शनिवार, 20 जनवरी 2018

सुर-२०१८-२० : #एकता_की_मिसाल_सीमांत_गाँधी_खान



ये उन दिनों की बात हैं जब अखंड भारत एक स्वप्न नहीं बल्कि हकीकत था और हिंदू-मुस्लिम दो अलग-अलग मज़हब नहीं भाई-भाई के प्रतीक थे जिसमें फिरंगियों ने फूट की ऐसी खटास डाली कि फटे दूध-सा बिखरा वो रिश्ता फिर दुबारा जुड़ना मुमकिन न हुआ बल्कि उसने मुल्क के टुकडें-टुकड़े करने का एक ऐसा अंतहीन सिलसिला शुरू किया कि आज तलक वो नफ़रत की जंग जारी हैं क्योंकि, जिस तरह राज करने के लिये उन्होंने ये नीति अपनाई थी उसी तरह आज के राजनीतिज्ञों ने भी राजनीति के उसी फार्मूले को अपनी सत्ता कायम रखने का अचूक मंत्र मान इस तरह अपना लिया कि जहाँ कभी महज़ दो-चार जातियां थी अब अनगिनत बन गयी और उनके मध्य मतभेद भी पैदा हो गये जिनका कोई भी निष्कर्ष या समाधान दूर-दूर तक नजर आता नहीं कि नकारात्मकता लोगों को अधिक आकर्षित करती हैं

अब वैसे लोग भी तो नहीं जो निःस्वार्थ भाव से देश और इंसानियत को सर्वोपरि मानकर अपना जीवन तक समर्पित कर देते थे जिनके लिये इंसानी मजहब नहीं इंसान अधिक कीमती होते थे तो उनको बचाने के लिये अपने प्राणों तक की परवाह नहीं करते थे यदि उन सबने ऐसा जज्बा और देशभक्ति न दिखाई होती तो हम आज भी अंग्रजों के गुलाम होते परंतु भारतमाता के वो सपूत अपने मन में मातृभूमि और भारत माँ के प्रति विद्वेष नहीं केवल प्रेम रखते थे तो उनको ‘वंदे मातरम’ या ‘भारत माता की जय’ बोलने से अपने धर्म के खतरे में आने का खौफ नहीं सताता था बल्कि अपना देश किसी दुश्मन के हाथ में न चला जाये इस बात की चिंता रहती थी यदि ऐसा न होता तो ‘खान अब्दुल गफ्फार खान’ को भारत विभाजन के पश्चात् भी ‘भारत रत्न’ से सम्मानित नहीं किया जाता जो उनकी देश के प्रति अटूट निष्ठा को अभिव्यक्त करता हैं

पाकिस्तान बन जाने और वहां जाने के बाद भी उनके भीतर मतभेद की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई बल्कि वे अनवरत देश की एकता और इंसानियत के लिये कार्य करते रहे जिसकी वजह से अपने ही देश में नजरबंद भी रहे कहते हैं कि अपनी 98 साल की जिंदगी में 35 साल उन्होंने जेल में सिर्फ इसलिए बिताए कि इस दुनिया को इंसान के रहने की एक बेहतर जगह बना सकें अफ़सोस कि ये अपना अपने मन में लेकर ही वो आज के दिन इस दुनिया से रुखसत कर गये अब ये हमारा फर्ज कि हम उनकी इस अधूरे स्वप्न को पूर्ण करें इसी संकल्प के साथ उनको हृदय से श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं... ☺ ☺ ☺ !!!    
      
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२० जनवरी २०१८

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