मैं तुम्हारे
पास आना चाहती हूँ
मौत तुझको
आज़माना चाहती हूँ
तू न चाहे मुझको
ये जिद ही सही
पर, मैं
तुझे अपना बनाना चाहती हूँ
गर्दिशों का दौर
भी कट जायेगा ये
फूल बनकर
मुस्कुराना चाहती हूँ
हैं कठिन राहें
तो कोई ग़म नहीं
आप अपना मैं
जलाना चाहती हूँ
झूठी हमदर्दी न
मुझको चाहिये
जख़्म को अपने
छुपाना चाहती हूँ
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०५ नवंबर २०१७
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