शनिवार, 18 नवंबर 2017

सुर-२०१७-२२९ : ‘सौंदर्य प्रतियोगिताओं’ में विजेता सुंदरी चयन के पीछे कोई साज़िश हैं क्या ???


 

1966 भारत के लिये बेहद रोमांचक अनुभव से भरा रहा जब ‘Miss World’ के रूप में देश की सुंदरी ‘रीता फारिया’ का चयन किया गया फिर उसके बाद जैसे इस देश में सुंदरता का अकाल पड़ गया या फिर मानो विश्व बाज़ार ने इस देश के सौंदर्य को को इस लायक न समझा कि यहाँ से किसी को इस सुंदरता के इस शीर्ष पद पर आसीन करते इसकी वजह कि तब ‘भारत’ उन्हें इतना बड़ा मार्किट नजर न आता था तो एक लंबा विराम रहा इस तरह की प्रतियोगिताओं में भारत की तरफ से नाम और चेहरे तो जाते रहे लेकिन, कोई इस ताज़ को हासिल न कर सका मगर, उसके बाद ९०वें के दशक में मानो विश्वमंच को पुनः यहाँ की लड़कियों में वो अपूर्व खुबसूरती नजर आने लगी या फिर ये कोई सोची-समझी साजिश थी ?

सन 1994 में 'ब्रम्हांड सुंदरी' याने कि Miss Universe का अंतिम दौर चल रहा हैं और एकाएक इस ख़िताब की विजेता के रूप में हमारे देश की 'सुष्मिता सेन' का नाम लिया जाया हैं जिसे सुनकर उनके आश्चर्यचकित होकर मुंह खिलने और दोनों गालों पर उनके हाथ रखने की अदा ‘ट्रेडमार्क’ सी बन जाती हैं ।

इसी साल होने वाली 'विश्व सुंदरी' बोले तो 'Miss World' प्रतियोगिता का फाइनल राउंड चल रहा हैं ‘Miss India ऐश्वर्या रॉय’ का नाम विजेता के तौर पर घोषित किया जाता हैं जिसे सुनकर वो उछल पडती हैं ।

फिर आता हैं नम्बर ‘Miss Acia PecIfic' प्रतियोगिता का इसमें भी हमारे देश की ही एक और बला नहीं.... बाला 'दिया मिर्ज़ा' उस बरस की सुन्दरी बन जाती हैं...

उसके बाद तो जैसे भारत की सुंदरियों की किस्मत खुल जाती हैं और 1997 में ‘डायना हेडेन’, 1999 में ‘युक्ता मुखी’ तो 2000 में ‘लारा दत्ता’ और ‘प्रियंका चोपड़ा’ इसकी हकदार बन जाती हैं ।

हालांकि, इसके पूर्व भी सालों पहले 'रीता फ़रिया' नामक एक हसीना विश्व सुन्दरी का तमगा हासिल कर चुकी थी लेकिन उसके बाद एक लम्बे अरसे तक लम्बी ख़ामोशी... शायद या तो हमारे यहाँ सुंदरियाँ बनना बंद हो गयी या फिर कोई और वजह थी पता नहीं क्यों बड़े दिनों बाद ‘सुष्मिता सेन’ ने बंद दरवाजा खोल दिया जिससे धड़ाधड़ की कई लड़कियों ने प्रवेश कर लिया।

यहाँ विचारणीय प्रश्न हैं कि उसी समय क्यों भारत देश को ये सम्मान दिया गया उसके बाद क्या हमारे यहाँ फिर पहले की तरह खुबसूरत महिलाओं ने जन्म नहीं लिया ?

उसी दौर में हमने भी इन प्रतियोगिताओं के विषय में न सिर्फ सुना बल्कि जानकारी एकत्र की जबकि तब हम भी इनके बारे में अल्प जानते थे और उस वक़्त तो तकनीक भी इतनी उन्नत न थी न ही इतने साधन न ही मिडिया की ऐसी ताकत थी तब हमने मैदान मार लिया और अब साधन सम्पन्न होने पर भी हमारे यहाँ की लडकियाँ शीर्ष पर पहुंचना तो दूर टॉप 10 में भी बमुश्किल अपना नाम लिखा पाती हैं  ।

उस समय एकदम से हमारा देश सुंदरता की फैक्ट्री बन गया था और एक के बाद एक विश्व स्तर की गुणवत्ता युक्त अप्सरा जैसी सुंदरतम महिलाएं बनाई जा रही लेकिन जिसकी मशीनें अब पुनः खराब हो गयी तो उत्पादन बंद हैं ।

बहुत कठिन तो नहीं हैं इसका जवाब पर बेहद उलझा हुआ जरुर हैं जिसके पीछे की मानसिकता को समझना होगा जिसे अब हमारे यहाँ सुंदर लडकियाँ नजर आती ही नहीं हैं ।

अब हर खेल, हर प्रतियोगिता जिस तरह से आयोजित और प्रायोजित होते तथा जिस तरह अवार्ड जैसी अनमोल वस्तु प्रसाद की तरह बांटी जाती उसने हर स्वस्थ आयोजन पर भी सवालिया निशान लगा दिये हैं इसलिए लोगों का इनके प्रति रुझान भी कम हुआ हैं फिर भी कभी कभी मेरे जेहन में दिल में नहीं क्योंकि इसका उत्तर उसके पास हैं ही नहीं सवाल आते हैं आखिर हुआ क्या ???

