सोमवार, 29 जनवरी 2018

सुर-२०१८-२९ : #मुगलों_का_जवाब_महाराणा_प्रताप



इतिहास में ‘अकबर महान’ तो पढ़ाया जाता लेकिन, इस ‘महान अकबर’ को धूल चटाने वाले महावीर ‘महाराणा प्रताप’ का उल्लेख केवल ‘हल्दीघाटी’ के युद्ध में उनके समक्ष लड़ने वाले एक योद्धा के रूप में ही किया जाता उन पर पूरा एक अध्याय नहीं शामिल किया जाता जबकि, मुगलों ने तो न केवल भारत देश पर कब्जा करने के लिये आतंक का सम्राज्य कायम किया बल्कि हिंदू राजाओं-महाराजाओं की स्त्रियों पर भी हमेशा बुरी नजर रखी जिसके कारण इतिहास में रक्तरंजित पन्नों का समावेश हुआ और कुछ पन्ने तो जौहर की आग से जल भी गये मुगलों के आगमन के पूर्व इस शब्द से कोई परिचित न था लेकिन, जिस तरह गंदी नजरों से मुगलों ने हिंदू स्त्रियों को देखा और उन्हें अपने हरम की जीनत बनाने के लिये चढ़ाइयाँ की उसने उन असहाय औरतों के सामने अपनी आबरू और सम्मान कायम करने के लिये आत्मदाह या जौहर के सिवाय कोई दूसरा विकल्प न छोड़ा जिल्लत की जिंदगी से वो मौत भी साहस से बड़ा कदम नहीं था क्योंकि यदि वे जीवित हाथ लगती तो जो भी उनके साथ होता वो निसंदेह जौहर से भी दर्दनाक होता कि उन्हें मुगलों की संतति को न चाहते हुये भी जन्म देना पड़ता और अपनी स्त्रीत्व, मातृत्व को प्रतिदिन लज्जित होते देखना पड़ता इस तरह मुगलों ने इस देश को ऐसी कुप्रथाओं से भी नवाजा जिसे आज हेय की दृष्टि से देखा जाता पर, जब मुगल शासकों की क्रूरता के किस्से पढ़ते तो लगता निसंदेह अग्निदाह उसके सामने बेहद ही सहज कदम था जिसकी वजह से आज हम अपनी उन वीरांगनाओं के प्रति गर्व से सर झुकाते हैं     

इन मुगलों को अगर किसी ने बराबर की टक्कर दी तो वो थे ‘हिंदू राजपूत’ जिनके शौर्य, बल और अपरिमित साहस के आगे ये थर-थर कांपते थे बल्कि, अकबर की तो वो हालत थी कि ‘महाराणा प्रताप’ की वीरता के कारण वे स्वप्न में भी डर जाया करते थे और हर हाल में उनको जीतना चाहते थे जिसके लिये उन्होंने हर तरह के प्रयत्न किये फिर भी वो जिस तरह से उनका सर झुकाना चाहते थे वो अरमान उनका कभी पूरा न हुआ और आखिरकार उन्होंने भी ये माना कि ‘महाराणा प्रताप’ जैसा दुश्मन और रणवीर उन्होंने दूसरा नहीं देखा जिसको अपने अधीन करना ही उनके जीवन का लक्ष्य था इसलिये जब उनकी मृत्यु हुई तो उन्हें भी दुःख हुआ कि वो कभी-भी उनके हौंसलों को तोड़ नहीं पाये और जिस तरह से अपनी बहादुरी की वजह से उन्होंने अपने शत्रु के दिल में अपनी जगह बनाई उसी तरह उन्होंने अपने सद्व्यवहार से भी उसको प्रभावित किया जहाँ मुग़ल शासक उनकी स्त्रियों को जीतना चाहते थे वहीँ हिंदू शासक न केवल जंग, बल्कि अपने शत्रु का दिल जीतना और उनकी स्त्रियों का सम्मान करना भी बखूबी जानते थे कि हिंदू संस्कृति में स्त्री को महज़ भोग्या नहीं देवी का दर्जा भी दिया गया हैं तो सभी नारियों में वे उस छवि को देखते इसका उदाहरण ‘महाराणा प्रताप’ के साथ हुई एक घटना से भी मिलता हैं ये बात तब की है जब महाराणा प्रताप हल्दी घाटी का युद्द हार चुके थे परंतु हिम्मत नहीं तो पुनः शक्ति एकत्र कर मुगलों से अपने हारे किले वापस जीत रहे थे उसी दौरान एक युद्ध के बाद ‘महाराणा प्रताप’ के बेटे ‘अमर सिंह’ ने मुगल खेमे की कुछ महिलाएं बंधक बना ली जिनमें मुगल सेनापति ‘रहीम’ की पत्नी भी थी लेकिन, जब उन्होंने अपने पिता के सामने मुगल सेनापति की पत्नी को पेश किया तो पहले तो प्रताप ने अपने बेटे को डांट लगाई फिर उससे उन्हें ससम्मान वापस छोड़कर आने को  कहा ।

ऐसे उच्चे चरित्र के स्वामी थे महाराणा प्रताप जिनकी भुजाओं में अपार बल था तो हृदय में उतनी ही कोमलता थी जो महिलाओं का अपमान नहीं सह सकते थे और दूसरी मुग़ल थे जो हिंदुओं की स्त्रियों को देखते ही उसे पाने को तड़फ उठते थे और हर हद पार करने को तैयार रहते थे चाहे फिर उनकी वजह से उन महिलाओं को मृत्यु को ही क्यों न गले लगाना पड़े उनके लिये स्त्री को जितना ही असली विजय कि वे तो उनकी कोख़ में ही अपना झंडा गाड़ना चाहते थे यही वजह कि उसने आगमन के बाद हिंदू स्त्रियों की दशा में बेहद परिवर्तन आया जिसने उनको चारदीवारी में ही सीमित कर दिया कि इनसे लड़कर भी उनकी अस्मत की सुरक्षा की कोई गांरटी नहीं थी होती भी कैसे कि उसी की खातिर तो वो जबरन लड़ते थे पर, महाराणा प्रताप ने उनकी महिलाओं के साथ ऐसा घृणित कार्य न कर जिस तरह उनको ससम्मान वापस भेजा उसने पराजय के बाद भी उनके सर को ऊंचा उठाये रखा हैं इसने ये साबित किया कि सभ्यता, संस्कृति, संस्कार तो यहाँ पैदाइश के साथ ही घूटी में पिलाया जाता हैं जिसे रगों से निकाल पाना मुमकिन नहीं ये तो लहू के साथ ही बाहर निकलता... जय मेवाड़, जय महाराणा प्रताप... गूंजे सदा उनका नाम... रखे ऊंचा भारत का मान... ☺ ☺ ☺ !!!          

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२९ जनवरी २०१८

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