मंगलवार, 7 नवंबर 2017

सुर-२०१७-३०८ : मैं और मेरी आवारगी...!!!



चैन लेते न कहीं
एक पल एक घड़ी
फिरते दर बदर
बंजारों की तरह
मैं और मेरी आवारगी...

न पता न खबर
जाना हमें हैं किधर
भटकते रात ओ दिन
लापता की तरह
मैं और मेरी आवारगी...

कोई सदा पुकारे
समझ न पाऊँ
अंदर या बाहर
ढूंढे उसे इधर-उधर
कस्तूरी मृग की तरह
मैं और मेरी आवारगी...

न ही महफ़िल
न ही तन्हाई में
मिलता सुकून हैं
करें मुक्ति का इंतज़ार
किसी शापित की तरह
मैं और मेरी आवारगी...
       
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०७ नवंबर २०१७

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