मंगलवार, 23 जनवरी 2018

सुर-२०१८-२३ : #किया_जिसने_आज़ादी_का_जयघोष_वो_हैं_नेताजी_सुभाष_चंद्र_बोस


‘आज़ादी’ को पाने सतत प्रयास किये जा रहे थे और उसकी खातिर देशभक्त अपनी जान भी दिये जा रहे थे लेकिन, बरसों-बरस गुजर जाने पर भी वो हासिल न हो रही थी तब ये सोचना जरूरी था कि गलती कहाँ पर हो रही थी जो इतने बलिदानों और प्रयासों के बाद भी बहुसंख्यक देश अल्पसंख्यक अंग्रेजों का गुलाम बना हुआ हैं । इस पर विचार-विमर्श भी अनेकों बार जंगे आज़ादी में शामिल देश के अनगिनत क्रांतिवीरों के द्वारा किया गया लेकिन, कोई निष्कर्ष नहीं निकल रहा था कि इस अभियान का शीर्षस्थ नेतृत्व जिन हाथों में था वे ‘अहिंसा’ और ‘सत्याग्रह’ को ही एकमात्र अस्त्र-शस्त्र समझकर उस पर ही अमल कर रहे थे तो फिर भला हिंसा के देवता किस तरह से इस भाषा को समझते कि उनके शब्दकोश में ये शब्द ही नहीं थे । ऐसे में जुल्मियों को उनकी ही जुबान में बात न समझाकर उनके साथ विनम्रता भरा व्यवहार किया जाना एक नवजवान को ये तरीका रास न आ रहा था तो उसने अपने गरम रवैया के अनुसार अपना एक अलग संगठन तैयार किया जिसे ‘आज़ाद हिंद फौज’ का नाम दिया और लोगों से कहा कि ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’ हालाँकि सौदा बड़ा कठिन था लेकिन, बदले में जो मिलने वाला था वो भी तो बड़ा कीमती था इसलिये उसके जैसी ही गर्म खून वाले जोशीले लोगों ने उसका साथ देने उससे हाथ मिला लिया और ‘जय हिंद’ के उद्घोष से देश को गूंजा दिया जिसकी गूंज से फिरंगी सरकार दहल उठी थी ।     

जिन्होंने खून के बदले आज़ादी पाने के लिये अपनी प्राणों का उत्सर्ग किया वे जानते थे कि जिस फल को पाने वे काँटों भरे रास्ते पर चल रहे हैं अंततः वे उसे चख भी न पायेंगे लेकिन, ये सौदा उन्होंने अपने लिये नहीं बल्कि अपने देश, अपनी भारतमाता और अपने देशवासियों के लिये लिया तो फिर भला विजय किस तरह से हासिल नहीं होती । ‘अंग्रेजों’ ने भी इस बात को कुबूल किया कि उन्होंने इस देश को छोड़कर जाने का निर्णय केवल नेताजी की वजह से लिया क्योंकि, उन्होंने जिस तरह से स्वतंत्रता संग्राम की दिशा और रवैया बदला उसने उनके पैर भारत की जमीन से उखाड़ दिये थे । ऐसे में उन्हें यहाँ से चले जाने के सिवाय कोई दूसरा विकल्प दिखाई न दिया और नेताजी से वे किस कदर खौफ़ खाते थे ये तो इस बात से ही ज़ाहिर था कि उन्होंने उनको जिंदा या मुर्दा पकड़वाने के लिये मुनादी करवाई थी आज की भाषा में बोले तो फतवा जारी किया था । वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी थे और उनकी असाधारण बुद्धिमता तो इस बात से ही ज़ाहिर हो गयी कि उस वक़्त जबकि आई.सी.एस. (इंडियन सिविल सर्विस) में चयनित होना अंग्रेजी सरकार की वजह से बेहद कठिन था तब उन्होंने इंग्लैंड जाकर न केवल इसकी तैयारी की बल्कि इसमें चौथा स्थान व अंग्रेजी भाषा में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर ये साबित कर दिया कि यदि भारतीयों को अवसर दिये जाये तो वे हर असम्भव को संभव बनाने की हिम्मत रखते हैं ।

ऐसी ही अदम्य इच्छाशक्ति व साहस का परिचय उन्होंने जर्मनी तानाशाह ‘हिटलर’ के समक्ष भी दिया जिसका ये विश्वास था कि भारत कमजोरों का देश हैं जिसका कोई गौरवशाली इतिहास नहीं और जहाँ उस ‘राम’ को नायक माना जाता हैं जिसकी पत्नी का अपहरण कर लिया गया था तो जब उनकी उनसे मुलाकात हुई उन्होंने उनको अपने देश के स्वर्णिम अतीत ही नहीं उसके असली नायकों का भी सटीक विवरण दिया जिससे प्रभावित होकर उन्होंने उसे ‘नेताजी’ नाम दिया जब उन्होंने ‘आज़ाद हिंद फौज’ का गठन किया तो उनके सामने हथियारों के प्रबंध की समस्या सबसे बड़ी थी लेकिन, फिर ‘तुलादान’ द्वारा उसका हल निकाला गया तो साथ ही वो देश जहाँ कि महिला किसी भी हालत में अपने गले से मंगलसुत्र नहीं उतारती उसने ‘नेताजी’ के आह्वान पर ख़ुशी-ख़ुशी आभूषणों का त्याग कर दिया जो ये बताता कि वे संघर्षों से घबराते न थे और उनको कुशल नेतृत्व करना आता था तभी तो सच्चे नेता थे यूँ तो आज के समय में ‘नेता’ शब्द निरर्थक हो चुका हैं लेकिन, ‘सुभाषचंद्र बोस’ इस नाम के आगे जब ‘नेताजी’ लगा दिया जाता तो वो सार्थक हो उठता हैं तो ऐसे देश के एकमात्र ‘नेता’ जिनके नेतृत्व में ‘आज़ाद हिंद फौज’ ने अपने मिशन को पूर्ण किया और देश को स्वतंत्र कराने की जंग में महिलाओं को भी शामिल होने का अवसर मुहैया कराया जो आज भी अमर हैं... आज उनकी जयंती पर शत-शत नमन... शब्दों की ये पुष्पांजलि... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२४ जनवरी २०१८

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