शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

सुर-२०१७-३२८ : पंजाब के शेर... ‘लाला लाजपत राय’ !!!


‘लाला लाजपत राय’ के योगदान को विस्मृत किया जाना असंभव हैं क्योंकि उन्होंने केवल ब्रिटिश शासकों के खिलाफ़ ही जंग नहीं लड़ी बल्कि इसके अतिरिक्त अपने देश की सुप्त जनता को जगाने का भी काम किया तो साथ ही साथ उस दौर में जितनी भी कुरीतियाँ प्रचलित थी उनको समाज से दूर करने भी प्रयास किये तो निरक्षरों को साक्षर बनाने के अभियान का भी आगाज़ किया ताकि देश की भोली-भाली अवाम अंग्रेजों की चालाकियों को समझ सके तो इस तरह अनेकों जन-जागरूक मुहिमों का वे हिस्सा रहे जिसके लिये उन्होंने प्रारंभिक रूप से २३ साल की जोशीली युवावस्था में ‘कांग्रेस’ जैसे लोकप्रिय और सफल दल को अपने लक्ष्य प्राप्ति के साधन के रूप में चुना और ‘लाहौर अधिवेशन’ के सफल प्रतिनिधित्व से उनका कद बढ़ा तो आगे इस तरह के अन्य ‘अधिवेशनों’ में भी शिरकत की तो साथ ही दूसरी सामाजिक गतिविधियों में भी अपनी संलग्नता को बढ़ाया जिससे कि अपने दुखी भाई-बहनों के दर्द में शरीक होकर उसका उसी तरह से अनुभव कर सके कि उस वक़्त सभी गुलामी की त्रासदी को भुगतने मजबूर थे तो सबका साँझा दुःख उनको एक किये था

जिसका आज के समय में नितांत अभाव हैं जबकि एकजुटता की आवश्यकता अभी भी हैं परंतु अब इस तरह से लोक कल्याण की भावना तिरोहित हो गयी कि आदमी आत्मकेंद्रित और अपने परिवार के इर्द-गिर्द सिमटकर रह गया जिसे अपने वतन की ही परवाह नहीं वो भला अपने आस-पड़ौस के बारे में किस तरह से सोचे तो बड़े-से-बड़े ज्वलंत मुद्दों और घटनाओं पर भी सरकार के सर ठीकरा फोड़कर चुपचाप बैठ जाता जबकि एक वो समय था कि न तो कोई व्यवस्था और न ही किसी तरह के साधन या सुविधाएँ लेकिन मन में देशभक्ति का जज्बा इस कदर भरा था कि उसके जोश से संचालित ये देशप्रेमी अपनी जान अपनी हथेली पर लेकर चलते थे पर, अब ऐसा सोचना भी गुनाह हैं

‘कांग्रेस’ के कार्यकर्ता के रूप में अपनी शुरुआत करने और उसके लिये लगभग बीस वर्षों तक काम करने के बाद जब उन्होंने उस दल के अधिकांश नेताओं के चरित्र में दोगलापन और मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति को बढ़ावा देने की दुष्प्रवृति देखी तो फिर ’स्वामी श्रद्धानन्द’ तथा ‘मदनमोहन मालवीय’ के साथ मिलकर 'हिन्दू महासभा' का गठन क्र उसके कार्य को आगे बढ़ाने का निश्चय किया तथा 1925 में उन्हें 'हिन्दू महासभा' के कलकत्ता अधिवेशन का अध्यक्ष भी बनाया गया। साइमन कमिशन के विरोध में उन्हें अंग्रेजो के जुल्म की वजह से आज ही के दिन उन्हें अपने ध्येय को बीच राह में छोड़कर प्राण जरुर त्यागने पड़े लेकिन उनकी शहादत ने अनेकों जवानों के गर्म खून को ललकारा तो वे देश की आज़ादी हेतु खड़े हुये

_______________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१७ नवंबर २०१७

कोई टिप्पणी नहीं: