मिलते
नहीं
दरिया
के किनारे
पर, सदा चलते
साथ-साथ
एक
दूजे के सहारे
हर
राह, हर पड़ाव पर
इस
आस में कि
कहीं
तो आयेगी कोई
संकरी
गली
जहां
बढ़ाकर हाथ
छू
लेंगे परस्पर
ये
भी न हुआ तो
कोई
गम नहीं
नजदीकी
का अहसास ही
कोई
कम तो नहीं
जब
मिलन न लिखा हो
तकदीर
के पन्नों पर
तो
इतना आसरा ही बहुत हैं
दुनिया
में जीने के लिये
कि
इक सुकून तो
दिल
को मिलता
आस-पास
रहने का
आमने-सामने
होने का
कम
से कम
इतना
ही हो जाये तो
हर
एक तूफान को हंसकर
पार
किया जा सकता हैं
सच...!!!
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२८ नवंबर २०१७
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