथिलता से वो भंग हो जाये क्योंकि हर हाल में हर बंधन से परे आपकी भक्ति ही श्रेष्ठ होती हैं ।

इन्हीं कारणों से हम देखते कि कठिन से कठिन व्रतों में भी अब बहुत बदलाव कर दिया गया और उस पर भी यदि भूलवश कोई त्रुटि हो जाये तो वो आपकी जान लेकर न पूरी की जायेगी बल्कि इस तरह की गलतियों पर क्षमा-प्रार्थना का भी प्रावधान याने कि अनजाने में कोई धृष्टता हो जाये तो केवल सच्चे मन से माफी मांगना ही पर्याप्त हैं । 'श्रीमद्भगवद्गीता' परमयोगी भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निकली ऐसी शब्द सरिता जिसको पढ़कर ज्ञात होता कि ये धर्म नहीं आत्मा हैं जो चिरकाल से थी और अनन्तकाल तक रहेगी और आत्मा को कष्ट दिए बिना ही इसको निभाना हैं ।  कभी-कभी लगता इसमें किसी तरह की बाध्यता या कट्टरता का न होना ही इसके लिए घातक सिद्ध होता क्योंकि जहां हद से जियादा निर्ममता या नियमों का पालन कराया जाता वहां ये भी सिखाया जाता कि न तो अपने धर्म के खिलाफ सुनो, न किसी को कुछ कहने ही दो और सदैव इस प्रयास में रहो कि दूसरों को बलात या फुसलाकर या प्रेम चाहे जो भी तरीका अख्तियार करना पड़े कर अपने मज़हब में शामिल कर लो बकायदा उसका नाम व धर्म परिवर्तन कर के और जो इसमें सफल न हो पाओ तो उसका नामो-निशान ही मिटा दो सदा-सदा के लिए ताकि दूसरों को डरा-धमकाकर अपने पक्ष में किया जा सके ।

इस तरह के दुष्प्रयास आज से नहीं सदियों से किये जा रहे और तब से अधिक जब से 'इस्लाम' के मानने वाले इस धरती पर आये और अपने साथ निर्ममता और क्रूरता भरी कठोर सोच भी साथ लाये जो इतनी संकुचित कि उसमें किसी के लिये भी जरा-सी भी जगह नहीं जबकि 'हिन्दू धर्म' और 'भारत' इतना विशाल कि उसमें सबके लिए स्थान हैं  और उसने हमेशा सबको चाहे वो उसको मिटाने के उद्देश्य से ही क्यों न आये हो सदैव अपनी शरण में आने दिया, अपनी पनाह में उसको सरंक्षण दिया लेकिन, ये भी देखने में आया कि वही भींगी बिल्ली-सा दुम दबाकर रक्षा की गुहार करने वाला शेर या भस्मासुर बनकर उसे ही विनष्ट करने में पीछे न रहा क्योंकि उसकी दयालुता, विन्रमता, सादगी, भोलापन हमेशा ही उसके खिलाफ़ शत्रु को पीठ पर वार करने का मौका देता हैं । 'औरंगजेब' जैसे दुष्ट, संहारक, लोभी, कामी और क्रूर शासक के अनगिनत निर्मम किस्सों में से एक 'गुरु तेग बहादुर' की जघन्य हत्या का भी हैं जिसे केवल इसलिए अंजाम दिया गया कि उन्होंने इस्लाम को कुबूल नहीं किया तो बेहद निर्लज्जता के साथ उस हत्यारे ने आज ही के दिन उनको मारने का हुकुम सुना दिया ।

हम तो यही मानते व जानते कि दुनिया में कोई धर्म बुरा नहीं और न किसी धर्म की शिक्षाएं लेकिन, जब कुछ निरंकुश शासक उसे अपने हिसाब से तोड़-मरोड़कर पेश करते व अपने अनुयायियों को भी इस तरह से प्रशिक्षित करते कि उन्हें अपने सिवाय दूसरे सब गलत दिखाई देते तो फिर वो धर्म, धर्म न रहकर जिहाद बन जाता जहां सामने वाले को जान से मारकर अपने आपको जबरन सर्वश्रेष्ठ मनवाना ही एकमात्र लक्ष्य रह जाता हैं ।  यही करना चाहा था 'औरंजेब' ने भी जिसने अपने समय में हिन्दू धर्म को समाप्त कर इस्लाम को जबरदस्ती मानने मजबूर किया यहां तक कि हिंदुओं के तीज-त्यौहार मानने, उत्सव आयोजित करने पर पाबंदी ही नहीं हिंदुओ पर जजिया कर लगा दिया और उसके प्रसिद्ध मंदिरों को ध्वस्त करना शुरू कर अनगिनत हिंदुओ के सर कलम करवा दिए । उसके इन अत्याचारों से घबराकर कश्मीरी पंडित आनंदपुर साहिब जिसे गुरु तेगबहादुर ने ही बनाया व बसाया था वहां जाकर उनसे मिले और अपने साथ हो रहे क्रूर अत्याचारों की कहानियां सुनाई जिसे सुनकर उनका मन द्रवित व रक्त खौल उठा क्योंकि उनका तो जन्म ही हिन्दू श्राम की रक्षार्थ हुआ था तो ऐसे में उन्हें अपना बलिदान ही इसका समाधान समझ आया अतः उन्होंने सहायता मांगने आये पंडितों से कहा कि, 'औरंजेब से जाकर कह दो यदि तेगबहादुर ने इस्लाम कुबूल कर लिया तो हम सब भी मुसलमान बन जायेंगे' । इसके बाद वे स्वयं अपने साथियों भाई मतिदास, सतीदास, दयालदास और गुरुदित्ता के साथ दिल्ली की तरफ कूच कर चले तो औरंगजेब ने उन सबको इस्लाम अपनाने का आदेश दिया जिसे मनाने से उन सबने इंकार कर दिया जिसे सुनकर फौरन मतिदास को आरे से चीर दिया गया, सतीदास को कपास में बांधकर आग लगा दी गयी तो दयाल जी को उबलते पानी के देग में डाल दिया गया फिर भी तेग बहादुरटस से मस न हुये तो चांदनी चौक में सरेआम उनका शीश कटवा दिया गया ।

उनकी इस शहादत और बलिदान को हिन्दू कभी भी भूल नहीं सकते और आज उनकी शहीदी दिवस पर उनका स्मरण कर उनको अपने श्रद्धा सुमन समर्पित करते हैं जिन्हें इस त्याग के लिए हिन्द की चादर भी कहा जाता हैं और मुगलों के खिलाफ़ उनकी अद्भुत तलवारबाजी की वजह से ही उनका नाम त्याग मल जी से बदलकर गुरु तेग बहादुर किया गया था । आज फिर ऐसे ही हिन्दूओं की आवश्यकता जो अपनी जान देकर भी अपने धर्म को बचाये न कि उसे ही गलत बताये जैसा कि देखने मे आ रहा हिन्दू धर्म में ऐसी एक भी मिसाल नहीं जब किसी को जबरदस्ती हिन्दू धर्म अपनाने को मजबूर किया गया और ऐसा न करने पर उसकी जान ले ली गयी हो परंतु इस्लाम में ऐसी अनगिनत दर्दनाक करुण कथायें जो साबित करती कि दया, ममता, करुणा केवल हिन्दू धर्म का ही आधार ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२४ नवंबर २०१७

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