क्या अब हमारे देश की लडकियाँ सुंदर नहीं रही ?

क्या अब वो उस तरह के रटे रटाये जवाबों से जज को खुश नहीं कर पा रही ?

क्या अब वे उस मापदंड पर खरी नहीं उतर रही ?

क्या अब हमारी ही इस तरह के आयोजनों के प्रति दिलचस्पी खत्म हो रही ?

क्या आयोजकों का उद्देश्य पूरा हो गया ?

ह्म्म्म... इस सवाल पर जाकर मेरी सुई अटक जाती लगता पहेली का हल इसी में छूपा हैं... क्योंकि बाकी प्रश्नों के जवाब मुझे परेशान नहीं करते लेकिन जब इसको सुलझाती तो कुछ कुछ मन को शांति मिलती कि हो न हो इसी के पास मेरे सारे सवालों के जवाब हैं तो मैं इसी के पीछे पड़ जाती....

फिर जैसे-जैसे में इस प्रश्न का मंथन करती जाती तो एक-एक कर के उत्तर मिलते जाते...

सबसे पहले तो इस विचार मंथन में हलाहल की भाँती कुछ नकारात्मक आकलन निकलता जो दर्शाता कि मैं गलत हूँ क्योंकि आयोजकों का उद्देश्य पूरा हो जाता तो वो साल दर साल इसका यूँ ही आयोजन न करते और उनका उद्देश्य क्या सिर्फ एक सर्वश्रेष्ठ सर्वोत्तम सुन्दरतम महिला को ही खोजना हैं इसके अलावा और कुछ भी नहीं गर, ऐसा होता तो ‘युक्ता मुखी’ और ‘डायना हेडन’ के समय नियम कुछ शिथिल हो गये थे जो उन्हें इस सम्मान के लायक समझा जबकि उस समय हर कोई इस निर्णय से हैरान था क्योंकि जिस स्तर का उनका क्राइटेरिया था ये उससे कुछ कम समझ आई थी फिर इन्हें किस आधार पर किस तरह चुना गया और उसके बाद उनसे भी ज्यादा रूपवतीयों को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया ?

अरे... प्रश्न के अंदर प्रश्न जवाब तो कुछ और कठिन हो गया... आखिर उसी समय क्यों और उसके बाद क्यों नहीं ???

ओके... और अनुमान लगाते हैं कि इनकी प्रतियोगिता का वास्तविक ध्येय सुन्दरता के अलावा और होता क्या हैं ?

ये... अब लगता नब्ज पकड़ में आई फिर हमने सोचा कि ये लोग जो उनसे साल भर का अनुबंध करवाते तो वो किस चीज़ का होता क्योंकि वैसे तो जिसने भी ये टाइटल जीता वो साल भर के लिये उसका हो गया तो फिर इनसे ये करवाते क्या हैं ???

एक जवाब मिला कुछ विश्वस्तरीय सामजिक आंदोलन या गोष्ठी आदि में इनको शिरकत करनी पडती हैं और उनके लिए प्रचार प्रसार भी करना पड़ता हैं तो ये तो अच्छी बात हैं न कि वे सुंदरियाँ जो समाज कल्याण की झूठी बातें बोलकर सिंहासन तक पहुँच गयी उनसे जबरन थोड़ी समाज सेवा भी करवा ली... क्योंकि बाद में तो करार खत्म होते ही इन्हें सिर्फ फिल्मों में काम करना और अपने लिए जीना हैं गर चेरिटी भी की तो फीस लेकर करना हैं ।

तो असल मुद्दा कहाँ खो गया पर, जो सिरा हाथ में आया था उसे ही फिर पकड़ते हैं... ठीक... तो फिर हमने थोडा और जोर लगाया और ये क्या आखिरकार दिमाग की ट्यूबलाइट जल ही गयी और उस रौशनी में हम ये क्या देख रहे हैं....

अपनी ये तमाम अप्सराएँ किसी विदेशी कंपनी के किसी ख़ास साबुन, शैम्पू, कॉस्मेटिक्स, ड्रेस मटेरियल, डियो, कोल्ड ड्रिंक... और न जाने क्या क्या अपने हाथ में लेकर हंसते मुस्कुराते उनका प्रचार प्रसार कर रही फिर धीरे धीरे सब अनजानी गुमनाम मल्टी नेशनल क. इंडिया में 'इन' और हमरी देसी कम्पनियां 'आउट' साथ प्रतियोगिता में इनको जिताने का टारगेट भी successfully पूरा हुआ फिर काहे भारत में झांकना और किसी को भी खिताब देना....

जब इन्होने आपका लक्ष्य सफ़लतापूर्वक प्राप्त कर लिया तो फिर 2000 के बाद फिर से एक लंबा अंतराल लगभग १७ सालों का उसके बाद आज एक बार फिर से भारत की ‘मानुषी छिल्लर’ ‘मिस वर्ल्ड’ के ताज के साथ ख़ुशी का इज़हार करते अपने हाथ लहराती हैं तो इसके पीछे कहीं देश की शीर्ष कंपनी ‘पतंजली’ का केवल इस देश ही नहीं दुनिया के बाज़ार में भी अपना वर्चस्व स्थापित करना तो नहीं...
 
अब आप सब ही बताओ कि का हम सही समझे या यूँ ही खुश हो रहे... :) :) :) !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१८ नवंबर २०१७

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