शनिवार, 11 नवंबर 2017

सुर-२०१७-३१२ : ‘बाल-दिवस’ आ रहा... बचपन याद दिला रहा - 01 !!!



‘बाल-दिवस’ आ रहा...
बचपन याद दिला रहा...!!!
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तकनीक और विज्ञान ने हमें सुविधायें तो बहुत दी लेकिन, उनके बदले में हमसे जो लिया वो बहुत ज्यादा हैं अफ़सोस कि हम ख़ुद में इतने खोये इन हकीकतों से इस कदर गाफ़िल कि सामने नजर आ रही सच्चाई को भी नकार आगे बढ़ रहे कि किसी भी तरह आगे बढ़ना, अपना मुकाम हासिल करना हमारी पहली प्राथमिकता जिसमें यदि अनमोल बचपन खो रहा या अपराध की तरफ बढ़ रहा तो उसे रोकने कदम उठाने समय नहीं कि यदि हमने अपने आगे बढ़े कदमों को रोक लिया या उनकी दिशा बदल दी तो कहीं ऐसा न हो दूसरा हमसे आगे निकल जाये बस, ये ख्याल इतना डरावना कि बुराई को देख या पढ़कर भी हम केवल झूठी संवेदना प्रकट कर या महज़ औपचारिकता का निर्वहन कर आगे बढ़ जाते उसी का परिणाम फिर किसी मासूम ‘प्रद्युम्न’ के किशोर हत्यारे या ‘निर्भया’ के नाबालिग़ बलात्कारी के रूप में सामने आता

तब भी हम सिर्फ़ बातें बनाते उसकी मूल में जाने का प्रयत्न नहीं करते कि किस तरह ‘मोबाइल’, ‘कंप्यूटर’, इंटरनेट और ‘गेजेट्स’ ने नन्हे-मुन्नों को छोटी-सी उमर में बड़ा बना दिया उनकी मासूमियत को छीनकर उस पर ‘स्मार्ट’ होने का ठप्पा लगा दिया कि अब तो केवल ‘मोबाइल’ ही नहीं ‘एजुकेशन’ भी ‘स्मार्ट’ हो गयी तो फिर भला नौनिहाल किस तरह से ‘अपडेट’ न हो वो भी ‘टेक्नोलॉजी’ के संग ‘ओवर स्मार्ट’ बन गये और इतने ज्ञानी बन गये कि शायद, ही कोई बात हो जिसका उन्हें ज्ञान नहीं चाहे फिर वो उनके जानने लायक हो या नहीं जबकि कभी हमने ऐसा नादान, भोलाभाला बचपन देखा जो परियों, खिलौनों, किताबों, कॉमिक्स, चंदा मामा, तितलियों, फूलों और खेल के मैदान में प्रकृति को अनुभव करता और ये विश्वास करता कि उनका छोटा भाई या बहन या वो खुद किसी परी ने फूलों की टोकरी में उनकी माँ को दिया था अब तो कोई ऐसा कहे तो वे इतना ज्ञान बघार देते कि सामने वाला ही शर्मिंदा हो जाये जिसका एकमात्र कारण ये ‘इन्टरनेट’ ही हैं

लेकिन, जब हम खुद पर ही अंकुश न लगे रहे तो फिर उनको किस मुंह से समझाये खुद तो दिन भर सर झुकाये उसमें लगे तो उनके द्वारा भी वही अनुकरण वाजिब हम स्वयं भी तो भूल गये कि कब हमने खुला आसमान देखा, कब तितली पकड़ी या कब मैदान पर जाकर खेलें या कब उनके साथ वक़्त बिताया ऐसे में यदि वे भी ‘ब्लू व्हेल’ या किसी ‘विडियो गेम’ में न उलझे तो क्या करें ???

आज से तीन बाद फिर एक बार ‘बाल दिवस’ मुहाने पर आकर खड़ा ये चेता रहा कि ये दिन अब सिर्फ़ एक ‘दिवस’ मात्र रह गया ऐसे में उस अल्हड़ बचपन को याद करते हुये एक श्रृंखला #बाल_दिवस_आ_रहा_बचपन_याद_दिला_रहा का आरंभ कर रही हूँ जिसकी प्रथम क़िस्त आप सबके समक्ष हैं... उम्मीद कि आपका प्रोत्साहन इसे प्राप्त होगा... :) :) :) !!!             

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

११ नवंबर २०१७

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