शनिवार, 4 नवंबर 2017

सूए-२०१७-३०५ : ‘गुरु पर्व’ और ‘कार्तिक पूर्णिमा’... गाते भक्तगण जिसकी महिमा...!!!



एकमात्र भारत भूमि ही इतनी पवित्र और सौभाग्यशाली प्रतीत होती जहां पर अलग-अलग युगों, अलग-अलग कालखंड में सबसे अधिक अवतार और संतो ने जनम लेकर इस धरती को पापियों-अत्याचारियों से मुक्त कर के पुनः अमन-चैन कायम कर धर्म संस्थापना की ऐसा ही एक बुरा वक़्त था जब यहां 'इब्राहिम लाधी' का शासन था जो एक निरंकुश तानाशाह ही नहीं क्रूर शासक भी था जिसके राज्य में जनता दुखी-परेशान होकर त्राहि-त्राहि की गुहार कर रही थी ऐसे समय में ‘गुरु नानक देव’ का इस भूमि पर आगमन मानो एक नये युग का पदार्पण था क्योंकि उन्होंने कमउम्र से ही अपने आत्मिक ज्ञान से सबको चकित कर दिया और सभी मानवों को ऊपरी भेषभूषा की जगह अपनी आंतरिक आत्मा को संवारने की शिक्षा दी साथ ही ये भी बताया कि वो दिव्य ज्योति या ईश्वर जिसे हम रब मानते वास्तव में हमारी बुद्धि का ही फेर हैं जो हम उन्हें भिन्न समझते जबकि सबका मालिक केवल एक परमात्मा हैं जिसने सबको एक समान पंचतत्वों से मिलाकर बनाया कोई भेदभाव नहीं किया उनमें ये फर्क हमने पैदा किया यदि पैदाइश के आधार पर हम इंसानों को बांटे तो कभी भी किसी शिशु को देखकर नहीं बता सकते वो किस जात या धर्म का हैं क्योंकि भगवान के घर से सब एक जैसे बिना किसी आवरण के निर्दोष तन-मन लेकर आते पर, यहां आने के बाद हमें नाम ही नहीं एक जाति व मज़हब भी दे दिया जाता जो इस तरह हमारी पहचान बन जाता कि हम उस ऊपरवाले की दी हुई उस निर्मल पहचान को ही भूल जाते पर, कुछ पवित्र आत्माएं ऐसी भी होती जो अपने मूल को कभी नहीं भूलती बल्कि जो भूल गए उनको भी याद दिलाने का काम करती ऐसा ही कुछ किया नानक देव जी ने भी जिन्होंने हर संत-महात्मा की तरह वही बात दोहराई कि ईश्वर केवल एक जो सबके भीतर विद्यमान और हम सब उसकी संतान भी आपस में भाई-बहन तो हमें एक-दूसरे में भेद नहीं करना चाहिए ।

किसी भी ‘मज़हब’ का कोई भी ग्रंथ उठा लीजिये या फिर उसके किसी भी ‘अवतार’ की जीवन गाथा को पढ़ लो यही पाओगे कि उन सबने एक ही बात कहीं और उन सबने ही उस कालखंड में समाज में प्रचलित कुरीतियों व अंधविश्वासों का जमकर विरोध किया यहाँ तक कि फ़िज़ूल धार्मिक कर्मकांड और आडंबरों को भी त्यागने हेतु लोगों को तरह-तरह से प्रेरित किया परंतु उन सभी के साथ हमने वही व्यवहार किया जिससे दूर रहने उन्होंने हम सबको सदैव सचेत किया हमने उनको देवी-देवता बनाकर पूजना शुरू कर दिया उनके नाम पर मंदिर-मस्जिदों का निर्माण करवाकर व्यवसाय ही खड़ा कर दिया लेकिन उनकी शिक्षाओं के गूढ़ अर्थों को ग्रहण नहीं किया अन्यथा आज जिस तरह का समाज या देश की जो छवि हमें दिखाई देती वो इस तरह न होती जहाँ असंख्य लोग ही नहीं उतने ही उनके नाम, जातियां और धर्म भी बसते हैं जो उनके संदेश को ग्रहण कर मिलकर रहने की बजाय उनके ही नाम पर झगड़ा-फ़साद करते हैं ऐसे में उनकी जयंती या उनके पर्व मनाने का औचित्य तभी सिद्ध हो सकता जब हम उनके सद्विचारों के अनुकूल अपने व्यवहार व जीवन में परिवर्तन लाये अन्यथा ये दिवस महज़ कोरे उत्सव के सिवा कुछ भी न बन पायेंगे और बाज़ारीकरण के इस दौर में तो उपरी दिखावे से उबर पाना भी आसान नहीं कि अब तो छोटे-से-छोटे और बड़े-से-बड़े दिवस को भी इस तरह से प्रमोट किया जाता कि उसकी ख़ासियत की बजाय हम सबका ध्यान भी उसी तरफ आकर्षित होता जिसे वो दिखाना चाहता गोया कि यदि मार्किट न बताये तो लोगों को पता ही न चले कि आज फलां नक्षत्र या योग का संयोग कितने बरसों के बाद बना और फिर न जाने कब बने तो आज ही उसका लाभ उठाये यही वजह कि हम आयातित वैलेंटाइन डे, फ्रेंडशिप डे, मदर दे, फादर दे.... आदि-आदि मनाने लगे पर, सब औपचारिक किसी की भी गहराई में न उतरते तो बस, वो आते और चले जाते सालों-साल ये सिलसिला चलता जब तक कि कोई आकर फिर से न टोके कि रवायतें या परम्परायें भी ‘आउट डेटेड’ होती उनकी भी ‘एक्सपायरी डेट’ आती इसलिये यदि उनको जीवंत रखना सदा-सदा तो उनमें हर बरस थोड़ा जीवन भी डालो, उनका नवीनीकरण भी करो केवल मशीन की तरह उनको दोहराते न रहो... ऐसी नूतन सोच के साथ ‘कार्तिक पूर्णिमा’ और ‘गुरु नानक जयंती’ का पर्व हम सब उल्लासपूर्वक मनाये... सबको इसका महत्व बताये... :) :) :) !!!          

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०४ नवंबर २०१७

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