६० के दशक में जब दिलीप कुमार, राज कपूर और देव
आनंद की तिकड़ी हिंदी फ़िल्मी दुनिया के रजत परदे और सिने प्रेमियों के दिलों पर राज
कर रही थी तब अपनी शिष्ट छवि, मधुर मुस्कान और मनमोहक व्यक्तित्व से ‘भारत भूषण’
ने नायक का एक अलग ही अध्याय लिख डाला जिसमें उन्होंने ऐतिहासिक और धार्मिक
चरित्रों को अपने सहज-सरल अभिनय से इस तरह जीवंत किया कि कल्पना और हक़ीकत में कोई
फर्क ही न रहा इस तरह से उनका नाम हर उस पात्र के लिये मुफ़ीद समझा गया जिसे किताब
के पन्नों से सिल्वर स्क्रीन पर उतारा जाना हो उन्होंने ये काम इतनी विश्वसनीयता
से किया कि उनके द्वारा अभिनीत किरदारों को देखकर कहीं से भी ये नहीं लगता कि ये
कोई अभिनय हैं ।
बैजू-बावरा से शुरू हुआ ये सिलसिला भक्त कबीर
(1942), श्री
चैतन्य महाप्रभु (1954), मिर्जा
गालिब (1954), रानी
रूपमती (1957), सोहनी
महीवाल (1958), सम्राट्चंद्रगुप्त
(1958), कवि
कालिदास (1959), संगीत
सम्राट तानसेन (1962), नवाब
सिराजुद्दौला (1967) आदि फिल्मों के माध्यम से अनवरत चलता रहा जिसमें उन्हें अपने
साथ उस दौर की सभी नामचीन अभिनेत्रियों सुरैया, मधुबाला, मीना कुमारी, माला सिन्हा, गीता बाली, निम्मी, निरूपा रॉय आदि
का भी साथ मिला तो फिर उन्होंने अपना जो मुकाम बनाया उसमें स्थायित्व भी आ गया कि
उनके साथ काम करना नायिकाओं के लिये भी गौरव की बात होती थी तो ‘भारत भूषण’ के साथ
उनकी जोड़ियाँ किरदार का अहम् हिस्सा साबित हुई जिसने उनकी उन महत्वपूर्ण भूमिकाओं को
पूर्णता और उनको गरिमा प्रदान की जिससे पर्दा चमक उठा ।
‘मन तड़फत हरी दर्शन को आज...’ हो या ‘ओ दुनिया
के रखवाले सुन दर्द भरे मेरे नाले...’ या फिर ‘सुर न सजे क्या गाऊं मैं, सुर
केबिना जीवन सूना...’ या ‘जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात...’ या ‘दिल-ऐ-नादां
तुझे हुआ क्या हैं...’ या ‘तू गंगा की मौज मैं जमुना की धरा...’ या ‘फिर वही शाम,
वही गम, वही तन्हाई हैं...’ या ‘तेरी आँख के आंसू पी जाऊं ऐसी मेरी तकदीर कहाँ...’
या ‘आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं...’ या फिर ‘ना तो कारवां की
तलाश हैं...’ या ‘दो घड़ी वो जो पास आ बैठे...’ इन गीत, गजल और कव्वालियों में
उन्होंने जिस तरह से अपने भावों को प्रदर्शित किया उतने भर से उनके अभिनय की रेंज
का अहसास किया जा सकता हैं कि किस तरह से वो भीतर छिपी भावनाओं को अपने भोले-भाले चेहरे
से दर्शा पाने में सक्षम थे ।
फ़िल्मी दुनिया में उन्होंने एक लम्बी पारी खेली
और उनके द्वारा अभिनीत अधिकांश फ़िल्में सुपर-हिट थी उसके बावजूद भी उनका अंत समय
बेहद दर्दनाक था क्योंकि, आज के कलाकारों की तरह उन्होंने अपनी कमाई को सही तरीके
से सही जगह निवेश नहीं किया और न ही भविष्य के प्रति उनके पास कोई योजनायें ही थी
तो आखिरी वक़्त में वे आर्थिक तंगी का शिकार हुए और आज ही के दिन 27 जनवरी 1992 को
72 वर्ष की उम्र में अपनी यादों का अनमोल खज़ाना पीछे छोड़कर इस दुनिया से रुखसत हो
गये आज उनकी पुण्यतिथि पर उनको यही शब्दांजलि... L
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२७ जनवरी २०१८
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