सोमवार, 27 नवंबर 2017

सुर-२०१७-३३८ : ‘अग्निपथ’ पर आजीवन चलते रहे... ‘हरिवंश राय बच्चन’ साहित्य रचते रहे...!!!


मिट्टी का तन, मस्ती का मन
क्षण भर जीवन मेरा परिचय...

हर जीवन की तलाश अपने आप को जानना और पहचानना हैं और जो इस भेद को जान लेते हैं फिर उनके लिये सब कुछ बेहद सहज-सरल हो जाता उन्हें मृत्यु का भय भी नहीं सताता हैं वो तो बस, अपनी धून में रहते हैं और जिस कार्य के लिये उन्हें इस धरा पर भेजा गया सतत उसमें में ही लपट रहते यही रहस्य जब ‘हरिवंश राय बच्चन’ ने जान लिया तो फिर सारा जीवन लेखन कार्य को ही समर्पित कर दिया और लेखन भी ऐसा कि जिसने इतिहास ही रच दिया कीर्तिमान तो ऐसे गढ़े कि हिंदी साहित्य जगत में ‘हालावाद’ के नाम से काव्य का एक सर्वथा नवीन व अलहदा विधान ही रच दिया जिसके वे संस्थापक ही नहीं बल्कि एकमात्र साधक भी सिद्ध हुये कि उनकी तरह कोई दूसरा उस तरह से सृजन नहीं कर पाया तभी तो आज भी ‘मधुशाला’ के नाम पर सिर्फ़ उनका ही नाम जेहन में आता हैं

यूँ तो ये उनका द्वितीय काव्य संग्रह था लेकिन, इसने साहित्य जगत में ऐसा तहलका मचाया कि इसकी अनूठी रचना के कारण इसे ही उनका प्रथम संकलन माना गया और जिस तरह से उनके द्वारा इसका पाठ किया जाता था वो भी महफ़िल में तो सुनने वाले झूम जाते थे और कई कवियों ने इस तरह से लिखने का प्रयास भी किया लेकिन, जो माधुर्य व प्रभाव ‘बच्चन साहब’ ने पैदा किया वो किसी के लिये भी उत्पन्न कर पाना संभव नहीं हुआ क्योंकि उनका जन्म इसी कार्य के लिये हुआ था तभी तो वो ये चमत्कार कर सके जिसके असर को हम आज इतने सालों बाद भी उसी तरह महसूस करते हैं और जब इसे पढ़ते तो पाते कि हर पद में इतना गहन, गंभीर भाव छिपा हुआ हैं जिसकी व्याख्या करो तो हर बार नये-नये अर्थ सामने आते कि ये कोई साधारण रचना नहीं बल्कि ‘महाकाव्य’ हैं और जब कलम में सरस्वती विराजमान हो और ईश्वर की कृपा तभी ऐसा कोई विरला ग्रंथ आकार लेता हैं

वे केवल ‘पद्य’ ही नहीं ‘गद्य’ लेखन में भी उतने ही कुशल थे और उनकी आत्मकथा जो चार भागों में लिखी गयी हिंदी साहित्य जगत की अनुपम कृति मानी जाती हैं और जिस तरह से इसमें उन्होंने अपने जीवन की हर सच्चाई को हूबहू व्यक्त किया उसने पाठकों का दिल एक बार फिर से जीत लिया पर, वे अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना अपने ज्येष्ठ पुत्र ‘अमिताभ बच्चन’ को मानते थे जिन्हें हम सब ‘बिग-बी’ या सदी का महानायक के रूप में जानते हैं लेकिन, यूँ देखा जाए तो असली बिग-बी तो वही हैं जिन्होंने हिंदी फ़िल्मी दुनिया को ऐसा कोहिनूर दिया जिसकी चमक से आज भी फिल्म इंडस्ट्री जगमगा रही हैं याने कि उन्होंने हर तरह से इस दुनिया को सिर्फ दिया हैं चाहे वो लेखन के जरिये हो या अपने पुत्र के माध्यम से और आज भी ये परंपरा निरंतर उनके खानदान के द्वारा बखूबी निभाई जा रही ये और बात कि साहित्य के क्षेत्र में उनके बाद उनके परिवार से कोई सामने न आया पर, उनके पुत्र ने अभिनय के माध्यम से इस कमी को दूर करने का प्रयास किया और कुछ रचनात्मक लेखन भी किया पर, उस स्तर के नहीं जिसके लिये उनके बाबूजी जाने जाते थे

पिता-पुत्र के यूँ तो अनगिनत किस्से प्रचलित हैं लेकिन, जिसका यहाँ जिक्र किया जा रहा वो आज के वर्तमान परिवेश में बेहद प्रासंगिक और सार्थक हैं क्योंकि आज भी जीवन में संघर्ष और बेरोजगारी की समस्या पूर्ववत हैं तो कभी इसी तरह के हालातों से घबराकर पुत्र ‘अमिताभ’ ने अपने ‘बाबूजी’ से किंचित गुस्से और अवसाद से गस्त होकर कह दिया कि ‘आपने मुझे पैदा क्यों किया?’ जिसका जवाब उन्होंने उसी वक़्त न देकर एक कविता के रूप में लिखकर उनके सिरहाने रख दिया और इसे पढ़े तो लगता इस तरह की परिस्थिति से लगभग सभी गुजरते तब एक पिता किस तरह सोचता होगा वो इस कविता में दर्शाया गया हैं...

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#क्यों_पैदा_किया_था_?

ज़िन्दगी और ज़माने की
कशमकश से घबराकर
मेरे बेटे मुझसे पूछते हैं कि
हमें पैदा क्यों किया था?
और मेरे पास इसके सिवाय
कोई जवाब नहीं है कि
मेरे बाप ने मुझसे बिना पूछे
मुझे क्यों पैदा किया था?

और मेरे बाप को उनके
बाप ने बिना पूछे उन्हें और
उनके बाबा को बिना पूछे उनके
बाप ने उन्हें क्यों पैदा किया था?

ज़िन्दगी और ज़माने की
कशमकश पहले भी थी,
आज भी है शायद ज्यादा
कल भी होगी, शायद और ज्यादा

तुम ही नई लीक रखना,
अपने बेटों से पूछकर
उन्हें पैदा करना ।        
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हिंदी साहित्य के महान रचनाकार और भावपूर्ण सहृदय पिता को आज उनके जन्मदिवस पर यही शब्दांजलि... :) :) :) !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२७ नवंबर २०१७

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