गुरुवार, 23 नवंबर 2017

सुर-२०१७-३३४ : तुम जियो हजारों साल... साल के दिन हो पचास हज़ार...!!!


‘साहेब बीबी गुलाम’ में अपनी तरफ खींचती सुनाई देती एक मधुर आवाज़ जिसको सुनकर मन स्वतः ही उस तरफ खिंचा चला जाता और वाकई उसे सुनकर महसूस होता कि कोई बहुत दूर से बहुत शिद्दत से किसी अपने को पुकार रहा हैं...

चले आओ, चले आओ...
कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ...

‘छोटी बहु’ के लिये ‘गीता दत्त’ के ये स्वर उसके दर्द को अभिव्यक्त कर पाने में पूरी तरह सक्षम साबित होते हैं क्योंकि ‘गीता’ के कंठ में वो वेदना व्याप्त हैं जो किसी भी दिल की तड़फ को हूबहू उसी तरह से अपने गान में उतार देती हैं जिस तरह से वो उसके भीतर समाई होती हैं तभी तो उनके गाये गीतों में अधिकांश इसी तरह के हैं टूटे दिल की सदा जैसे...

मेरा सुंदर सपना बीत गया
मैं प्रेम में सब कुछ हार गयी
बेदर्द जमाना जीत गया...

यही वो गाना था जिसने उनको फ़िल्मी दुनिया में सफ़लता का पहला स्वाद चखाया और हमें उस मखमली, जोशीली, खनकती आवाज़ की मलिका से मिलाया जिसका श्रेय जाता हैं ‘सचिन देव बर्मन’ को जिन्होंने उनकी इस अभूतपूर्व प्रतिभा को न केवल पहचाना बल्कि उसे अवसर भी प्रदान किया अन्यथा हम इससे वंचित रह जाते फिर जो सुमधुर गीतों की यात्रा शुरू हुई वो अंतिम साँस तक अनवरत चलती रही और हमें एक से बढ़कर एक सुरीले तराने सुनने को मिले

घुंघट के पट खोल रे
तोहे पिया मिलेंगे...

‘जोगन’ में गाये उनके गीतों ने उस समय बड़ा धमाल किया और ‘मीरा बाई’ के भजनों को उन्होंने बड़ी खुबसूरती से अपनी मीठी आवाज़ में प्रस्तुत किया उस पर ‘नर्गिस’ की अदाकारी ने उनमें ऐसा रंग भरा कि ‘गीता’ को बेहद ख्याति प्राप्त हुई जिसने उनके लिये आगे के मार्ग खोल दिए जहाँ किस्मत और कोई उनका इंतज़ार कर रहा था...
  
तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले
अपने पे भरोसा हैं तो एक दांव लगा ले...

जब उनकी मुलाकात ‘गुरु दत्त’ से हुई तो मानो एक चमत्कार घटा और इनका मिलन हिंदी सिनेमा को ऐसा अनमोल खज़ाना देकर गया जिसकी वजह से उनको भूल पाना नामुमकिन होगा क्योंकि ये गाने तो हर संगीत प्रेमी की धरोहर हैं जिसे वो अपने जेहन में संजोकर रखता और जब भी दिल उदास होता उसे सुनकर मन बहलाता

वक़्त ने किया क्या हसीं सितम
तुम रहे न तुम हम रहे न हम...

इस गीत का प्रभाव ऐसा हैं कि जो भी इसे सुनता वो इसमें खो जाता और यदि कहीं उसने इसे सुनते-सुनते अपने आँखों को भी मूंद लिया तो फिर वो खुद को इस दुनिया से दूर किसी स्वप्नलोक में पाता जहाँ चारों तरफ दूर-दूर तक फैली तन्हाई हो और वो अकेला जिसके साथ समय चक्र ने बड़ा सितम कर दिया हो...

न ये चाँद होगा न तारे रहेंगे
मगर, हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे

ऐसी तन्हाई में यदि ये गीत सुनाई दे तो मन झूम जाता और ये विश्वास कि किसी का साथ जीवन भर के लिये हैं बिल्कुल चाँद-तारों की तरह हमेशा और जब काली अंधियारी रात हो तो वहीं हाथ पकड़कर साथ ले चलते हो दूर कहीं इस शब्दों से रूह को ऐसा संबल मिलता कि उसे एकाकी होने का अहसास तक न होता...

मेरी जां,
मुझे जां न कहो
मेरी जां...

कितने मद्धम से ये कहती ‘गीता’ मेरी जां... जी करता कि बस, कहती ही रहे और हम सुनते रहे और ये जो गुज़ारिश हैं गीत में उसे अनसुना कर दे लेकिन, कहीं लगता कि ये मनुहार मना नहीं कर रही बल्कि कह रही कि कोई उसे पुकारे इतने प्यार से कि उसे लगे कि वो उसकी जान जितना ही अजीज हैं...

हूँ अभी मैं जवां ऐ दिल
हूँ अभी मैं जवां...

कभी वही आवाज़ ये इसरार करती सुनाई देती कि भले मैं नहीं हूँ सब सबके बीच लेकिन जवां थी और जवां रहूंगी हमेशा कि आवाजों को बुढ़ापा नहीं आता और न मौत जो गीत के शक्ल में रिकॉर्ड की जा चुकी हो तो ऐसे अनगिनत गाने हैं जिनमें उनकी आवाज़ को हमने सदा-सदा के लिये संजो लिया हैं  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२३ नवंबर २०१७

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