रविवार, 7 जनवरी 2018

सुर-२०१८-०७ : #समानांतर_सिनेमा_के_पुरोधा_बिमल_रॉय



आज हम जिस प्रगतिवादी, प्रयोगधर्मी या समानांतर सिनेमा की बात करते हैं उसके लिये नींव १२ जुलाई १९०९ को ढाका में जन्मे ‘बिमल रॉय’ ने बहुत पहले ही रख दी थी जिसका श्रेय जाता उनकी विविध सामाजिक सरोकार की फिल्मों को जिनमें उन्होंने अलग-अलग विषयों ही नहीं उस दौर में समाज में व्याप्त अलग-अलग समस्याओं को उनके निराकरण सहित प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने का हरसंभव प्रयास किया और उनकी एक अन्य विशेषता कि उन्होंने अपनी फिल्मों में नायिकाओं को दमदार भूमिकाओं में ऐसे किरदारों के साथ रजत पर्दे पर उतारा कि उन्हें आज के फेमिनिज्म का सशक्त उदाहरण कहा जा सकता हैं चाहे वो ‘मधुमती’ हो या ‘परिणीता’ या फिर ‘बिराज बहु’ या ‘सुजाता’ हो या ‘बंदिनी’ सभी नायिका प्रधान फ़िल्में थी जिनके प्रदर्शन के साथ ही ‘नूतन’ जैसी भावप्रवण अभिनेत्री भी अपने आपको सिल्वर स्क्रीन पर देखकर दंग रह गयी कि इस तरह के विद्रोही चरित्र उस समय तक उन्होंने भी उससे पहले न निभाये थे और न ही रचे गये थे जिन्होंने उनको सिनेमा में पूर्ण रूप से स्थापित कर दिया और एक ख़ास मुकाम दिया जो आज भी उसी तरह से कायम हैं उनके द्वारा अभिनीत वो चरित्र सिर्फ कहानी की वजह से नहीं बल्कि निर्देशक के कैमरे व उनकी अलहदा सोच से निकले होने के कारण उतने दमदार बन पड़े

१९५३ में आई ‘दो बीघा जमीन’ पहली ऐसी फिल्म जिसने देश ही नहीं विदेशों में भी धूम मचा दी और उनको कांस व कार्लोवी वेरी फिल्म समारोहों में विश्वस्तरीय सृजन हेतु सम्मानित किया गया और ‘बलराज साहनी’ व ‘निरूपा रॉय’ की अदाकारी ने पूरी दुनिया को चमत्कृत कर दिया तो इसी साल में उन्होंने ‘मीरा कुमारी’ व ‘अशोक कुमार’ को लेकर ‘शरतचंद्र’ के उपन्यास ‘परिणीता’ के पात्रों में बदलकर शाब्दिक कल्पना को चलचित्र में साकार कर दिया जिसने मीना कुमारी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का ख़िताब दिलवाया । इसके बाद १९५५ में फिर एक बार ‘शरत दा’ की कालजयी रचना ‘देवदास’ को ‘दिलीप कुमार’, ‘सुचित्रा सेन व ‘वैजयंती माला’ के रूप में इस तरह से निर्देशित किया कि वो मील का पत्थर तो ‘दिलीप कुमार’ ट्रेजेडी किंग बन गये जबकि इसके पूर्व १९३५ में बनी ‘चन्द्र बरुआ’ की ‘देवदास’ में उन्होंने बतौर कैमेरामैन काम किया था लेकिन, इस फिल्म में पूरी बागडोर उनके हाथ में थी तो उन्होंने उसे एक ऐतिहासिक नायक बना दिया इस तरह उन्होंने साहित्य से प्रेरणा लेकर उसे हूबहू पर्दे पर उतारा तो वे फ़िल्में मिसाल बन गयी ।

‘काबुलीवाला’, ‘मधुमती', ‘परख’, ‘उसने कहा था’ और ‘बिराज बहु’ जैसी एक के बाद एक सफल फिल्मों ने उनको सिने जगत का महान निर्देशक और प्रयोगवादी फिल्मकार बना दिया जिसने दो बार हेट्रिक बनाते हुये अधिकतम सात फिल्मफेयर अवार्ड व दो राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते और उनके निर्देशन में काम करने वाले कलाकारों ने भी उनके निर्देशन में काम कर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता व अभिनेत्री के सम्मान प्राप्त किये जो दर्शाता कि उनका काम सर्वश्रेष्ठ होता था इसलिये तो इतने समय के बाद भी उनकी फ़िल्में इतिहास में दर्ज हैं और उनकी याद दिलाती रहती व हमेशा रहेंगी क्योंकि ये श्वेत-श्याम होने के बाद भी कला का श्रेष्ठतम व उत्कृष्ट सृजन हैं । आज उनकी पुण्यतिथि पर सभी प्रशंसकों की तरफ से उनका पुण्य स्मरण व नमन... :) :) :) !!!
         
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०७ जनवरी २०१८

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