वक़्त-ए-ज़रूरत
लिबास के दो सिरों को
जोड़कर आलपिन से
काम चला लिया जाता हैं
मगर, 'रिश्ता'
न जाने किन रेशों से
बुना होता हैं कि
उसे कभी भी
किसी भी
'सेफ्टीपिन' से
जोड़ा नहीं जा सकता
रिश्तों को
जोड़ने वाली भी
कोई तो 'पिन' होती
काश...!!!
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०९ नवंबर २०१७
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