रविवार, 19 नवंबर 2017

सुर-२०१७-३३० : ‘नारी’ जब हिम्मत करती... ‘रानी लक्ष्मी बाई’ बन सकती...!!!


भारत की जंगे आज़ादी में केवल पुरुष ही नहीं महिलाओं ने भी बराबर की भागीदारी निभाई थी जिसमें प्रथम नाम झांसी की रानी ‘लक्ष्मी बाई’ का आता हैं जिन्होंने अपने पिता ‘मोरोपंत तांबे’ के सरंक्षण में इस तरह से परवरिश पाई कि माँ की कमी कभी महसूस ही न हुई और शायद, माँ के न रहने पर केवल पिता और साथ में ‘नाना’ व ‘राव साहब’ के साथ बिताये बचपन का ही परिणाम था कि उनके भीतर शौर्य व सहस जैसे गुणों का विकास हुआ क्योंकि अमूमन लडकियाँ माँ की छत्रछाया में रसोई घर तक ही सीमित हो जाती हैं लेकिन, नन्ही ‘मनु’ के सर से तो चार साल की नाज़ुक उम्र में ही ये साया उठ गया तो ऐसे में पिता ने भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुये ‘मनु’ को पालने का दायित्व पूर्ण ईमानदारी के साथ निभाने का संकल्प लिया जिसके लिये उन्होंने उसे सदैव अपने पास रखा और जिस तरह के माहौल में वे रहते थे उसे भी उसका हिस्सा बना लिया

जहाँ पर तीर-तलवार, ढाल-कटार जैसे हथियारों से उसका पाला पड़ा तो वही हुआ जो होना था कि जिस तरह एक लड़की को बाल्यकाल से ही अपने आस-पास करछी, बेलन, चमच्च, थाली, गिलास, कटोरी जैसे सामान ही मिले तो ऐसे में वो उनका उपयोग करना ही सीखती हैं उसी तरह उन्हें साथी के रूप में ‘नाना साहेब’ जैसे भाई और खिलौनों के रूप में अस्त्र-शस्त्र मिले तो फिर उन्होंने खुद को उसमें ही कुशल बनाया क्योंकि आगे चलकर उन्हें इनके माध्यम से ही अपनी जीवन गाथा अपने रक्त से लिखनी थी तो ये स्वतः ही उनकी जिंदगी का अभिन्न अंग बन गये उस पर उनकी कुशाग्र बुद्धि जिसने उन्हें इनमें बड़ी जल्दी पारंगत ही नहीं बनाया बल्कि अपने साथियों को भी अपनी चतुराई से पछाड़ दिया और इसी बौद्धिक क्षमता से उन्होंने राजा गंगाधर के न रहने पर अपने राज्य का कुशल संचालन ही नहीं बल्कि, अंग्रजों के साथ युद्ध भी किया

‘मनु’ से रानी ‘लक्ष्मी बाई’ और फिर ‘मर्दानी’ बनने तक की कहानी में हमें ये सबक दिखाई देता कि एक लड़की का लालन-पालन भी यदि लडकों की तरह बिना किसी पक्षपात या भेदभाव के किया जाये और उसमें बचपन से ही निडरता के साथ-साथ विपरीत परिस्थितियों से लड़ने के लिये भी तैयार किया जाये तो फिर निसंदेह वो ‘रानी’ की तरह ही हर तरह की परिस्थिति में खुद को ढाल सकती हैं वैसे भी जितना संघर्षों से भरा उनका जीवन रहा वो सभी नारियों के लिये अत्यंत प्रेरणादायक हैं क्योंकि उसमें कदम-कदम पर अनेकों संदेश छिपे हुये कि किस तरह से अचानक बदले हुये हालातों से सामंजस्य बिठाते हुये अपने आपको उसके अनुकूल बना उनका सामना करना चाहिये न कि पलायनवादी बन उन समस्याओं से मुंह छिपाना चाहिये यदि उन्होंने इस तरह से खुद को मजबूत न बनाया होता तो निश्चित ही ये अनंत परीक्षायें उनके हौंसलों को तोड़ उन्हें कमजोर बना सकती थी

आज जितना सुविधापूर्ण जीवन सभी लोग जी रहे उन्हें इस तरह के माहौल का न तो अहसास न ही कभी सोच सकते कि वे लोग किस तरह से इतनी असुविधाओं के मध्य रहकर भी टूटे नहीं बल्कि जितनी मुश्किलें सामने आई वे उतने ही सख्त होते गये जिनसे टकराकर फिर मुसीबतों ने दम तोड़ दिया लेकिन उन्होंने कोई समझौता नहीं किया जबकि ऐसे अनेक अवसर ‘रानी’ के समक्ष भी आये जबकि वे सरल-सहज मार्ग अपनाकर सुखी जीवन बिता सकते थे पर, स्वाभिमान से जीने वाले कभी भी जिल्लत से भरी जिंदगी बर्दाश्त नहीं कर सकते तो उन्होंने भी सर झुकाकर जीने की जगह सर कटाकर मरने का विकल्प चुना जिसे आज के सुविधापरस्त लोग हजम नहीं कर पाते तो इन महान ऐतिहासिक चरित्रों पर ऊँगली उठा या उनमें कमियां ढूंढकर उन्हें कमतर बताते और ये सब कुछ आज़ादी हासिल होने के इतने कम समय बाद ही होने लगा जबकि गुलामी भरे साल इससे कई गुना अधिक लेकिन फिर भी नैतिकता का ऐसा पतन न हुआ था

ये सब सोचने पर मजबूर करता और इसका यही उपाय समझ आता कि हम हमको परतंत्रता की जंजीरों से स्वतंत्र करने वाले इन बलिदानियों की दास्तान को भूल न जाये तो जब भी किसी शहीद का कोई दिवस आये उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुये उसे अपने श्रद्धा सुमन अवश्य अर्पित करें... दो पल उनकी स्मृति में बिताये... यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी... जय हिंद... जय भारत... वंदे मातरम... रानी लक्ष्मी बाई अमर रहे... उनको कोटि-कोटि प्रणाम... दिल से सलाम... :) :) :) !!!
        
_______________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१९ नवंबर २०१७

कोई टिप्पणी नहीं: