शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

सुर-२०१७-३२७ : आज़ाद वतन... आज़ाद कलम...!!!



देश की आज़ादी के साथ ही ये भी जरूरी था कि वो कलम जो लोगों तक सच को सामने लाती हैं उसे भी लाल फीताशाही की जंजीरों से स्वतंत्र कराया जाये ताकि पर्दे के पीछे की हक़ीकत को पारदर्शिता के साथ सामने लाया जा सके तो इस उद्देश्य से ४ जुलाई १९६६ को ‘भारतीय प्रेस परिषद’ की स्थापना की गयी जिसने आज ही दिन याने कि १६ नवंबर से अपना आगाज़ किया तब से आज के दिन का ‘राष्ट्रीय प्रेस परिषद’ के रूप में स्मरण किया जाता हैं जो निश्चित ही आज के समय में अपनी उस उस उच्च आदर्श के पैमाने से कुछ नीचे गिरा हैं क्योंकि जिस तरह से आजकल ये काम कर रहा उसने इसकी कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगा दिये लेकिन उसके बावजूद भी बहुत-से पत्रकार और रिपोर्टर अपनी जन जोख़िम में डालकर भी इस प्रयास में लगे रहते कि ‘सत्य’ को अवाम के समक्ष लाकर रहे रो फिर सामने कोई भी हो वो बेख़ौफ़ होकर अपनी बार करते कि उन्हें अपनी कलम की ताकत पर भरोसा होता जो किसी भी कीमत पर झुक नहीं सकती और न ही डर सकती हैं क्योंकि उसकी सामर्थ्य को तो तलवार से भी अधिक आँका गया हैं जो अपनी एक हरकत मात्र से किसी की जिंदगी या मौत का फ़ैसला कर सकती हैं ऐसे ‘कलम’ के लिये ही मैंने भी चार पंक्तियों में अपने मन के उद्गार प्रकट कुछ यूँ प्रकट किये हैं...

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कलम मेरी असंभव को सदा संभव बनाती हैं
ये अपनी रौशनी से ज्ञान के दीपक जलाती हैं
नहीं डरती किसी से भी भले हो सामने कोई
ये अपने शब्द बाणों से अँधेरे को मिटाती हैं
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वाकई एक छोटी-सी कलम इतनी ताकतवर होती कि उसके सामने बड़े-बड़े किरदार भी बौने साबित होते और वो चाहे तो अदना-से कद को आदमकद बना दे कि उसकी रोशनाई महज़ रंगीन द्रव्य नहीं बल्कि खून-पसीने से बनी स्याही होती जो अपने स्याह रंग से सत्य के उजले पक्ष को उजागर करती तो आज ‘राष्ट्रीय प्रेस दिवस’ के इस अवसर पर उन सभी ईमानदार, निष्पक्ष, निडर पत्रकारों को सलाम जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर भी हमको उस सच से रूबरू करवाया जिसकी वजह से आज हम अपने गौरवशाली इतिहास पर फ़ख्र से सर उठाकर बात करते हैं... आज भी बहुत-से पत्रकार इसी काम में रत तो सबको इस दिन की बधाई कि वो लाते रहे यूँ सामने सच्चाई... :) :) :) !!!
       
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१६ नवंबर २०१७

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