बुधवार, 10 जनवरी 2018

सुर-२०१८-१० : #स्वामी_विवेकानंद_ज्ञान_मोती_०३



उठो, जागो और
तब तक नहीं रुको,
जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाए...

स्वामी जीका ये मंत्र उनकी पहचान और सबके लिये सफ़लता प्राप्ति का अचूक मंत्र बन चुका हैं अपने आस-पास हम कामयाबी के शीर्ष पर विराजमान जितने भी व्यक्तियों को देखते या जो अब नहीं भी रहे जब उनकी जीवन गाथा पढ़ते तो ये अहसास होता कि ये स्थान उन्हें अनायास ही हसिल नहीं हुआ बल्कि इस तक पहुंचने के लिये उन्होंने यही सूत्र अपनाया सबसे पहले अपने लक्ष्य को निर्धारित किया फिर उसे पाने के मार्ग पर अथक चलते रहे तब जाकर कहीं वे कीर्तिमान रच सके यूँ कहे कि आगे आने वाली पीढ़ियों के लिये वे खुद एक मंजिलबन गये कि तयशुदा पड़ावों से वे आगे ही आगे चलते गये । अब तो सब कुछ बेहद आसान या बोले कि इतनी सुविधाएँ कि कुछ भी दुर्लभ या असंभव प्रतीत नहीं होता लेकिन, वो लोग जिन्होंने पहले-पहल किसी काम की शुरुआत की होगी वो भी तब जबकि बिजली, पानी, रास्ते और आवागमन के साधन तक मुहैया नहीं थे उन्होंने किस तरह से उस असाध्य प्रतीत होते मुकाम को हासिल किया होगा हम सोच भी नहीं सकते लेकिन, इतनी सुविधाओं के बीच बैठकर अपनी अक्षमता या नाकामियों पर बैठकर रो जरुर सकते जो स्वतः ही हमारे प्रयासों में कमी को इंगित करता कि जिनके सामने कोई भी साधन नहीं था जब उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया तो ये आखिर हुआ किस तरह से?

इस बात पर विचार करते हैं तो स्वामी जीके जीवन से जुड़ा एक रोचक किस्सा याद आता एक बार स्वामी विवेकानंद जीअमेरिका में भ्रमण कर रहे थे तब एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने देखा कि पुल पर खड़े कुछ लड़के नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बन्दूक से निशाना लगा रहे हैं लेकिन, किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था जिससे वे झुंझला रहे थे तब उन्होंने वहां जाकर एक लड़के से बन्दूक ली और खुद निशाना लगाने लगे । उन्होंने पहला निशाना लगाया और वो बिलकुल सही लगा तो उसके बाद दूसरा लगाया वो भी सीधा जाकर लगा इस तरह से उन्होंने एक के बाद एक लगातार 12 निशाने लगाये और सभी बिलकुल सटीक लगे । ये देख लड़के दंग रह गए और उनसे पुछा, “आप ने ये कैसे कर लिया ? तब स्वामी जी ने उनको ये रहस्य बताया कि, ”तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक काम में लगाओ जैसे, अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए तब तुम कभी चूकोगे नहीं इसी तरह अगर तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो मेरे देश में बच्चों को यही करना सिखाया जाता है। इस तरह उन्होंने खेल-खेल में उन बच्चों को जीवन में सफल होने का अचूक नुस्खा बड़ी सरलता से समझा दिया जिसका बखूबी प्रदर्शन हम सबने धर्म ग्रंथों की अनेक कहानियों और उनके अनगिनत चरित्रों में भी पढ़ा हैं चाहे वो बालक ध्रुवहो या एकलव्यया आरुणिया उपमन्युया अर्जुनया फिर रामऔर कृष्ण

किसी मकसद के लिए खड़े हो तो एक पेड़ की तरह, गिरो तो बीज की तरह ताकि दुबारा उगकर उसी मकसद के लिए जंग कर सको

इस तरह उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन में ऐसी कई मंत्र दिये जिनको अपनाकर हम हर इच्छित मनोकामना को पूर्ण कर अपने ख्वाबों को साकार कर सकते हैं वे कहते थे, “एक विचार लो, उस विचार को अपना जीवन बना लो, उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जियो यहाँ तक कि अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो यही सफल होने का तरीका है। इस तरह की एकाग्रता से ही हम अपने मनोवांछित ध्येय को अपनी मुट्ठी में भर सकते क्योंकि जब हमारा फोकस या केंद्रबिंदु एक ही वस्तु या लक्ष्य पर स्थिर रहता तो चंचल मन भटकता नहीं हैं जिसका सीधा-सरल उपाय भी वे बता गये कि, “एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ। दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं ये हम ही हैं जो ऐसा मानकर हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाते पर, उनका मानना था कि,  “संभव की सीमा को जानने का सबसे उत्तम तरीका है असंभव की सीमा से आगे निकल जाना विश्व में अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते है, क्योंकि उनमे समय पर साहस का संचार नही हो पाता वे भयभीत हो उठते है। उनके अनुभव और जीवन की प्रयोगशाला के अनुसंधानों से निकाले गये इन अचूक सूत्रों व निष्कर्षों का कोई तोड़ नहीं और ये तो कुछ चंद जो बताते कि किस तरह से हम अपने जीवन में एक मिसाल बन सकते हैं ।

जिंदगी का रास्ता बना बनाया नहीं मिलता है, स्वयं को बनाना पड़ता है, जिसने जैसा मार्ग बनाया उसे वैसी ही मंज़िल मिलती है

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१० जनवरी २०१८

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